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बांकाः गरीबों के लिए वरदान साबित हो रहा है SNCU, अब तक 700 बच्चों का हो चुका है सफल इलाज - banka news

जिले में नवजात बच्चों की मृत्यु दर में कमी लाने के लिए 2017 में सदर अस्पताल में एसएनसीयू की स्थापना की गई थी. जिसमें अब तक 700 से अधिक बच्चों का सफल इलाज हो चुका है. एसएनसीयू अत्याधुनिक उपकरण से लैस है. जिसकी मदद से 24 घंटे डॉक्टर और नर्स मरीजों की मॉनिटरिंग करते हैं.

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Published : Feb 19, 2020, 2:01 PM IST

बांकाः बांका की गिनती सबसे पिछड़े जिलों में होती है. इसका मुख्य कारण गरीबी, अशिक्षा और स्वास्थ्य की लचर व्यवस्था है. कुछ वर्ष पहले तक जिले में नवजात बच्चों की मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक थी. इस पर रोक लगाने के लिए 2017 में बांका सदर अस्पताल परिसर में एसएनसीयू की स्थापना की गई थी. जिसमें अब तक 700 से अधिक नवजात बच्चों की जान बचाई गई है.

अस्पताल प्रबंधक के मुताबिक इनमें से ज्यादातर बच्चे गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. जिनका एसएनसीयू में मुफ्त इलाज किया गया. यहां बच्चों पर 24 घंटे डॉक्टर और नर्स की मॉनिटरिंग रहती है.

डॉक्टर और नर्स की देखरेख में होता है इलाज

शिशु का होता है सही इलाज
बच्चें के इलाज के लिए बड़ी ढाका गांव से पहुंची सुलेखा देवी बताती हैं कि जन्म के बाद शिशु रो नहीं रहा था और दूध भी नहीं पी रहा था. बच्चे को एसएनसीयू में भर्ती कराया गया. इलाज के बाद अब शिशु अब रो रहा है और दूध भी पीने लगा है. कुछ दिनों में शिशु को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी.

SNCU में ट्रीटमेंट के दौरान एक नवजात

'डॉक्टर और नर्स की देखरेख में होता है इलाज'
नर्स बेबी कुमारी बताती है कि यहां पहुंचने वाले ज्यादातर बच्चे गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं. जिसमें प्री मेच्योर बेबी, कम वजन, जॉन्डिस सहित अन्य समस्याओं से जूझ रहे बच्चे होते हैं. ऐसे बच्चों को डायरेक्ट भर्ती कराई जाती है. अगर उन्हें तुरंत इलाज मुहैया नहीं कराया जाए तो कुछ भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि यहां नर्स बच्चों का सही देखभाल करती है.

पेश है रिपोर्ट

'आधुनिक उपकरणों से लैस है एसएनसीयू यूनिट'
सदर अस्पताल के प्रबंधक अमरेश कुमार सिंह ने बताया कि एसएनसीयू में गंभीर बीमारी से ग्रसित आने वाले बच्चों की देखरेख के लिए आधुनिक उपकरण लगाए गए हैं. इन उपकरणों की मदद से 24 घंटे एसएनसीयू में तैनात चिकित्सक और नर्स बच्चों की जरूरत के मुताबिक इलाज करते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले साल 650 से अधिक बच्चों का मुकम्मल इलाज किया गया और इस साल अब तक 51 बच्चों की जान बचाई गई है.

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