पटना: इन दिनों बिहार की सियासत में उबाल है. पक्ष हो या विपक्ष, सभी जान रहे हैं कि आरेजेडी सुप्रीमो लालू यादव ( RJD Chief Lalu Yadav ) के जेल से बाहर आने के बाद बिहार में सियासी 'खेल' चालू है. लालू दिल्ली में रहकर बिहार में सियासी प्रयोग कर रहे हैं ताकि बिहार पहुंचते ही खेल खत्म कर अपना काम किया जाए. इसके लिए वे तेज प्रताप यादव ( Tej Pratap Yadav ) को काम पर लगाए हैं.
ओसामा से मिलने पहुंचे तेज प्रताप
शहाबुद्दीन की मृत्यु के बाद मीडिया में खबर आयी की पूर्व सांसद का परिवार लालू-तेजस्वी ( Lalu-Tejashwi ) से नाराज है. फिर क्या था शहाबुद्दीन के परिवार को साधने का काम तेज प्रताप को सौंपा गया. लगे हाथ तेज प्रताप सिवान पहुंच गए. वहां पर पत्रकारों से बात करते हुए तेज प्रताप ने कहा कि ओसामा ( शहाबुद्दीन का बेटा ) मेरा छोटा भाई है. हर सुख-दुख में हमलोग साथ थे, हैं और रहेंगे.
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मांझी के आवास पहुंचे लालू के 'तेज'
जब से लालू जेल से बाहर आए हैं, तब से बिहार की सियासत में एक ही बात की चर्चा हो रही है कि क्या एनडीए की सरकार ( Bihar NDA ) जाने वाली है? इस बात को तब बल मिल जाता है जब हम प्रमुख जीतन राम मांझी और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी, गठबंधन लाइन से इतर बयान दे देते हैं. अगर पिछले एक सप्ताह के बिहार के सियासी बयानों पर ध्यान देंगे तो लगता है कि यहां पर बहुत कुछ होने वाला है.
इसी क्रम आरजेडी सुप्रीमो तेज प्रताप को आगे कर बिहार के सत्ताधारी पार्टियों को साधन में लगे हैं. शुक्रवार को लालू का जन्मदिन ( Happy Birthday ) था. बिहार के सभी नेताओं ने लालू का बधाई भी दी. लेकिन दोपहर को जो हुआ, उसे देख और सुनकर यही कयास लगाए जाने लगा कि बिहार में सियासी खेल अभी बाकी है.
दरअसल, तेज प्रताप यादव अचानक हम प्रमुख जीतन राम मांझी ( Jitan Ram Manjhi ) से मिलने उनके सरकारी आवास पर पहुंच गए. लगभग 30 मिनट वहां पर रहे. खबर है कि इस दौरान तेज प्रताप ने मांझी को अपने पिता लालू से फोन पर बात भी करवाया. बात क्या हुई ये तो पता नहीं चल सका, जानकार बताते हैं कि सियासी हांडी चढ़ गई है. कौन सी खिचड़ी पक रही है, ये कहना अभी जल्दबाजी होगी.
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तेज प्रताप ही क्यों?
अब सवाल उठ रहा है कि लालू यादव की पार्टी में एक से एक धुरंधर नेता हैं, जो हर खेल को आसानी से खेल सकते हैं, ऐसे में लालू तेज प्रताप यादव पर ही दांव क्यों लगा रहे हैं? क्या लालू यादव को पार्टी के अन्य नेताओं पर भरोसा नहीं है? क्या जो काम तेज प्रताप करेंगे, वो तेजस्वी और अन्य नेता नहीं कर सकते हैं?
ऐसा नहीं है कि अन्य कोई नेता तेज प्रताप वाला काम नहीं कर सकता है, कर सकता है लेकिन लालू इस बार तेज प्रताप को आगे कर बिहार की सियासत को साधना चाहते हैं. इसके लिए 2020 बिहार विधानसभा चुनाव के समय जाना होगा, जब मांझी और सहनी ने महागठबंधन से रिश्ता तोड़ अलग-अलग रास्ता अख्तियार कर लिया था.
उस वक्त जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी ( Mukesh Sahni ) ने कहा था कि लालू यादव के कहने पर महागठबंधन के हिस्सा बने थे, लेकिन अब कोई सुनने वाला नहीं है. मांझी ने तो यहां तक कह दिया था कि तेजस्वी यादव किसी की नहीं सुनते हैं. यानी कि तेजस्वी रिश्तों में बंधकर नहीं रहना चाहते हैं. जबकि जानकार बताते हैं कि तेज प्रताप उनसे अलग हैं. जिस अंदाज में वे लोगों से बात करते हैं, उसी अंदाज में वे रहते भी हैं.
तेज प्रताप को जानने वाले बताते हैं कि तेज प्रताप यादव रिश्ते को बखूबी निभाना जानते हैं. विपक्षी पार्टियां भी उनको व्यक्तिगत तौर पर पसंद करती हैं. ये बात लालू भी जानते हैं. यही कारण है कि आरजेडी सुप्रीमो सभी को दरकिनार कर तेज प्रताप को आगे कर सियासी चाल चल रहे हैं. अगर इसमें सफल हो गए तो ठीक, नहीं हुए तो तेज प्रताप तो अभी सियासी तौर पर नादान हैं!
पारिवारिक और सियासी दबाव?
जानकार ये भी बताते हैं कि लालू के दोनों लाल जब से सियासत ( Bihar Politics ) में कदम में रखे हैं तब से तेजस्वी को सबसे अधिक तरजीह दी जा रही है. बिहार में जब महागठबंधन की सरकार बनी, तो तेजस्वी डिप्टी सीएम बने और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री. महागठबंधन की सरकार जाने के बाद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तेजस्वी के हाथ में ही पार्टी का कमान है और 2020 का विधानसभा चुनाव उनके ही नेतृत्व में ही लड़ा गया. ऐसे में बाहर संदेश जा रहा है कि पार्टी में बड़े को भाव नहीं दिया जा रहा है.
यही कारण है कि जेल से बाहर आने के बाद लालू यादव ने तेज प्रताप को आगे कर सियासी चाल चल रहे हैं ताकि पारिवार, पार्टी और विरोधियों को साफ संदेश दिया जा सके कि यहां सब ठीक है, आप अपना देख लीजिए.