पटना: जदयू कोटे से एकमात्र केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Union Minister RCP Singh) का राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है. जदयू के अंदर कई तरह की चर्चा चल रही है क्योंकि आरसीपी सिंह का ललन सिंह से 36 का आंकड़ा है. उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी उनकी पटरी नहीं बैठती. ऐसे में राज्यसभा भेजे जाने को लेकर पार्टी के अंदर सस्पेंस (RCP Singh Rajya Sabha candidature) बना हुआ है. फैसला सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को करना है. राज्यसभा नहीं भेजे जाने पर आरसीपी सिंह का केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहना संभव नहीं होगा. बड़ा सवाल कि क्या नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने का जोखिम ले सकते हैं?
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आरसीसी सिंह व ललन सिंह में 36 का आंकड़ा: केंद्रीय मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के खास माने जाते हैं. वहीं ललन सिंह के साथ 36 का आंकड़ा भी बना हुआ है. इसके कारण कई तरह की चर्चा भी शुरू है. आरसीपी सिंह का कार्यकाल 10 जुलाई को समाप्त हो रहा है. राज्यसभा चुनाव की तिथि भी घोषित हो गई है. 10 जून को चुनाव होना है. राज्यसभा के 1 सीट के लिए जदयू ने पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बनाया है. दूसरी ओर आरसीपी सिंह को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. आरसीपी सिंह की उम्मीदवारी का फैसला नीतीश कुमार करेंगे लेकिन चुनाव आयोग को भेजे जाने वाले पत्र पर राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का हस्ताक्षर होगा. मामला यही फंस रहा है.
नीतीश लेंगे फैसला:सूत्रों के अनुसार ललन सिंह हस्ताक्षर करने के लिए तैयार नहीं हैं. हालांकि नीतीश कुमार जब फैसला लेंगे तो ललन सिंह उसे अलग नहीं हो सकते हैं, यह तय है. आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के साथ वर्षों से काम कर रहे हैं. जब वे केंद्र में रेल मंत्री थे, उसी समय से साथ हैं. बिहार में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भी वर्षों तक रहे. नीतीश कुमार पार्टी में अभी सबसे ज्यादा किसी पर विश्वास करते हैं तो वह आरसीपी सिंह ही हैं. दो-दो बार उन्हें राज्यसभा भेज चुके हैं. केंद्र में भी नीतीश कुमार की सहमति से ही मंत्री बने हैं. हालांकि ललन सिंह की तरफ से कहा गया कि आरसीपी सिंह अपने मन से राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मंत्री बनने का फैसला ले लिया.
आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद से ही ललन सिंह के साथ विवाद बढ़ा. उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भी दोनों का विवाद खुलकर सामने आ गया था. पार्टी के अंदर भी कार्यक्रमों को लेकर दोनों नेता के बीच विवाद किसी से छिपा नहीं है. इसके बाद भी नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने का जोखिम भरा फैसला लेंगे, इसकी संभावना कम ही है.
आरसीपी का बीजेपी से बेहतर संबंध:क्योंकि इसके दो पक्ष हैं- एक तो आरसीपी सिंह जदयू में फिलहाल एकमात्र नेता हैं जिनके बीजेपी के साथ सबसे बेहतर संबंध हैं. बिहार में बीजेपी के साथ तालमेल से सरकार चल रही है. अरुण जेटली के निधन के बाद से नीतीश कुमार के लिए केंद्र में फील्डिंग करने वाला कोई नेता बीजेपी में नहीं है. ऐसे में आगे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. आरसीपी सिंह को राज्यसभा नहीं भेजने पर बीजेपी के साथ भी संबंध खराब हो सकता है क्योंकि आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से भी हटना पड़ेगा नहीं तो फिर बीजेपी को ही उन्हें राज्य सभा भेजना पड़ेगा.
JDU में टूट की आशंका: दूसरा, पार्टी संगठन में आरसीपी सिंह की पकड़ है. पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव संगठन से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका आरसीपी सिंह निभा चुके हैं. वे कुर्मी वर्ग से आते हैं. बिहार मंत्रिमंडल में भी कई मंत्री उनके चेहते माने जाते हैं जिसमें शिला मंडल, मदन सहनी का नाम लिया जाता है. कई वर्तमान विधायक और कई पूर्व विधायक भी आरसीपी सिंह के गुट के माने जाते हैं. पूर्व विधायक अभय कुशवाहा तो उनके समर्थन में खुलकर दिखते भी रहे हैं. ऐसे में पार्टी के टूटने का भी खतरा हो सकता है.
आरसीपी सिंह को जदयू में नीतीश कुमार के बाद दो नंबर का नेता माना जाता रहा है. जदयू की नीतियां बनाने में आरसीपी सिंह अहम भूमिका निभाते रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार के बड़े फैसलों में भी आरसीपी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती रही है. खास बात यह भी है कि वे नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के ही रहने वाले हैं.