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Diwali 2023 : डिजिटल इंडिया कुम्हारों के लिए वरदान, आमदनी के लिए दीपावली के भरोसे बैठने की जरूरत नहीं, सालों भर होती है कमाई

Digital India is boon for potters: डिजिटल इंडिया कुम्हारों के लिए वरदान साबित हो रहा है. कुम्हारों को अब आमदनी के लिए दीपावली के भरोसे बैठने की जरूरत नहीं है. सालों भर मिट्टी के कुल्हड़ बना कर इनकी कमाई सालों भर हो रही है. पढ़ें पूरी खबर.

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बिजली के चाक से मिट्टी के बर्तन बनाते कुम्हार

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 10, 2023, 4:34 PM IST

डिजिटल इंडिया कुम्हारों के लिए वरदान, होती है खूब कमाई

अररिया:डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने देश में एक बड़ा बदलाव लाया है. इससे अब हर वर्ग के लोग फायदा उठा रहे हैं. अररिया में डिजिटल इंडिया का फायदा अब कुम्हार भी उठाने लगे हैं. कुम्हारों के हाथ पहले जहां चाक को घुमाने में ज्यादा इस्तेमाल होते थे, वहीं मिट्टी के सामान बनाने में लगे हैं. कुम्हारों का कहना है कि पहले हमलोग ज्यादा काम के लिए दीपावली त्यौहार पर निर्भर रहा करते थे, लेकिन बिजली से चलने वाले चाक का उपयोग कर अब बारहों महीने मिट्टी का ग्लास बनाते हैं.

डिजिटल इंडिया के कारण बढ़ी काम की गति:कुम्हारों ने बताया कि बिजली की चाक से काम की गति भी 30 प्रतिशत ज्यादा हो गई है. इससे उनका उत्पादन भी बढ़ गया है. ये सब डिजिटल इंडिया के कारण संभव हो पाया है. बताया कि जहां पहले हाथ वाले चाक से एक घंटे में 200 के करीब दिये बनते थे वहीं अब बिजली की चाक से 500 के करीब दिये बना लेते हैं.

बिजली के चाक पर बनते दिए

मिट्टी के कुल्हड़ की बढ़ी डिमांड: कुम्हारों ने बताया कि जब से जिला प्रशासन ने प्लस्टिक के ग्लास और चाय पीने वाले कप को बैन किया है, तबसे मिट्टी के कुल्हड़ की डिमांड काफी बढ़ गई है. बारहों महीने आर्डर मिलता है जिससे इनके पास वक्त भी नहीं बचता. साल भर कुल्हड़ बनाने से इनकी अच्छी खासी आमदनी भी हो जाती है. बताया कि फायदा होने के कारण परिवार की स्थिति में भी काफी सुधार आया है.

"मैंने बिजली से चलने वाले चाक का उपयोग करना शुरू कर दिया है, इससे बहुत फायदा हो रहा है. जहां पहले हाथ वाले चाक से एक घंटे में 200-300 पीस बर्तन बनाते थे वहीं अब 500-700 के करीब बनाते हैं. पहले हमलोग सिर्फ दीपावली त्यौहार पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब अब बारहों महीने कुल्हड़ बनाते हैं"- चंदन पंडित, कुम्हार

दिए बनाता कुम्हार

कुम्हारों का पेशा मिट्टी के बर्तन बनाना: जिले के नगर परिषद के वार्ड नंबर 24 में तकरीबन दो दर्जन कुम्हार रहते हैं. इनका मुख्य पेशा मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करना है. पिछले दो दशक पहले इनका रोजगार काफी जोर-शोर से चल रहा था, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती महंगाई के कारण इनका रोजगार कम होता चला गया. कुम्हार के बच्चे इस मिट्टी के काम से मुहं मोड़ने लगे.

डिजिटल इंडीया के लिए मोदी को धन्यवाद:कहा कि डिजिटल इंडिया के वजह से ही कुम्हार इस काम में थोड़ी रुची दिखा रहे हैं. दीवाली की मौके पर रोजगार और बढ़ जाता है. ये लोग दीये, धूपदानी, घरकुंडा का कलश, दही जमाने का नदिया, छठ पूजा में उपयोग होने वाला हाथी आदि बनाते हैं. बताया कि महंगाई तो बढ़ी है, लेकिन उस अनुपात में कीमत भी अधिक मिल रही है. कुम्हारों ने इसके लिए केंद्र सरकार का आभार प्रकट किया.

"कुम्हार अपना रोजगार छोड़ने में मजबर हैं, क्योंकि लोग फैशन के पीछे जा रहे हैं. मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करने के बहुत फायदे हैं लेकिन लोग इसपर ध्यान नहीं देते. जिससे कुम्हारों का मनोबल टूट रहा है."-कुंदन पंडित, कुम्हार

मिट्टी के कुल्हड़

काम नहीं मिलने की वजह से पलायन: हालांकि कुम्हारों ने ये भी बताया कि बाजारों में मंदी के कारण काम नहीं मिलने से परिवार चलाना मुश्किल हो गया है. काम की खोज में ज्यादातर युवा रोजगार के लिए पलायन करने लगे. कुम्हारों के खानदानी काम को बुजुर्गों ने ही संभाल रखा है. रोजगार कम होने का मुख्य कारण महंगाई है. मिट्टी के उपकरण बनाने के लिए अच्छी मिट्टी, जलावन की आवश्यकता होती है, जो काफी महंगा मिलता है. वहीं लोग चाइनीज चीजों का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं.

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