बांकाः 14 जनवरी से जिले के मंदार और बौंसी में मकर संक्रांति का मेला शुरू हो जाएगा. इससे पहले ही सफा धर्मावलंबियों का जुटना मंदार में शुरू हो गया है. मंदार वो पावन धरती है, जहां पर कई धर्म और संस्कृतियों का संगम होता है. यहां से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं. लेकिन सफा धर्म को लेकर आधुनिक युग में भी गजब की मान्यता है और इस धर्म को मानने वालों में मंदार को लेकर आज भी अद्भुत आस्था देखने को मिलता है.
1940 में सफा धर्म की रखी गई थी नींव
सफा धर्म की नींव सन 1940 में आदिवासी समुदाय के शिबू मुर्मू और चंदर दास ने रखी थी. शिबू मुर्मू और चंद्र दास ने शराब और अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ क्षेत्र में सपा संस्कृति के माध्यम से समाज सुधार के लिए आंदोलन की शुरुआत भी की थी. सफा धर्म को मानने वाले अपने गुरु के आदर्शों पर चलकर आज भी मंदार के पवित्र पापणी सरोवर में डुबकी लगाकर अपने इष्ट देवता की आराधना करते हैं. सफा धर्म को मानने वाले पूरे देश में फैले हुए हैं. यहां तक कि इस धर्म को मानने वाले नेपाल में भी हैं. वे भी मंदार में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं. सफा धर्म का एकमात्र तीर्थ स्थल मंदार में ही अवस्थित है.
सात्विक तरीके से होती है पूजा
सफा धर्म की गुरु माता रेखा हेंब्रम ने बताया कि आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व सोहराय है. इस धर्म को मानने वाले लोग मकर सक्रांति के कुछ दिन पूर्व से ही मंदार में जुटने लगते हैं. यहां एक सप्ताह तक रुक कर अपने इष्ट देव की पूजा करते हैं. उसके बाद अपने घर जाकर सोहराय पर्व मनाते हैं. सफा धर्म के अनुयायी सात्विक तरीके से पूजा करते हैं.