पटना: कहते हैं राजनीति में वही नेता 'सिकंदर' कहलाता है जो भविष्य को देखकर रणनीति तैयार करे. ऐसे में जिस प्रकार से जेडीयू (JDU) आगे बढ़ रही है उससे तो साफ जाहिर होता है कि अंदरखाने कोई बड़ी रणनीति बन रही है. नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) बिहार राजनीति के पुरोधा में से एक हैं, इसलिए वह इसपर काम कर रहे हैं.
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दरअसल, जिस प्रकार से जेडीयू एक्शन मोड में आयी है उससे तो साफ ही कहा जा सकता है कि 'कुछ तो है'. नीतीश कुमार 5 साल बाद जनता दरबार में फरियादियों की फरियाद सुन रहे हैं. वहीं उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) 'बिहार यात्रा' के जरिए जनता के बीच जाकर पार्टी के 'खोए हुए जनाधार' को वापस पाने की जुगत में लगे हैं. इधर सरकार की योजनाओं को बताने के लिए जेडीयू ने प्रवक्ताओं की फौज को उतार दिया है, जो 7 दिन अपनी बात रखने में लगे हैं.
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सवाल उठता है कि आखिर नीतीश कुमार के इस एक्शन प्लान के पीछे वजह क्या है. कहीं वह चुनाव की आहट को तो नहीं भांप बैठे हैं. क्योंकि तेजस्वी से लेकर तमाम विपक्षी पार्टी का कहना है कि सरकार गिरने वाली है और मध्यावती चुनाव की संभावना है. जिस तरह से मदन सहनी ने बगावत की और बीजेपी के मंत्री भी अफसरशाही के खिलाफ बोलने लगे, कहीं नीतीश कुमार के मन में यह तो नहीं बैठ गया कि 'कुछ तो गड़बड़ है'.