पटना: मिट्टी एकत्र कर उसे सांचे में ढालकर मूर्ति तैयार करते मूर्तिकार... तैयार मूर्तियों को रंग-रोगन के बाद उसे सही जगह पर रखते कलाकार और खूबसूरत पेंटिंग को अंतिम रूप देते चित्रकार... सभी लोग इस लॉकडाउन के कारण परेशान हैं. एक तो डेढ़ महीने से जारी लॉकडाउन के कारण खरीदार नहीं मिल रहे हैं. ऊपर से ये चिंता सता रही है कि अगर कोरोना संकट और लॉकडाउन जल्द खत्म नहीं हुआ तो आने वाले पर्व-त्योहारों में भी मूर्तियां कैसे बिकेंगी?
राजधानी में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो मूर्ति, चित्र और दूसरी तरह की कलाकारी के जरिए अपनी आजीविका चलाते हैं.
- पटना में अलग-अलग पर्व-त्योहारों के मौकों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने वाले करीब 25 से 30 मूर्तिकार हैं. सालों भर ये किसी न किसी तरह से इसी काम में लगे होते हैं.
- राजधानी में होम डेकोरेशन के जरिए अपनी आजीविका चलाने वाले कलाकारों की संख्या लगभग 50 से 60 है.
- करीब 200 ऐसे कलाकार हैं, जो वॉल पेंटिंग के माध्यम से अपना गुजारा करते हैं.
कोरोना से सब तबाह!
मूर्ति बनाने वाले अशोक कुमार दास कहते हैं कि वे पिछाले 50 बरस से इस पेशे से जुड़े हैं. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि कोरोना के कारण धंधा पूरी तरह बंद है. दिनभर में एक भी मूर्ति नहीं बिक रही है. इनकी परेशानी सिर्फ वर्तमान हालात को लेकर ही नहीं है, चिंता भविष्य को लेकर भी है. कहते हैं कि अगर ये महामारी जल्दी खत्म नहीं हुई और लॉकडाउन बढ़ता रहा तो आने वाले पर्व-त्योहारों में मूर्तियां कौन खरीदेगा? कमाई नहीं होगी तो घर कैसे चलेगा?
पैसे और राशन खत्म
20 सालों से फर्निश मोल्डिंग और घर की सजावट के सामान बनाने के काम से जुड़े शंकर कहते हैं बहुत मुश्किल में जी रहे हैं. पहले तो रोजाना 500 से हजार रुपए कमा भी लेते थे, लेकिन लॉकडाउन में काम ही नहीं मिल रहा. घर में राशन खत्म हो रहा है, जेब में पैसे भी नहीं बचे हैं. सरकार से ही कोई उम्मीद बची है.