पटना: आदि गंगा के नाम से चर्चित पुनपुन नदी घाट पर रविवार से पितृपक्ष (Pitri Paksh) की शुरुआत हो चुकी है. सुबह से ही सैकड़ों की संख्या मे पिंडदानी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान (Pind Daan) का पहला तर्पण पुनपुन में कर रहे हैं. उसके बाद मोक्ष की धरती गया की ओर प्रस्थान करते हैं.
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गौरतलब है कि कोविड महामारी को लेकर अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेला का आयोजन सरकारी तौर पर नहीं किया गया है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं को देने की बात कही गई थी. इधर, पुनपुन में रविवार से प्रारंभ पितृपक्ष को लेकर मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव दिखा.
पंडा समितियों में आक्रोश जताया है कि नदी में स्नान करने वाले पिंडदानी के साथ कभी भी कोई घटना हो सकती है. साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं की गई है. बिजली-पानी नहीं है. ऐसे में पिंडदान का प्रथम द्वार के नाम से प्रसिद्ध पुनपुन नदी को सरकार ने अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष स्थल घोषित किया है. वहीं, हजारों की संख्या में पिंडदानी यहां पर आते हैं. यहां पर बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, नेपाल से हजारों की संख्या में लोग पिंडदान करने हर साल आते हैं. अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड का तर्पण करते हैं. उसके बाद गया में पिंडदान विधि-विधान करते हैं.
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पुनपुन पिंडदान का प्रथम द्वार है. आज से एक महीने तक यह पिंडदान चलेगा. इसे लेकर पिंडदानियों का आना-जाना शुरू हो गया है. पहले ही दिन 300 से अधिक पिंडदानियों अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान का तर्पण किया. उसके बाद वे गया की ओर प्रस्थान कर गए. पुराणों में वर्णित है कि पुनपुन में भगवान श्री राम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंड का पहला तर्पण किया था. उसके बाद ही गया के फल्गु नदी के तट पर पिंडदान का तर्पण पूरा किया था.
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