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जिस पर यूनिवर्सिटी की गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी, वही क्यों 'भ्रष्टाचार की गंगोत्री' में लगाने लगे डुबकी? - corruption cases against Vice Chancellor

बिहार में कुलपतियों की नियुक्ति (Appointment of Vice Chancellors in Bihar) सर्च कमेटी के माध्यम से होती है, लेकिन इसके बावजूद कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के मामले कम नहीं हो रहे हैं. निगरानी के छापे के बाद मगध विश्वविद्यालय (Magadha University) के कुलपति राजेंद्र प्रसाद से 1 करोड़ से अधिक की नगदी मिलना और 30 करोड़ों की अवैध संपत्ति मामले को लेकर कुलपति का पद एक बार चर्चा में हैं. आखिर क्यों एक के बाद एक कुलपति भ्रष्टाचार के घेरे में आ रहे हैं. पढ़ें खास रिपोर्ट...

कुलपतियों पर भ्रष्टाचार का आरोप
कुलपतियों पर भ्रष्टाचार का आरोप

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Published : Nov 22, 2021, 7:56 PM IST

पटना: कभी कुलपति का पद बहुत ही गरिमा पूर्ण हुआ करता था, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद यह पद भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है. सरकार की ओर से अपनी पसंद के लोगों को कुलपति बनाए जाने के कारण अक्सर विवाद रहता है. हालांकि अब सर्च कमिटी कुलपतियों की नियुक्ति (Appointment of Vice Chancellors in Bihar) करती है. सर्च कमेटी में राजभवन और सरकार की तरफ से नॉमिनेट किए जाते हैं और अंत में राज्यपाल और मुख्यमंत्री की सहमति से ही कुलपति की नियुक्ति होती है. वैसे कुलपतियों पर भ्रष्टाचार (Allegations of Corruption Against VC) के मामले पिछले डेढ़-दो दशक में काफी बढ़े हैं. विवाद में नया मामला मगध विश्वविद्यालय (Magadha University) के कुलपति राजेंद्र प्रसाद का है, जिनके आवास से निगरानी ने एक करोड़ से अधिक कैश बरामद की है. साथ ही करोड़ों की संपत्ति का भी पता चला है.

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विवादों के कारण कई कुलपति अपना टाइम भी पूरा नहीं कर सके हैं और बीच में ही कुलपति का पद छोड़ना पड़ा है. जिन कुलपतियों को पद त्यागना पड़ा है, उनमें राजेश कुमार (पूर्णिया विश्वविद्यालय), प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता (भागलपुर विश्वविद्यालय), प्रोफेसर एसएन प्रसाद (नालंदा खुला विश्वविद्यालय) और प्रोफेसर गिरीश चंद्र जायसवाल (पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय) शामिल हैं. इसी तरह प्रो-वीसी के पद भी विवादों में रहा है.

देखें रिपोर्ट

शिक्षाविद और बिहार विधान परिषद के सदस्य नवल किशोर यादव का कहना है कि बिहार में कुलपतियों को लेकर जिस तरह की स्थिति सामने आ रही है, वह ठीक नहीं है. अधिकांश पर भ्रष्टाचार के मामले हैं और बिहार की उच्च शिक्षा पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है. उन्होंने कहा कि यदि मुख्यमंत्री ने इस पर पैनी नजर नहीं दी तो जो 25% बचा है, वह भी समाप्त हो जाएगा.

"अधिकांश कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के मामले हैं, जिस वजह से बिहार की उच्च शिक्षा पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है. यदि मुख्यमंत्री ने इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया तो जो 25% बचा है, वह भी समाप्त हो जाएगा"- नवल किशोर यादव, विधान पार्षद, बीजेपी

वहीं, आरजेडी के वरिष्ठ नेता आलोक मेहता का कहना है कि बिहार में भ्रष्टाचार और अपराध के माहौल का ही असर ही है कि नियुक्ति तो प्रक्रिया से ही होती है, लेकिन किस तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप और अन्य चीजें होती है किसी से छिपा नहीं है. इसलिए पूरी जिम्मेवारी सरकार को ही लेनी होगी.

बिहार में कुलपति की नियुक्ति तो प्रक्रिया से ही होती है, लेकिन किस तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप और अन्य चीजें होती है वह किसी से छिपा नहीं है. इसलिए मेरा तो मानना है कि पूरी जिम्मेवारी सरकार को ही लेनी होगी"- आलोक मेहता, महासचिव, आरजेडी

पटना विश्वविद्यालय प्रोफेसर रहे रणधीर का कहना है कि एक समय बिहार शिक्षा का हब हुआ करता था, लेकिन आज जहां प्राइवेट यूनिवर्सिटी ग्रो कर रही है वही स्टेट यूनिवर्सिटी नीचे जा रही है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि नियुक्ति में जमकर नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. दूसरे राज्यों से कुलपति लाए जा रहे हैं. यदि मुख्यमंत्री और राज्यपाल पूरे मामले को गंभीरता से नहीं लेंगे तो बिहार की शिक्षा पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी. जिन कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, उन्हें तुरंत बिहार के विश्वविद्यालयों से बाहर निकाल देना चाहिए.

" हाल के सालों में जिस तरह से दूसरे राज्यों से कुलपति लाए जा रहे हैं, उसी से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है. यदि मुख्यमंत्री और राज्यपाल पूरे मामले को गंभीरता से नहीं लेंगे तो बिहार की शिक्षा पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी"- प्रो. रणधीर कुमार, शिक्षाविद


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दरअसल, बिहार में पहले मुख्यमंत्री स्तर से कुलपतियों के नाम राजभवन को भेजे जाते थे और उसी में से राजभवन चयनित करता था लेकिन अब चयन करने की प्रक्रिया बदल गई है. राजभवन की ओर से पहले विज्ञापन निकाला जाता है और फिर योग्यता रखने वाले आवेदन करते हैं. उसके बाद स्क्रीनिंग कमिटी स्क्रीनिंग करती है. उसके बाद सेलेक्शन कमिटी कुलपतियों का चयन करती है. सेलेक्शन और स्क्रीनिंग कमेटी में राज भवन और सरकार की तरफ से नॉमिनी होते हैं. पांच-पांच सदस्य दोनों में होते हैं. जब कुलपति के नामों का चयन हो जाता है तो फिर मुख्यमंत्री और राज्यपाल सह कुलाधिपति की सहमति से नियुक्ति करते हैं. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से उत्तर प्रदेश के कुलपतियों की बिहार में भरमार रही है. इसको लेकर भी शिक्षाविद सवाल खड़े करते रहे हैं. मगध विश्वविद्यालय में तो लगातार कुलपति भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे रहे हैं. उससे पहले जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा, पटना विश्वविद्यालय, नालंदा खुला विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों पर आरोप लगते रहे हैं.

कुलपतियों पर वित्तीय अनियमितता का लगातार आरोप लग रहा है. परीक्षा कराने से लेकर निर्माण कार्यों में टेंडर और अन्य कार्यों को लेकर लगातार कुलपति के फैसलों पर सवाल खड़े होते रहे हैं. यही नहीं प्रोफेसर के तबादले से लेकर विश्वविद्यालय के कॉलेजों में नियुक्ति को लेकर भी आरोप लगते रहे हैं. मगध विश्वविद्यालय के कुलपति के पास से जिस प्रकार बड़ी रकम प्राप्त हुई है, उससे साफ है कि बिहार में उच्च शिक्षा में बड़ा खेल चल रहा है और उसका नुकसान बिहार के छात्रों को हो रहा है.

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