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कहानी सेनारी हत्याकांड की, जब 6 लोग कतार बना गर्दनें रेत रहे थे - जहनाबाद नरसंहार

बिहार में जातीय हिंसा का इतिहास काफी पुराना है. सेनारी मामले के ताजा फैसले के बाद ये नरसंहार एक बार फिर लोगों के जहन में ताजा हो रहे हैं. आइए जानते हैं क्या था सेनारी नरसंहार, पढ़ें...

story of senari masscare in jehanabd
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Published : May 21, 2021, 2:50 PM IST

Updated : May 21, 2021, 6:32 PM IST

पटना: पटना हाईकोर्ट ने जहानाबाद के बहुचर्चित सेनारी नरसंहार के सभी 13 दोषियों को बरी कर दिया है. जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह और जस्टिस अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. जिसे आज सुनाया गया. कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 दोषियों को तुरंत रिहा करने का भी आदेश दिया. बता दें कि जहानाबाद जिला अदालत ने 15 नवंबर 2016 को इस मामले में 10 को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि 3 को उम्र कैद की सजा दी थी.

34 लोगों की गला रेतकर हत्या
18 मार्च, 1999 की रात जहानाबाद जिले के सेनारी गांव में एक खास अगड़ी जाति के 34 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी. उस समय इस नरसंहार में प्रतिबंधित संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) को शामिल माना गया था.

देखें रिपोर्ट

1999 में हुआ था यह नरसंहार
18 मार्च 1999 की तारीख थी, जब प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी ने जहानाबाद जिले के सवर्ण बाहुल्य सेनारी गांव में होली से ठीक पहले खून की होली खेली थी. बताया जाता है कि 500-600 की संख्या में रहे हथियारबंद लोगों ने उस समय सेनारी गांव पर हमला बोल दिया था.

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गांव के सारे लोग अभी ठीक से खाना भी नहीं खा पाये थे. इन लोगों ने चारों ओर से सभी के घर को घेर लिया. चुन-चुन कर एक जाति विशेष के पुरुषों को घरों से निकालकर गांव के ही ठाकुरबाड़ी मंदिर के पास लाया गया. 6 कातिल धारदार हथियार से एक-एक कर युवकों की गर्दन रेतकर जमीन पर गिरा रहे थे. एक के बाद एक 34 जानें चीख में तब्दील हो कर रह गईं.

इसके बाद रात साढ़े सात से दस बजे के बीच नरसंहार को अंजाम दिया गया. प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो लग रहा था कि हमलावरों में सभी ने शराब पी रखी थी. सेनारी गांव भूमिहारों का था. मारने वाले एमसीसी के लोग थे.

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लोग बताते है कि इस घटना के अगले दिन पटना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार पद्मनारायण सिंह यहां पहुंचे. सेनारी उनका गांव था. अपने परिवार के 8 लोगों की बिखड़ी हुई लाशें देखकर उन्हें दिल का दौरा पड़ा. जिसके बाद उनकी मौत हो गई.

सेनारी हत्याकांड के पिछे 'बदला'
सेनारी हत्याकांड यूं ही नहीं हो गया था. डेढ़ साल से दिल को ठंडा रखा गया था. क्योकी,1 दिसंबर 1997 को जहानाबाद के ही लक्ष्मणपुर-बाथे के शंकरबिगहा गांव में 58 लोगों को काट दिया गया था. 10 फरवरी 1998 को नारायणपुर गांव में 12 लोगों को काट दिया गया था. मरने वाले सारे दलित थे. मारनेवाले भूमिहार. इन घटनाओं के बाद खून उबल रहा था. जमीन का संघर्ष अपनी जगह था. पर सेनारी गांव में भूमिहर और भूमिहीन के बीच झगड़ा नहीं था. आसपास के गांवों में एमसीसी सक्रिय थी, पर इस गांव में नहीं. 300 घरों के गांव में 70 भूमिहार परिवार 'मजदूर' पड़ोसियों के साथ बड़ी शांति से रहते थे. और शायद यही वजह थी कि इसी गांव को चुना गया.

Last Updated : May 21, 2021, 6:32 PM IST

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