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बांकाः मंदार में जुटते हैं सफा धर्मावलंबी, देते हैं नशा मुक्ति और मांसाहार त्यागने का संदेश - बांका में मकर संक्रांति का मेला

सफा धर्म की गुरु माता रेखा हेंब्रम ने बताया कि आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व सोहराय है. इस धर्म को मानने वाले लोग मकर सक्रांति के कुछ दिन पूर्व से ही मंदार में जुटने लगते हैं. यहां एक सप्ताह तक रुक कर अपने इष्ट देव की पूजा करते हैं.

बांका
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Published : Jan 11, 2020, 8:27 AM IST

Updated : Jan 11, 2020, 11:44 AM IST

बांकाः 14 जनवरी से जिले के मंदार और बौंसी में मकर संक्रांति का मेला शुरू हो जाएगा. इससे पहले ही सफा धर्मावलंबियों का जुटना मंदार में शुरू हो गया है. मंदार वो पावन धरती है, जहां पर कई धर्म और संस्कृतियों का संगम होता है. यहां से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं. लेकिन सफा धर्म को लेकर आधुनिक युग में भी गजब की मान्यता है और इस धर्म को मानने वालों में मंदार को लेकर आज भी अद्भुत आस्था देखने को मिलता है.

1940 में सफा धर्म की रखी गई थी नींव
सफा धर्म की नींव सन 1940 में आदिवासी समुदाय के शिबू मुर्मू और चंदर दास ने रखी थी. शिबू मुर्मू और चंद्र दास ने शराब और अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ क्षेत्र में सपा संस्कृति के माध्यम से समाज सुधार के लिए आंदोलन की शुरुआत भी की थी. सफा धर्म को मानने वाले अपने गुरु के आदर्शों पर चलकर आज भी मंदार के पवित्र पापणी सरोवर में डुबकी लगाकर अपने इष्ट देवता की आराधना करते हैं. सफा धर्म को मानने वाले पूरे देश में फैले हुए हैं. यहां तक कि इस धर्म को मानने वाले नेपाल में भी हैं. वे भी मंदार में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं. सफा धर्म का एकमात्र तीर्थ स्थल मंदार में ही अवस्थित है.

मंदार में होता है सफा धर्मावलंबियों का जुटान

सात्विक तरीके से होती है पूजा
सफा धर्म की गुरु माता रेखा हेंब्रम ने बताया कि आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व सोहराय है. इस धर्म को मानने वाले लोग मकर सक्रांति के कुछ दिन पूर्व से ही मंदार में जुटने लगते हैं. यहां एक सप्ताह तक रुक कर अपने इष्ट देव की पूजा करते हैं. उसके बाद अपने घर जाकर सोहराय पर्व मनाते हैं. सफा धर्म के अनुयायी सात्विक तरीके से पूजा करते हैं.

1940 में हुई थी सफा धर्म की स्थापना

एक सप्ताह तक रुक कर करते हैं आराधना
झारखंड के गोड्डा से आए गणेश लाल मुर्मू ने बताया कि मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर मंदार में एक सप्ताह रुक कर पवित्र पापणी सरोवर में स्नान करते वक्त अपने पंचदेव का स्मरण करते हैं. फूल, बेलपत्र, जल, अरवा चावल, अगरबत्ती और धुबड़ी सहित अन्य पूजन सामग्री से पूजा करते हैं. सफा धर्म को मानने वाले मूल रूप से वैष्णव होते हैं. इसलिए विष्णु और नारायण की पूजा करते हैं.

पूजा करते सफा धर्मावलंबी

नशा और मांसाहार सेवन नहीं करने का देते हैं संदेश
गणेश लाल मुर्मू ने आगे बताया कि हमारे गुरु आदिवासी मूल के शिबू मुर्मू और चंदर दास हैं. उनका मानना था कि आदिवासी समाज नशा और मांसाहार का सेवन करके ही बर्बाद हुआ है. सफा धर्म को मानने वालों के लिए नशा और मांसाहार का सेवन करना मना है.

पेश है रिपोर्ट

तीन धर्मों का संगम स्थली है मंदार
स्थानीय हरिनारायण सिंह ने बताया कि मंदार पर्वत तीन धर्मों के संगम स्थली के तौर पर जाना जाता है. जैन, सनातन और सफा तीनों धर्म के अनुयायी यहां जुटते हैं. सफा धर्मावलंबियों की संख्या इतनी होती है कि मंदार पर्वत सफेद वस्त्र धारियों से पट जाता है. इस इलाके में इनका जमावड़ा लगा रहता है. ये लोग मूल रूप से वनवासी समुदाय के होते हैं. सफा धर्म के संस्थापक चंदर दास मानते थे कि आदिवासी समुदाय के लोग कई कुरीतियों से पीड़ित हैं. इसलिए समाज का विकास नहीं हो पा रहा है. इसलिए इस धर्म के अनुयायी नशा मुक्ति और मांसाहार त्याग का संदेश देते हैं.

Last Updated : Jan 11, 2020, 11:44 AM IST

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