पटनाः क्या आपके बच्चे स्वस्थ (Healthy Children) हैं. उम्मीद है वे स्वस्थ होंगे. लेकिन जानकर हैरानी होगी कि ज्यादातर बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता घट रही है. याददाश्त पर बुरा असर पड़ रहा है. मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है. यह जानकारी पटना एम्स (Patna AIIMS) में चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े विभिन्न विषयों पर शोध कार्य से मिली है. एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोलॉजी (Department of Physiology) में नींद की गुणवत्ता पर शोध किया जा रहा है. इस शोध के मुताबिक बच्चों को जितनी नींद चाहिए होती है, उतनी नहीं मिल रही है.
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'जहां तक विज्ञान जगत जान पाया है, नींद शरीर के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रिया होती है. शरीर को स्वस्थ बनाए रखने और मन को तरोताजा रखने के लिए अच्छी नींद बेहद जरूरी है. नींद शरीर को हिलिंग में मदद करती है, इन्फ्लेमेशन कम करने में मदद करती है, याददाश्त मजबूत रखने में मदद करती है. इसके अलावा अन्य भी कई सारी चीजों में नींद का बहुत महत्वपूर्ण रोल होता है. इसके अलावा अभी नींद के कई सारे फायदे अज्ञात हैं. जिस पर चिकित्सा जगत शोध कर रहा है. पटना एम्स में भी नींद पर शोध चल रहे हैं कि अच्छी नींद के लिए क्या जरूरी है. किस स्थिति में व्यक्ति डीप स्लीप में जाता है. नींद पर शोध के दौरान बेहद चौंकाने वाली बात सामने आयी है कि आधुनिक जीवन शैली में बच्चों में नींद का समय कम हो गया है. यह बहुत बड़ा खतरा है. आमतौर पर किस व्यक्ति को कितने घंटे सोना चाहिए, यह उसके उम्र पर निर्भर करता है. लेकिन एक व्यस्क की बात करें तो उसके लिए 6 से 8 घंटे की नींद जरूरी है. वहीं स्कूल जाने वाले बच्चों की बात करें तो इन बच्चों के लिए 9 से 11 घंटे की नींद काफी आवश्यक होती है. न्यू बॉर्न बेबी 18 से 20 घंटे सोते हैं, जो उनके शरीर के लिए भी फायदेमंद होता है. सभी इसे महसूस भी करते हैं और देखते भी हैं.'-डॉक्टर कमलेश झा, एसोसिएट प्रोफेसर, न्यूरोफिजियोलॉजी डिपार्टमेंट एम्स पटना
डॉ. कमलेश झा ने बताया कि आधुनिक जीवन शैली में यह शिकायत बढ़ गई है कि बच्चे देर रात तक मोबाइल और टीवी देखते हैं. माता-पिता अगर बाहर ऑफिस में काम करने वाले हैं और लेट से घर आते हैं. बच्चे देर रात तक माता-पिता के साथ बैठकर भी टीवी और मोबाइल देखते हैं. ऐसे में रात 11:00 बजे तक बच्चे जगे रहते हैं.