नई दिल्ली/पटना:बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Prohibition Law in Bihar) को लेकर नीतीश सरकार गर्व करती है, लेकिन इसके कारण देश की न्याय व्यवस्था पर असर पड़ा है. दरअसल, कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना (Chief Justice of Supreme Court NV Ramana) ने अमरावती में एक कार्यक्रम में बिहार में शराबबंदी कानून को दूरदर्शिता की कमी बताया था. वहीं, एक बार फिर सीजेआई ने शराबबंदी कानून को लेकर बिहार सरकार को फटकार लगाई है. एक केस की सुनवाई के दौरान बिहार सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने कटघरे में खड़ा कर दिया है.
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सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को झटका देते हुए (Supreme Court slammed Bihar government on Liquor Prohibition Law) मंगलवार को राज्य के कड़े शराबबंदी कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती देने वाली विभिन्न अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इन मामलों ने अदालतों के काम पर असर डाला है. पटना हाईकोर्ट के 14 से 15 जज केवल इन मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं. सीजेआई एन वी रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने बिहार सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि आरोपियों से जब्त की गई शराब की मात्रा को ध्यान में रखते हुए, कारण के साथ जमानत आदेश पारित करना सुनिश्चित करने के लिए दिशा निर्देश तैयार किए जाएं.
बिहार में शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'आप जानते हैं कि इस कानून (बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016) ने पटना हाईकोर्ट के कामकाज पर कितना प्रभाव डाला है और वहां एक मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है, सभी अदालतें शराब से संबंधित जमानत मामलों से भरी पड़ी हैं.'
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सीजेआई ने अग्रिम और नियमित जमानत दिए जाने के मामलों के खिलाफ राज्य सरकार की 40 अपील को खारिज करते हुए कहा कि 'मुझे बताया गया है कि उच्च न्यायालय के 14 से 15 न्यायाधीश हर दिन इन जमानत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं और किसी अन्य मामले पर सुनवाई नहीं हो रही है. इस कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी सीधे तौर पर अदालतों को अवरुद्ध कर सकती हैं.'