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Published : Mar 28, 2021, 7:27 AM IST

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इबादत की रात शब-ए-बरात, घरों में दुआ मांगने से मिलेगी गुनाहों से निजात

मुस्लिम समुदाय के लिए शब-ए-बरात एक प्रमुख त्योहार है. इस त्योहार को मुस्लिम समाज के द्वारा इबादत के पर्व के तौर पर मनाया जाता है. मान्यता है शब-ए-बरात में इबादत करने वालों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं.

अररिया
मौलाना मुहम्मद मुसव्विर आलम नदवी

अररिया: मुस्लिम कैलेण्डर के अनुसार अरबी महीना शाबान की 15 वीं तारीख की रात को शब-ए-बरात कहा जाता है. इस मौके पर करोड़ों मुसलमान रात भर अपने घरों और मस्जिदों में इबादत करते हैं. शब-ए-बरात को इबादत का त्योहार भी कह सकते हैं. इस रात में मुसलमान अपने रिश्तेदारों और दोस्तों की कब्रों पर जाकर उनके लिए दुआएं करते हैं.

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हदीस की किताबों में है रात का बड़ा महत्व
इस मौके पर मदरसा इस्लामिया गैयारी के मौलाना मुहम्मद मुसव्विर आलम नदवी ने बताया कि शब-ए-बरात वास्तव में शबे बराअत है. शब पर्शियन भाषा है जिसका अर्थ रात होता है और बराअत अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ मुक्ति होता है. शबे बराअत का अर्थ हुआ मुक्ति वाली रात अथवा छुटकारे की रात. उन्होंने कहा कि हदीस की किताबों में इस रात का बड़ा महत्व वर्णन हुआ है.

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शब-ए-बरात क्यों खास
मौलाना ने बताया कि पैगम्बर मुहम्मद ने फरमाया है कि जब शाबान माह की 15 वीं की रात आए तो उस रात को जाग कर इबादत करो और दिन को रोजा रखो. यही वह रात है जिस रात को अल्लाह असंख्य लोगों को मुक्ति देता है और गुनाहों को माफ करता है.

माफी की रात
मौलाना ने आगे बताया कि पैगम्बर मुहम्मद ने फरमाया यही वह रात है जिस रात को अल्लाह की तरफ से ऐलान होता है कि है कोई माफी चाहने वाला है उसको माफी मिलेगी. रोजी-रोटी चाहने वाले को उसको रोजी-रोटी दे दूं. कोई परेशान हाल और दुखी इंसान उसके दुख और पीड़ा से मुक्ति मिलेगी. अल्लाह इस रात को सभी को माफ कर देता है.

मस्जिदों और कब्रिस्तानों में होती है खास सजावट
इस त्योहार के लिये बहुत सारी जगहों पर मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास सजावट की जाती है. घरों में स्वादिष्ट मिष्ठान सह पकवान और अच्छे से अच्छे भोजन की व्यवस्था होती है. लेकिन इस्लामी शरीअत से उसका कोई संबंध नही. हर वह चीज जो इंसान को अल्ल्ह से गाफिल कर दे और हर वह चीज़ जिससे इबादत में सुस्ती, काहिली और रूकावट पैदा हो जाए हदीस में उसकी मनाहि आई है.

मस्जिदों और कब्रिस्तानों में सामूहिक रूप से करें इबादत
मौलाना ने बताया कि लोगों को चाहिये कि मस्जिदों और कबरिस्तानों में सामूहिक रूप से इबादत और दुआएं ना करके अपने घरों में व्यक्ति गत रूप से इबादत करें. अल्लाह हर जगह है. वह सब कुछ देखने, सुनने और जानने वाला है. हम जहां भी रहकर उसे पुकारेंगे वह हमारी अवश्य सुनेगा और हमारे मन की मुराद पूरी करेगा. यही इस्लाम कहता है और यही हदीस और कुरआन कहता है.

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