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प्रशासनिक रोक के बावजूद तिलडीहा दुर्गा मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़

बांका में दुर्गा पूजा के मौके पर प्रशासनिक रोक के बावजूद सुबह से ही तेलडीहा दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. जिसके बाद मंदिर समिति के सदस्यों को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी.

बांका में मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़
बांका में मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़

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Published : Oct 7, 2021, 12:08 PM IST

बांका:जिले के प्रसिद्ध तांत्रिक शक्ति सिद्धपीठ तेलडीहा दुर्गा मंदिर में गुरुवार काे नवरात्र (Navratri) के प्रथम पूजा पर प्रशासनिक रोक के बावजूद हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने मां भगवती की पूजा अर्चना की. पूजा के लिये सुबह से ही श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. इससे पहले श्रद्धालु सुल्तानगंज के पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा (Ganga) में स्नान कर वहां से जल भरकर करीब 18 किमी की पैदल यात्रा कर तेलडीहा दुर्गा मंदिर पहुंचे.

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तिलडीहा दुर्गा मंदिर में मां भगवती की पूजा-अर्चना बंगाली रीति रिवाज से की जाती है. इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1603 में बंगाल राज्य के शांतिपुर जिले के दालपोसा गांव के हरवल्लव दास ने तांत्रिक विधि से किया था. वर्तमान में उन्हीं के वंशज इस मंदिर के मेढ़पति हैं. गुरुवार को नवरात्रा के प्रथम दिन यहां पूजा अर्चना करने के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं का जत्था पहुंचने लगा.

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पूजा-अर्चना के लिए प्रशासनिक स्तर पर रोक के बावजूद श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी है. कुछ दिन पूर्व ही एसडीएम प्रीति कुमारी और एसडीपीओ दिनेश चंद्र श्रीवास्तव ने स्थानीय अधिकारियों और मंदिर के मेढ़पतियों के साथ बैठक कर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाया था. कोरोना वायरस के संभावित तीसरी लहर के मद्देनजर पूजा-अर्चना, जलाभिषेक, मेला सहित अन्य प्रकार के आयोजन पर रोक लगायी गयी थी.

प्रशासनिक की ओर से रोक लगाने के बावजूद श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर में जुट गयी. जिसके बाद श्रद्धालूओं की भीड़ को नियंत्रण करने के लिए समिति के सदस्यों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. बता दें कि तेलडीहा दुर्गा मंदिर में संपूर्ण पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है. यहां की खास विशेषता यह है कि एक ही मेढ़ पर कृष्ण, काली, दूर्गा, महिषासुर, शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिक सहित तेरह मूर्तियां बनायी जाती है.

नवरात्र के प्रथम पूजा के दिन 108 बेल पत्र से आहूति दी जाती है. चौथी पूजा के दिन केला वृक्ष और पान के पत्ते की माला बनाकर पूजा की जाती है. वहीं दो कोहडे़ की बलि भी दी जाती है. पूजा के सातवें दिन मंडप पर प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है. रात में पट बंद कर मेढपति पंडित के साथ मां के आंख की पुतली बनाते हैं. जिसके बाद पट खुलता है. वहीं अष्टवी और नवमी की पूजा के बाद दसवीं के दिन प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है.

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