पटना :सनातन संस्कृति में आचार, विचार और व्यवहार का सर्वोच्च स्थान है. सनातन संस्कृति इस बात की तस्दीक करता है कि सब सुखी रहे, सब शिक्षित रहे, सब व्यवस्थित रहे. राजधानी से सटे नौबतपुर का तरेत पाली मठ (Taret Pali Math Naubatputpr) करीब ढाई सौ से इस परंपरा को जिंदा रखा हैं. लोगों के बीच शिक्षा व सद्गति का प्रचार प्रसार कर रहा है. सबसे बड़ी बात यह की इस मठ में जो कोई भी आता है वह खाली हाथ नहीं जाता.
ये भी पढ़ें - 50 से ज्यादा मठ मंदिरों के महंत की सरकार को चेतावनी- 'मठों की जमीन पर नजर डाली तो करेंगे आंदोलन'
''इसकी नींव 1742 में स्वामी राजेंद्र आचार्य जी के हाथों रखी गई थी. तब यह इलाका परेत पाली यानि प्रेत पाली के नाम से जाना जाता था. इलाका एकदम घनघोर जंगल से घिरा हुआ था. यहां दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं रहती थी. इसकी शुरुआत परोपकार व सर्वहित के लिए किया गया था जो आज भी बदस्तूर जारी है. स्वामी राजेंद्र आचार्य बिहार के नहीं बल्कि नैमिषारण्य के रहने वाले थे. उन्होंने 12 साल में ही पदयात्रा करके पूरे भारतवर्ष को नाप दिया था. उनको यह जगह इतनी पसंद आई की यहीं पर उन्होंने अपना मठ बनाने का विचार किया.''- स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज, मठ के वर्तमान आचार्य
मठ में मछलियों का अंतिम संस्कार :आचार्य बताते हैं कि इस मठ की खासियत इसकी वैदिक रीति का पालन करना है. मठ में अपना पोखर है जिसमें हजारों की संख्या में मछलियां रहती हैं. इन मछलियों में अगर कोई मर जाती है तो उसका भी अंतिम संस्कार उस सनातन संस्कृति व वैदिक रीति के अनुसार किया जाता है. वह बताते हैं केवल मछलियां ही नहीं इस जगह पर कोई भी पशु अगर अपना देह त्याग देता है तो उसे वैदिक रीति के अनुसार ही अंतिम संस्कार किया जाता है.
मुफ्त में दी जाती शिक्षा :इस मठ का मुख्य कार्य जरूरतमंदों को मुफ्त में शिक्षा प्रदान करना है. यहां गुरुकुल है जिसमें हर आयु वर्ग के बटुक को शिक्षा दी जाती है. यह सारी शिक्षा संस्कृत में होती है. यहां शिक्षा ग्रहण करने वाला छोटे से छोटा बटुक भी धाराप्रवाह संस्कृत बोलता है.