बांकाः रजौन प्रखंड के सोहनी गांव के 50 से अधिक मजदूरों ने पिछले लॉकडाउन मेंमनरेगा के तहत काम किया. लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी इन्हें पैसे के लिए भटकना पड़ रहा है. जब मामला बीडीओ के संज्ञान में आया तो उन्होंने कहा कि इसकी जांच कराई जाएगी और मजदूरों को उनका वाजिब हक दिया जाएगा.
सरकार मनरेगा के तहत रोजगार मुहैया कराने की जितने भी दावे कर ले. लेकिन सच्चाई इससे परे है. वर्ष 2020 में लगे लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों को अब तक मजदूरी नहीं मिल पाई है. रजौन प्रखंड अंतर्गत सोहनी गांव के 50 से अधिक मजदूरों ने मनरेगा के तहत काम किया. लेकिन एक वर्ष बाद भी पैसे के लिए भटकना पड़ रहा है.
मजदूर जब भी पीआरएस के पास अपनी मजदूरी मांगने जाते हैं तो उनका एक ही कहना होता है कि पैसा आएगा तो खाते में चला जाएगा. अब मजदूरों को शक है कि उनके कोटे की राशि पीआरएस के द्वारा निकाली गई है. एक वर्ष से मजदूरी नहीं मिली है.
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'पहली बार जब लॉकडाउन लगा था. उस दौरान मनरेगा के तहत एक सप्ताह से अधिक समय तक काम किया था. लेकिन मनरेगा के तहत जो मजदूरी मिलती है, वह मजदूरी नहीं मिल पाई है. जब भी मांगने के लिए पीआरस के पास जाते हैं तो एक ही बात कहता है की अभी राशि आवंटित नहीं हुई है'- रामस्वरूप हरिजन, मनरेगा मजदूर
मनरेगा में काम करने वाली चंपा देवी कहती हैं-लॉकडाउन के दौरान लगातार कई दिनों तक काम किया. पीआरएस के द्वारा हाजिरी भी नहीं बनाई गई और जब पैसे की मांग की जाती है तो कार्यालय में तरह-तरह का बहाना बनाया जाता है.
'मजदूरों को दिलवाया जाएगा उनका वाजिब हक'
वहीं, बीडीओ गुरुदेव प्रसाद गुप्ता ने कहा कि मनरेगा मजदूरों को मजदूरी नहीं मिलने की सूचना उनके पास नहीं है और न ही किसी मजदूर ने इसकी शिकायत की है. मामला संज्ञान में आया है, इसकी जांच करवाई जाएगी और मजदूरों को उनका वाजिब हक दिलाया जाएगा.