पटना: पिछले कुछ समय से बिहार की राजनीति में छोटे दलों की भूमिका (Role of Small Parties in Bihar Politics) सीमित होती जा रही है. खासतौर पर दलित और अति पिछड़ों की नुमाइंदगी करने वाले नेता एक-एक कर हाशिए पर जाते दिख रहे हैं. बड़े दलों से टकराव की वजह से छोटे दलों को खामियाजा भुगतना पड़ा है. पहले एलजेपीआर अध्यक्ष चिराग पासवान (LJPR President Chirag Paswan) और अबवीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) की पार्टी टूट चुकी है. सियासत में दोनों का दर्द एक जैसा है. दोनों नेता 6 फीसदी वोट बैंक की राजनीति करने का दावा करते हैं. चिराग जहां दलित सियासत के 'प्रतीक' बन गए हैं, वहीं सहनी अति पिछड़ा वोट बैंक पर अपना दावा करते हैं.
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6 फीसदी वोट बैंक की सियासत: बिहार में निषाद और पासवान वोट करीब-करीब 6 प्रतिशत. दलित वोट बैंक जहां चिराग की ताकत है तो वहीं मुकेश सहनी निषादों के वोट के आसरे आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि दोनों की सियासत में अंतर है. चिराग पासवान को विरासत में सियासत मिली लेकिन मुकेश सहनी ने खुद की बदौलत सियासी जमीन तैयार की है. चिराग को जहां नीतीश कुमार से दुश्मनी महंगी पड़ी तो वहीं सहनी को बीजेपी से पंगा लेना महंगा पड़ा. दोनों ही नेताओं को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) छोड़ना पड़ा और आज की तारीख में उनकी राजनीतिक नैया मझधार में फंसी है. बिहार की राजनीति का कड़वा सच यह भी है कि जिस वोट बैंक का दावा मुकेश सहनी और चिराग पासवान करते हैं, उस वोट बैंक के सहारे बिहार में विधानसभा की एक भी सीट नहीं जीती जा सकती है. ऐसे में दोनों नेताओं को किसी मजबूत कंधे के सहारे की जरूरत है. 'एकला चलो रे' की राह पर चलना दोनों नेताओं के लिए अग्निपथ पर चलने से भी ज्यादा कठिन साबित होगा.
नीतीश से अदावत, एलजेपी में दो फाड़: रामविलास पासवान के निधन के तुरंत बाद बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग ने जेडीयू से दो-दो हाथ किया था और उसको जमकर नुकसान भी पहुंचाया. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गई लेकिन उनकी पार्टी महज 43 सीट ही जीत पाई. बाद में जेडीयू ने इसका बदला लिया और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को दो टुकड़ों में बांट दिया गया. चिराग पार्टी में अकेले सांसद रह गए और पशुपति पारस को नीतीश कुमार की मदद से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया.
बीजेपी से दुश्मनी सहनी को महंगी पड़ी:उधर, मुकेश सहनी को बीजेपी से दुश्मनी महंगी पड़ी. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ना और उस दौरान खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ की मुखालफत बीजेपी को नागवार गुजरी. ऊपर सेबोचहां विधानसभा उपचुनावमें मुकेश सहनी की ओर से उम्मीदवार खड़ा करना आत्मघाती साबित हुआ. बिना देरी किए बीजेपी ने वीआईपी के तीनों विधायकों को पार्टी में शामिल करा लिया. इतना ही नहीं सहनी को नीतीश मंत्रिमंडल से भी बाहर कर दिया गया.