पटना: बिहार में पुलिस इतने सक्रिय मूड में है. लोगों को देखकर यह लग रहा है कि वास्तव में सुशासन बाबू की पुलिस बहुत तेजी से काम कर रही है. जिले की बात तो छोड़ दीजिए राजधानी पटना के कई मोहल्लों में पटना पुलिस पूरी चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ गली-गली मोहल्ले मोहल्ले में शराब खोज रही है.
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सीएम नीतीश कुमार से जब इस कार्रवाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसका जवाब दिया.''पूरी तैयारी चल रही है, पूरे तौर पर. शराबबंदी का निर्णय तो आप जानते ही हैं 2016 का है. उसके बाद से जितना अभियान चला है आप सबको मालूम है. इधर हाल में जो घटना घटी है उसके बाद हमने किया है. आपलोगों को बता चुके हैं 9 बार हमलोग समीक्षा बैठक करते थे और हर बार कोशिश करते थे. इसबार जो समीक्षा बैठक हुई उसमें बहुत स्पष्टता के साथ हमने सारे अधिकारियों को कह दिया कि एक-एक चीज को देखिए और यह बहुत जरूरी है. लोगों ने काम करना शुरू किया है. 26 तारीख के बारे में तो आप जानते ही हैं एक कार्यक्रम होता है. उसी दिन सबका शपथ करवाएंगे. फिर एक बार सभी लोगों का शपथ होगा. ये सब तो चल ही रहा है.''- नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान. आखिर राजधानी में शराब आई कैसे?:-अब यह बताने के लिए न तो डीजीपी तैयार हैं और ना ही बिहार के मुख्यमंत्री के पास कोई उत्तर है. ना ही वे तमाम बड़े आला हकीम हुक्काम जिनके जिम्मे सरकारी व्यवस्था चलाने की जिम्मेदारी है और आम लोगों के टैक्स से मोटी तनख्वाह भी लेते हैं. उन्हीं आम लोगों को बताने में फेल हैं कि आखिर राजधानी में शराब आई कैसे? वह कौन है जो आंख मूंद लेते हैं और वह कौन है जो आंख मूंदने का पैसा लेते हैं?
आरोप इसलिए लग रहा है कि नीतीश कुमार की पुलिस शराब वहां खोज रही है जो मुख्यमंत्री आवास से महज 2 किलोमीटर दूर है. तो सवाल उठ रहा है कि अगर मुख्यमंत्री का आवास ही सुरक्षित नहीं है, तो पूरे बिहार की स्थिति क्या होगी? हालांकि डीजीपी, मुख्य सचिव, नीतीश कुमार, बिहार के हर मंत्री, बिहार का हर विधायक जो सरकार के पक्ष का है दावा यही कर रहा है कि सरकार काम कर रही है, लेकिन कैसे यह बड़े सवालों में है.
शराब पहुंचाने वाले कौन लोग हैं जिन्हें आज तक पुलिस नहीं खोज पा रही?:- बिहार में पुलिस काफी एक्टिव मोड में है. पुलिस का हर एक्शन शराब खोजने में लगा हुआ है. पुलिस पर आम जनता का एफआईआर नहीं लिखने, उनकी बात नहीं सुनने का आरोप तो लगता है, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं है. क्योंकि जो कहा गया उसे पुलिस ढूंढ रही है. इतनी शिद्दत से सुन रही है कि अगर पूरे दिन उनके बारे में लिखना शुरू करिए तो शराब खोजने में जुटी नीतीश की पुलिस इतना काम कर रही है कि लिखने वाले लोग कम पड़ जाएंगे.
सवाल यह उठ रहा है कि आखिर यह खोजने की नौबत आई ही क्यों? यहां तक शराब पहुंची कैसे और वह पहुंचाने वाले कौन लोग हैं जिन्हें आज तक पुलिस नहीं खोज रही है? आखिर इसमें कौन सा झोल है और कौन सी ऐसी बात जिसे पुलिस मुख्यालय में बैठे वर्दीधारी लोग नहीं जानते? सच तो यह है कि वह जानना ही नहीं चाहते और हकीकत को पहचानने के बाद भी उससे रूबरू नहीं होना चाहते, क्योंकि बहुत सारी सुविधाएं बंद हो जाएंगी.
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जिम्मेदारी लेकर जवाब कौन देंगे?:- बिहार में पुलिस जिस तरीके से काम करती है और पुलिस के बारे में जो बातें रखी जाती हैं उसमें कई बार यह भ्रम होता है कि शायद पुलिस ईमानदार है. लेकिन जब मुख्यमंत्री आवास के बगल में ही शराब खोजी जाए तो सवाल उठने लगता है कि आखिर पुलिस थी कहां? जिस शराब को नदी के किनारे, जंगलों के रास्ते या शहर के दूरदराज इलाकों में शराब माफिया इस आधार पर भेजते हैं कि वहां उनका धंधा चलता रहे, यह पुलिस भी मानती है. लेकिन सवाल यह उठ जाता है कि वह शराब मुख्यमंत्री आवास तक कैसे पहुंच जाती है?
अब इसका जवाब देने के लिए डीजीपी साहब फोन उठाएंगे नहीं और नीतीश कुमार कुछ बताएंगे नहीं. लेकिन एक बात तो तय है कि कोई ना कोई तो है जो पूरी सरकारी व्यवस्था पर सवाल भी उठा रहा है और यह बताना भी चाह रहा है की व्यवस्था पर सवाल उठ क्यों रहा है. यह दीगर बात है कि देखने वाले नजरिए में कई बदलाव आ चुका है.
