बिहार

bihar

ETV Bharat / state

अमेरिका से लेकर जापान तक सप्लाई होते थे बिहार के कारीगरों के बनाए बैज, कोरोना ने पहुंचाई चोट - Badge making business

आत्मनिर्भर भारत का सपना भले ही केंद्र सरकार ने देशवासियों को दिखा दिया है. लेकिन धरातल पर इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकारी सहायता मिलते नहीं दिख रही. बैज बनाने की कारीगरी से अपने परिवार का पेट भरने वाले बांका के कारीगरों की स्थिति आज दयनीय हो चली है. पढ़ें पूरी खबर...

बांका की खबर
बांका की खबर

By

Published : Dec 9, 2020, 6:18 PM IST

Updated : Dec 9, 2020, 6:33 PM IST

बांका : जिले के धोरैया प्रखंड के कुर्मा गांव में बड़े पैमाने पर बैज बनाने का कारोबार होता था. लेकिन कोरोना महामारी के चलते बैज बनाने वाले कुशल कारीगरों की स्थिति दयनीय हो गई है. अब बैज की ऑर्डर कम मिल रहा है.

गांव में विगत 10 वर्षों से कपड़े पर महीन कारीगरी के दम पर बैज बनाने का काम किया जा रहा है. यहां के हुनरमंद कारीगरों की कला विदेशों तक प्रसिद्ध है. लिहाजा, यहां के कारीगरों को खाड़ी देश के साथ-साथ चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान समेत अन्य देशों से बैज बनाने का ऑर्डर मिलता था. लेकिन कोरोना महामारी ने इनके इस कारोबार को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है. कच्चे माल की कमी नहीं है. लेकिन विदेशों से मिलने वाला ऑर्डर अब बंद हो गया है.

देखें ये रिपोर्ट

मुश्किल से चल रहा घर
हालात ऐसे हैं कि कारीगर अपने घर परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं. वहीं, प्रशासन की ओर से इन्हें अभी तक किसी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली है.

बैज बनाते कारीगर

कारीगर मो. करीम कहते हैं, 'इस हुनर को दिल्ली में सीखा था और लगभग 5 वर्षों से कुर्मा में ही बैज बनाने के काम में लगे हुए हैं. कोरोना महामारी के दौरान काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. इससे अभी भी उभर नहीं पाए हैं. कुछ हद तक हालात सामान्य हुए हैं. बवाजदू इसके, सप्लाई चैन पटरी पर नहीं लौटी है. विदेशों से जो ऑर्डर मिलता था, वह भी मिलना बंद हो है. यहां के हुनरमंद कारीगर कई देश के सिक्योरिटी गार्ड से लेकर नामचीन विदेशी ब्रांड के परिधान के लिए बैज बनाने का काम करते हैं. लेकिन आर्थिक तंगी के चलते कारीगरों को देने के लिए पैसे नहीं है.'

बैज बनाते कारीगर

मिलिए Green Man Of Banka से, जिन्होंने बंजर भूमि पर ला दी हरियाली

कारीगर मो. इश्तियाक अहमद कहते हैं, 'काम तो पूरी तरह से प्रभावित हुआ है. बहुत कम ऑर्डर मिल रहे हैं. एक महीने में मात्र 10 दिन का काम मिल रहा है. पीस के हिसाब से हम बैज बनाने का काम करते हैं. एक बैज में लगभग 10 रुपये की बचत होती है. पहले जहां 500 से 700 रुपये का काम होता था, अब 200 रुपये भी कमाना मुश्किल हो गया है.

बैज बनाने में हासिल है महारथ

नहीं मिल रही मदद
कारीगर अख्तर हुसैन ने बताया कि बैज बनाने के काम में पिछले 15 वर्षों से लगे हुए हैं. दिल्ली में इस काम को सीखा और पिछले चार-पांच वर्षों से गांव में ही रहकर काम कर रहे हैं. ऑर्डर नहीं मिलने की वजह से काम पूरी तरह से मंदा हो गया है. विदेशों से जो आर्डर मिलता था, वो मिलना बंद हो चुका है. कुर्मा में बैज तैयार कर दिल्ली भेजा करते थे और वहां से विदेशों में सप्लाई होता था.

बैज बनाते कारीगर

अख्तर हुसैन कहते हैं कि इसमें अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी. लेकिन अब काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. स्थानीय प्रशासन कई बार आया और मदद का आश्वासन मिला. लेकिन आज तक किसी प्रकार की मदद नहीं मिल पाई है. इसके चलते बैज बनाने का यह कारोबार सिमट गया है. पहले जहां 300 से 400 कारीगर मिलकर बैज बनाते थे. अब उनकी संख्या सिमटकर 100 पर आ गई है. अगर स्थानीय प्रशासन की मदद नहीं मिली, तो ये धंधा गांव से विलुप्त हो जाएगा.

तैयार किए गये बैज

एंब्रॉयडरी के लिए उपलब्ध कराई जाएगी मशीन
जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक मो. जाकिर हुसैन ने बताया कि बैज बनाने वाले इन कारीगरों को एंब्रॉयडरी के लिए मशीन उपलब्ध कराया जाएगी. ताकि यह कपड़ों पर कारीगरी कर सकें. इन कार्यक्रमों को ज्यादातर विदेशों से विदेशों से ऑर्डर मिलता है. स्थिति यह रहती है कि कभी ऑर्डर मिलता है, तो कभी ऑर्डर नहीं मिलता है इसलिए इन कारीगरों को चिन्हित किया गया है. बिहार के साथ-साथ देश के विभिन्न हॉटों में भी इनका संपर्क कराया जा रहा है. ताकि वे अपने हुनर को दिखा सकें और इनकी कारीगर को पहचान भी मिले और इससे मुनाफा भी हो.

Last Updated : Dec 9, 2020, 6:33 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details