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कोरोना के चलते दम तोड़ रहा है लोहे का कुटीर उद्योग, सरकारी स्तर पर से भी नहीं मिल रही मदद

चांदन प्रखंड में 300 से अधिक घरों में लोहे का सामान बनाने का कुटीर उद्योग कोरोना की वजह से दम तोड़ता नजर आ रहा है. लॉकडाउन के चलते पिछले 8 माह से सप्लाई चेन टूट चुका है और कच्चे माल की सप्लाई नहीं हो पा रही है. लॉकडाउन के कारण उपजे हालात से लोहारों की स्थिति दयनीय हो गई है. सरकारी स्तर पर भी मदद नहीं मिल पा रही है.

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Published : Sep 15, 2020, 8:44 PM IST

बांकाः जिले के झारखंड सीमा से सटे चांदन प्रखंड में बड़े पैमाने पर लोहे का औजार बनाया जाता है. यहां के लोहारों की ओर से बनाए गए औजार की मांग बिहार और झारखंड के साथ-साथ बंगाल के शहरों में भी है. लेकिन घर-घर चलने वाले लोहे के औजार बनाने का यह कुटीर उद्योग कोरोना से उपजे हालात के बाद दम तोड़ता नजर आ रहा है.

औजार बनाते कारीगर

पिछले 8 माह से लॉकडाउन के चलते सप्लाई चैन पूरी तरह से टूट चुकी है. देवघर से मिलने वाला कच्चा माल आना बंद हो गया है. वहीं व्यापारियों से गुलजार रहने वाले चांदन में वीरानगी छाई हुई है. लोहारों को सरकार की तरफ से आर्थिक मदद भी नहीं मिल पा रही है. जिससे इनके सामने परिवार चलाने तक की समस्या आन पड़ी है.

औजार बनाते कारीगर

लॉकडाउन के चलते सप्लाई चेन टूटा
लोहार रतन कुमार शर्मा बताते हैं कि पिछले 8 माह से देवघर से कच्चे माल की सप्लाई नहीं हो पा रही है. जिस कारण औजार बनाने का काम पूरी तरह से ठप है. बस किसी तरह जिंदगी कट रही है. स्थिति यह है कि परिवार चलाना भी मुश्किल हो गया है. वहीं महेश कुमार शर्मा बताते हैं कि कोरोना के दौरान लगे लॉकडाउन के चलते सप्लाई चैन पूरी तरह से टूट चुकी है. कच्चे माल की उपलब्धता नहीं होने की वजह से छोटे-मोटे काम कर किसी तरह गुजारा चल रहा है. लोहार ने बताया कि चांदन में खल मुसल से लेकर घरों में उपयोग होने वाले तमाम तरह के लोहे का समान बनाया जाता है. अभी स्थिति यह है कि जो भी लोहे का सामान बनाते हैं, उसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती है, जो कि सबसे बड़ी परेशानी है.

औजार बनाते कारीगर

कोरोना काल में 200 रुपये भी कमाना मुश्किल
कारीगर डब्लू मिस्त्री ने बताया कि चांदन के घर-घर में लोहे का सामान बनाया जाता है. यहां खंती, कचिया, खल, मूसल, ताबा, कढ़ाई, चूल्हा सहित अन्य लोहे के औजार बनाए जाते हैं. कच्चा माल सही तरह से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. सामान तो बन रहा है. लेकिन व्यापारी सस्ते दर पर लेना चाहते हैं. स्थिति यह है कि अभी धान की खेती का समय है. उसी से संबंधित कुछ औजार बनाकर बमुश्किल 100 से 200 रुपये ही कमाई हो पाती है.

पेश है खास रिपोर्ट

सरकारी स्तर पर नहीं मिल रही मदद
अपने पिता के काम में हाथ बढ़ाने वाले सोनू कुमार शर्मा बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते 70 हजार से अधिक का माल फंस गया है. व्यापारी लागत से भी सस्ते दर पर सामान लेना चाहते हैं. जो की पूरी तरह से घाटे का सौदा है. जब हालात बेहतर थे तो रोजाना 800 से 1000 रुपये तक की कमाई हो जाती थी. अब 200 रुपये की कमाई कर पाना भी मुश्किल है. सरकारी स्तर पर भी कोई मदद नहीं मिल पा रहा है.

औजार बनाता कारीगर

आर्थिक मदद देने के लिए नहीं है दिलचस्पी
आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन कुशल कारीगरों को मदद पहुंचाने के नाम पर प्रशासनिक अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है. चांदन प्रखंड के प्रमुख रवीश कुमार ने बताया कि कोरोना की वजह से इन लोहारों की स्थिति दयनीय हुई है. कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. उनके स्तर से इन लोहारों की मदद के लिए कोई पहल नहीं की गई है.

औजार बनाता कारीगर

किसी को नहीं रहने दिया जाएगा बेरोजगार
वहीं राजस्व मंत्री रामनारायण मंडल भी सरकार का ही गुणगान करते नजर आए. आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोहारों के नाम पर सिर्फ यही बताया कि किसी को बेरोजगार रहने नहीं दिया जाएगा. इनको आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए संबंधित अधिकारियों से बात की जाएगी और हर संभव मदद मुहैया कराने का निर्देश दिया जाएगा.

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