पटना:बिहार में 2016 से शराबबंदी (Liquor Ban) लागू है. इसकी मुख्यमंत्री नीतीश कुमारकई बार समीक्षा कर चुके हैं. शराबबंदी के बाद पहली बार 16 नवंबर को 7 घंटे तक मैराथन विस्तृत स्तर पर समीक्षा की गई. कई निर्देश भी दिए गए, लेकिन मुख्यमंत्री की समीक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं. विपक्ष कह रहा है कि यह आई वॉश है, लेकिन मंत्री का कहना है कि समीक्षा बैठक गंभीरता से हुई है और सख्ती से इसे हम लागू करेंगे.
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वहीं, विशेषज्ञों का इस पर कहना है कि समीक्षा बैठक तो सही है, लेकिन और प्रयास करने की जरूरत है, मूल्यांकन भी कराना चाहिए. बिहार के विपक्षी दल मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक पर लगातार सवाल दाग रहे हैं. आरजेडी के लोग इसे आई वॉश बता रहे हैं. लेकिन जदयू कोटे के मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार का कहना है कि ''मुख्यमंत्री ने गंभीरता के साथ बैठक की है और शक्ति से शराबबंदी कानून हम लोग लागू करेंगे, जिनके खिलाफ भी साक्ष्य मिलेगा उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे. विपक्ष के पास कोई सुझाव है तो दें.''
शराबबंदी समीक्षा को लेकर एन सिन्हा शोध संस्थान के विशेषज्ञ विद्यार्थी विकास का कहना है कि ''समीक्षा बैठक तो होनी चाहिए, लेकिन इसके अलावा दूसरे प्रयास भी होने चाहिए. सरकार को शराबबंदी का मूल्यांकन भी करवाना चाहिए, शराब कहां से आ रही है और कहां-कहां बिक रही है इसका भी सर्वे कराना चाहिए.''
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वहीं, गांधी संग्रहालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री आसिफ वली का कहना है कि ''मुख्यमंत्री की ईमानदारी पर शक करना सही नहीं है. मुख्यमंत्री चाहते हैं शराबबंदी पूरी तरह से लागू हो, लेकिन प्रशासन के लोगों की भी जिम्मेवारी है. शराबबंदी के बावजूद कैसे प्रदेश में शराब आ जा रहा है और हम लोगों को भी मदद करने की जरूरत है.''
बिहार में 2016 से शराबबंदी लागू है. पूर्ण शराबबंदी के बावजूद पिछले पौने 6 साल में बड़े पैमाने पर कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं और बड़े पैमाने पर शराब की बरामदगी भी हुई है. इस साल जहरीली शराब पीने से 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और इन सबके कारण ही विपक्ष को हमला करने का मौका मिल रहा है. नीतीश कुमार इन सबको लेकर समीक्षा बैठक भी की है और अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय की है. ऐसे में देखना होगा कि समीक्षा बैठक का आने वाले दिनों में क्या असर होता है.