पटना: कोरोना वायरस का म्यूटेशन चिकित्सा जगत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. बिहार में ओमीक्रोन (Omicron Case In Bihar) की पुष्टि भी हुई है. बिहार में जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए एकमात्र लैब आईजीआईएमएस में है. यहीं पर 32 सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग जांच में 27 सैंपल ओमीक्रोन के मामले मिले, यानी कि 85% मामले ओमीक्रोन के रहे. ऐसे में आईजीआईएमएस में जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया से जुड़े माइक्रोबायोलॉजी विभाग के साइंटिस्ट डॉ अभय कुमार ने बताया (Scientist Abhay Kumar on Mutation Of Omicron Variant) कि सात जिलों में ओमीक्रोन के मामले मिले हैं. उन्होंने बताया, इसके अलावा भी वैरिएंट है जो सामने आ रहे हैं.
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'27 दिसंबर से 1 जनवरी के बीच आईजीआईएमएस में विभिन्न जिलों के मरीजों के कलेक्ट किए गए सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग की प्रक्रिया की गई. इसमें प्रदेश के 7 जिलों में ओमीक्रोन की पुष्टि हुई और 85% मामले ओमीक्रोन के मिले. इसका मतलब यह है कि यह वैरिएंट डेल्टा के ऊपर बहुत तेजी से सुपरसीड कर रहा है. डार्विन का इवोल्यूशन थ्योरी वायरस पर भी लागू होता है और ओमीक्रोन वैरिएंट में म्यूटेशन इस प्रकार से है कि इसकी संक्रामकता अधिक है. लेकिन डेल्टा जितना सीवियर डिजीज कॉज करता था, उतना यह नहीं कर पा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में डेल्टा कहीं देखने को भी ना मिले.'-डॉ. अभय कुमार, साइंटिस्ट, माइक्रोबायोलॉजी विभाग
साइंटिस्ट डॉ. अभय कुमार ने बताया कि ओमीक्रोन के केसे में अभी तक सीवियरीटी अधिक देखने को नहीं मिली है. यह वायरस लंग्स को इफेक्ट कम कर रहा है. उन्होंने बताया कि डार्विन की इवोल्यूशन थ्योरी के तहत वही वायरस या बैक्टीरिया अधिक समय के लिए सरवाइव कर पाता है, जो माइल्ड डिजीज कॉज करता है. यदि कोई वायरस या बैक्टीरिया किसी शरीर को इनफेक्ट करता है और उस शरीर को ही यदि मार देता है, तो उसके स्प्रेड करने की क्षमता कम हो जाती है. यदि वायरस और बैक्टीरिया शरीर को हल्के से मध्यम बीमारी देकर छोड़ देता है, तो उसके फैलने की क्षमता अधिक बढ़ जाती है.
आईजीआईएमएस की जीनोम सिक्वेंसिंग लैब में लगे 32 सैंपल में एक सैंपल का रिपोर्ट नहीं मिल पाया. इसके बारे में साइंटिस्ट डॉ. अभय कुमार ने बताया कि वायरस का जीनोम लगभग 30 केबी का होता है, इस सैंपल का जीनोम कवरेज कम था, इस वजह से सैंपल का रिजल्ट नहीं आ पाया. उन्होंने बताया कि इसके जीनोम का कवरेज पूरा नहीं आया, ऐसे में इसे वायरस के अन्य वैरिएंट से कंपेयर नहीं किया जा सका और इसलिए नहीं पता चल पाया कि यह कौन सा वैरिएंट है. उन्होंने बताया कि कई बार ऐसा होता है कि जीनोम सिक्वेंसिंग की प्रक्रिया के दौरान कुछ सैंपल का रिजल्ट नहीं आ पाता है.
मीडिया में इन दिनों डेल्टाक्रोन की खूब चर्चा हो रही है. ऐसे में डॉ. अभय कुमार ने बताया कि डेल्टाक्रोन ऐसा स्ट्रेन है, जिसमें एक ही वायरस में ओमीक्रोन और डेल्टा दोनों के लक्षण मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि अभी यह दुनिया के कुछ देशों में 1-2 ऐसे मामले मिले हैं, जिस पर साइंटिफिक फील्ड के लोग रिसर्च कर रहे हैं. अगर इस प्रकार का कुछ मिलता है, तो इसका नामकरण भी अलग होगा. क्योंकि कोरोना वायरस के जितने भी म्यूटेशन हो रहे हैं, उनका नोमेनक्लेचर रोमन सिस्टम पर है, जैसे कि सबसे पहले अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, ओमीक्रोन, एफ्सेलॉन. कोई अगर नया स्ट्रेन आता है तो उसका भी नामकरण रोमन सिस्टम पर ही होगा. डेल्टाक्रोन के बारे में अब तक किसी मेडिकल जर्नल ने या फिर डब्ल्यूएचओ ने अप्रूवल नहीं दिया है, लेकिन साइंटिफिक फील्ड इस तरह के एक-आध मामले आने पर शोध कर रही है. भारत में इस प्रकार का कोई केस सामने नहीं आया है.