अरवल: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार अभियान तेज हो गया है. बिहार में नक्सलवाद के लिए बदनाम रहे अरवल विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर चुनावी रण में राजनीतिक योद्धा उतरे हुए हैं और सत्ता तक पहुंचने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं.
इस चुनाव में अरवल विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला महागठबंधन की ओर से चुनावी मैदान में उतरे भाकपा (माले) के महानंद प्रसाद और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन समर्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दीपक शर्मा के बीच माना जा रहा है, हालांकि वामपंथी दल के प्रत्याशी को भीतरघात का भी डर सता रहा है.
2010-2015 के नतीजे
पिछले विधानसभा चुनाव में राजद के रविंद्र सिंह ने भाजपा के चितरंजन कुमार को 17,810 वोटों के भारी अंतर से हराया था. राजद के रविंद्र कुमार साल 2015 में इस सीट पर लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए थे. पहली बार रविंद्र सिंह यहां से 1995 में जनता दल के टिकट पर जीते थे जबकि 2010 में चितरंजन कुमार यहां के विधायक बने थे.
अरवल में त्रिकोणीय मुकाबला
इस बार महागठबंधन में यह सीट भाकपा (माले) के हिस्से चली गई, जिससे राजद के कार्यकर्ता नाराज बताए जा रहे हैं. इधर, रालोसपा के सुभाष चंद यादव और जन अधिकार पार्टी के अभिषेक रंजन भी मैदान में पूरी ताकत झोंककर मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने में जुटे हुए हैं. कहा जा रहा है कि राजद अपने वोटों को वामपंथी दल में 'शिफ्ट' करवा सकेंगे, इसमें संदेह है.
नक्सलवाद के लिए बदनाम अरवल
अरवल विधानसभा क्षेत्र नक्सलवाद के लिए बदनाम रहा है. अरवल से सटा जिला औरंगाबाद और जहानाबाद है जो नक्सलवाद का दंश झेल चुके हैं. अब स्थिति पहले से बहुत सुधरी है और घटनाओं में कमी आई है, जिसे मुद्दा बनाकर सत्ताधारी पार्टी चुनावी मैदान में हैं.
रविदास, यादव, कुर्मी, भूमिहार और पासवान वोटर
अरवल विधानसभा क्षेत्र में अरवल, कलेर प्रखंड के अलावे करपी प्रखंड के कई ग्राम पंचायतें हैं. करीब 2.53 लाख वाले इस विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण की बात करें तो रविदास, यादव, कुर्मी, भूमिहार और पासवान जाति के मतदाताओं की संख्या यहां अधिक है, जो चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं.