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अररिया में दोस्ती मेला: लकड़ी के प्रोडक्ट्स के लिए मशहूर, अब तक 1.5 करोड़ की बिक्री - Dost Mela Known For Wooden Products

Araria News अररिया के रानीगंज में दोस्ती मेला का आयोजन किया गया. यहां लकड़ी के प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए लोग दूर-दराज के इलाकों से आए. अब तक करोड़ों रुपये की बिक्री हो चुकी है.

अररिया के रानीगंज में दोस्ती मेला
अररिया के रानीगंज में दोस्ती मेला

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Published : Jan 6, 2023, 11:06 PM IST

अररिया:बिहार के अररिया में हर वर्ष पौष पूर्णिया के मौके पर दोस्ती मेला का आयोजन (Dosti Mela in Raniganj of Araria) किया जाता है. रानीगंज के फरियानी नदी किनारे लगने वाले दशकों पुरानी दोस्ती मेले में सैकड़ों (Dost Mela Known For Wooden Products) की भीड़ आती है. एक अनुमान के मुताबिक मेले में इस बार करीब डेढ़ करोड़ से अधिक रुपये का कारोबार हुआ है. दूर दराज से आये लोगों ने लकड़ी से बने सामानों की जमकर खरीदारी किया.

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सस्ते दाम में मिल जाता है लकड़ी के प्रोडक्ट्स: मेले में इस बार लकड़ी के बने सामानों में पलंग, चौकी, कुर्सी, अलना, टेबल, बेंच, पीढिया, की बिक्री खूब हुई. इस मेले का इंतजार लोग साल भर से करते हैं. इस मेले में लकड़ी के समान काफी सस्ते दामों में लोगों को मिल जाते है. इस मेले में लकड़ी के सामानों का दुकान लगाने भी दूसरे जिलों के काफी बढई आते हैं.

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महारानी इंद्रावती से जुड़ा है मेला का इतिहासरानीगंज के फरियानी नदी के किनारे पौष पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले का नाम दोस्ती का मेला है. दोस्ती का मेला के पीछे भी एक कहानी है. जिसके मुताबिक करीब दो सौ साल पहले इस नदी में स्नान के लिये पहुंसरा की महारानी इंद्रावती अपने महल से चलकर रानीगंज के इसी फरियानी नदी के किनारे जामुन घाट पर आती थी. इसके बाद महारानी इंद्रावती सार्वजनिक रूप से कोशी नदी के जल से स्नान एवं पूजा करती थी. रानी के साथ पूजा स्नान करने के लिये पूरे इलाके की प्रजा उमड़ पड़ती थी और स्वतः मेला लग जाता था.

इस तरह मेले का नाम पड़ा 'दोस्ती मेला':खास बात यह थी कि उस समय में लोग इसी मेले के दिन नदी में स्नान के बाद फूलों का हार बदल ( दोस्ती की एक कसम) कर दोस्त बनते थे. कहते हैं इस नियम के तहत होने वाली दोस्ती कई पीढ़ियों तक निभाई जाती थी. इसके बाद कुछ लोग मेले में मुंडन संस्कार भी करते थे. हालांकि बीतते समय के साथ कुछ पुरानी परंपरा जहां समाप्ति के कगार पर है तो वहीं कई परंपरा अब तक कायम है. अभी भी सैकड़ों की संख्या में लोग मेला घूमने आते हैं.

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