जरा पूरे बिहार के बारे में सोचिए:- राजगीर के पुलिस पासिंग आउट परेड में नीतीश कुमार ने कहा था कि पुलिस में भी कई ऐसे लोग हैं जो इधर-उधर करते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जो इधर-उधर कुछ लोग करते हैं उसका परिणाम मुख्यमंत्री आवास के आसपास क्यों आ जाता है. अब बड़ा सवाल यही है कि अगर मुख्यमंत्री आवास के 2 किलोमीटर के भीतर शराब बेची जाती है तो पूरे बिहार में क्या स्थिति होगी. अगर पुलिस को हर चीज की जानकारी होती है तो यह जानकारी कैसे नहीं होती कि शराब यहां तक पहुंची कैसे?
शराबबंदी कानून की 16 नवंबर को नीतीश कुमार ने समीक्षा की थी. उसके बाद बिहार के डीजीपी ने कहा था कि बड़ा टास्क का है और निश्चित तौर पर चुनौती बड़ी है. बीजेपी ने साफ संकेत दे ही दिया था कि शराबबंदी को रोक पाना आसान नहीं है. समझना तो नीतीश कुमार को है कि जिस पुलिस के भरोसे शराबबंदी को अमलीजामा पहनाने में लगे हैं, वह पुलिस काम कैसे करती है इस पर सवाल है.
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पटना में शराब, जवाबदेही किसकी?:-जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा था कि अगर बिहार में पुलिस ईमानदार है तो एक बार नीतीश कुमार अपने पुलिस वालों से शपथ खिलवा लें. आखिर पटना में शराब आई और वह भी मुख्यमंत्री आवास के पास पहुंच गई, इसकी जिम्मेदारी किसकी है. पटना के एसएसपी इसकी जिम्मेदारी लेंगे या फिर कौन पुलिस अधिकारी है जो जिम्मेदारी लेगा कि पटना में शराब नहीं आएगी. अगर यह जिम्मेदारी नहीं ले सकते तो फिर नीतीश कुमार अपने उन पुलिस वालों पर भरोसा क्यों कर रहे हैं जो कभी भरोसे में रहकर काम ही नहीं करते. सवाल तो बड़ा है.
पप्पू यादव पर राजनीतिक आरोप चाहे जो लगे लेकिन सवाल तो निश्चित तौर पर ये उत्तर खोज रहा है कि जिस पटना पुलिस कप्तान के जिम्में पूरा जिला और पूरे राज्य को देने के लिए कानून व्यवस्था का सबसे बड़ा मॉडल है वह इतना फेल क्यों है? ऐसे में बाकी जिलों का अंदाजा लगाना सहज होगा. जिस जिले में मुख्यमंत्री, गवर्नर, डीजीपी, मुख्य सचिव, सरकार के जितने बड़े पद हैं, रहते भी हैं, उसी जिले में मुख्यमंत्री आवास के बगल में ही शराब मिलती है तो जिम्मेदारी किसकी तय की जाएगी, कप्तान की या डीजीपी की या खुद नीतीश कुमार की.
आखिर शिद्दत से सर्च ऑपरेशन के पीछे वजह क्या है?:- बिहार में शराबबंदी है इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में बहुत कुछ बदला है. गिनाने के लिए नीतीश सरकार कहती रहती है कि सड़क दुर्घटनाओं में बहुत कमी आई है लेकिन एक बात यह भी सही है कि जहरीली शराब से मौत भी सेंचुरी लगा चुकी है. अब जो कुछ हो रहा है सवाल उठ रहा है कि यह क्या है. 100 लोगों के मर जाने के बाद नीतीश कुमार का सरकार के लोगों को जिम्मेदार बनाकर के सबक लेने का सर्च अभियान है या अपने गिरेबान में झांक लेने की एक और कहानी इमानदारी की.
जिस शपथ को खाकर तमाम लोग शराब बंदी को बिहार में सफल बना रहे हैं उसके फेल होने के पीछे की कहानी क्या है? शराब आने में लोगों की जान गई, शराब लाने वाले शराब इसलिए ले आए कि उन्होंने कहीं ना कहीं पैसा खर्चा किया और अब शराब को खोजने के लिए सरकार पैसा खर्च कर रही है और पुलिस शराब खोज रही है. अब देख लीजिए कि बिहार के कानून व्यवस्था का हाल क्या है?
जदयू के लोग तो गाना गा ही रहे हैं 'बिहार में बहार है और जो कुछ भी हो रहा है बिहार में उसके लिए सिर्फ और सिर्फ जिम्मेदार नीतीश कुमार है'. जिम्मेदारी इसलिए भी तय हो रही है कि बिहार के विकास की हर जिम्मेदारी जब नीतीश कुमार के कंधे पर ही आती है और इसके लिए श्रेय लेने की एक तैयारी भी चल रही है. कार्यक्रम भी बड़ा होगा. 16 साल में नीतीश कुमार ने बिहार को कितना बदल दिया. बिहार की पुलिस बदलने के लिए जिस तरह से छापेमारी कर रही है और जो चीज खोज रही है और जिसने सेंचुरी लगाई है उसके लिए जिम्मेदारी और जवाबदेही नीतीश कुमार खुद क्यों नहीं लेते? सवाल भी उठ रहा है, विपक्ष का भी रहा है, बस जवाब नहीं आ रहा है. अब देखना है कि बिहार इसका उत्तर पाता कब तक है.
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