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शराबबंदी पर बिहार सरकार को 'सुप्रीम' फटकार, कहा- 'कोर्ट सिर्फ इसलिए जमानत ना दे क्योंकि आपने कानून बना दिया'

बिहार में शराबबंदी से जुड़े मामलों में नीतीश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने बिहार में शराबंदी के केस में आरोपियों की जमानत को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया. साथ ही सीजेआई (CJI comment on Prohibition of Liquor) ने सरकार के शराबबंदी कानून को दूरदर्शिता की कमी बताया. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

बिहार में शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट
बिहार में शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट

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Published : Jan 12, 2022, 1:00 PM IST

नई दिल्ली/पटना:बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Prohibition Law in Bihar) को लेकर नीतीश सरकार गर्व करती है, लेकिन इसके कारण देश की न्याय व्यवस्था पर असर पड़ा है. दरअसल, कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना (Chief Justice of Supreme Court NV Ramana) ने अमरावती में एक कार्यक्रम में बिहार में शराबबंदी कानून को दूरदर्शिता की कमी बताया था. वहीं, एक बार फिर सीजेआई ने शराबबंदी कानून को लेकर बिहार सरकार को फटकार लगाई है. एक केस की सुनवाई के दौरान बिहार सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने कटघरे में खड़ा कर दिया है.

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सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को झटका देते हुए (Supreme Court slammed Bihar government on Liquor Prohibition Law) मंगलवार को राज्य के कड़े शराबबंदी कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती देने वाली विभिन्न अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इन मामलों ने अदालतों के काम पर असर डाला है. पटना हाईकोर्ट के 14 से 15 जज केवल इन मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं. सीजेआई एन वी रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने बिहार सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि आरोपियों से जब्त की गई शराब की मात्रा को ध्यान में रखते हुए, कारण के साथ जमानत आदेश पारित करना सुनिश्चित करने के लिए दिशा निर्देश तैयार किए जाएं.

बिहार में शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'आप जानते हैं कि इस कानून (बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016) ने पटना हाईकोर्ट के कामकाज पर कितना प्रभाव डाला है और वहां एक मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है, सभी अदालतें शराब से संबंधित जमानत मामलों से भरी पड़ी हैं.'

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सीजेआई ने अग्रिम और नियमित जमानत दिए जाने के मामलों के खिलाफ राज्य सरकार की 40 अपील को खारिज करते हुए कहा कि 'मुझे बताया गया है कि उच्च न्यायालय के 14 से 15 न्यायाधीश हर दिन इन जमानत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं और किसी अन्य मामले पर सुनवाई नहीं हो रही है. इस कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी सीधे तौर पर अदालतों को अवरुद्ध कर सकती हैं.'

सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष कुमार ने कहा कि शिकायत यह है कि उच्च न्यायालय ने कानून के गंभीर उल्लंघन में शामिल आरोपियों को बिना कारण बताए जमानत दे दी है, जबकि कानून में इसके तहत गंभीर अपराधों के लिए 10 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि कुछ आरोपी 400 से 500 लीटर शराब ले जाते या बेचते पाए गए हैं. फिर भी उन्हें 'यांत्रिक तरीके' से जमानत दी गई है, जबकि वे चार-पांच महीने ही जेल में रहे हैं जबकि वो चार-पांच महीने ही जेल में रहे हैं. उन्होंने कहा कि मेरी समस्या यह है कि शराब के मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा लगातार जेल में बिताई गई कुछ अवधि के आधार पर ही जमानत के आदेश पारित किए जा रहे हैं.

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चीफ जस्टिस ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि 'तो आपके हिसाब से हमें सिर्फ इसलिए जमानत नहीं देनी चाहिए, क्योंकि आपने कानून बना दिया है. पीठ ने तब हत्या पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधान का हवाला दिया और कहा कि जमानत और कभी-कभी, इन मामलों में अदालतों द्वारा अग्रिम जमानत भी दी जाती है. पीठ ने कहा कि राज्य में इन मामलों की वजह से अदालतों का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है. पीठ ने राज्य सरकार से मुकदमे आगे बढ़ाने को कहा है, क्योंकि उसने जांच पूरी करने के बाद इन मामलों में आरोप पत्र दाखिल किया है.

अपील खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इन मामलों में 2017 में उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दी गई थी, इसलिए अब इसके लिए याचिकाओं से निपटना उचित नहीं होगा. बिहार पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार पिछले साल अक्टूबर तक बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गई. ऐसे मामलों में लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय या जिला अदालतों में लंबित हैं.

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