पटना:बिहार में बेरोजगारी (Unemployment in Bihar) सबसे बड़े मुद्दों में से एक है. हालात कुछ ऐसे हैं कि चुनाव में जब विपक्ष बिहार में रोजगार का मुद्दा (Employment issue in Bihar) बनाता है तो सरकार बढ़-चढ़कर रोजगार देने का दावा करती है. विपक्ष और सरकार विधानसभा चुनाव में रोजगार का मुद्दा जरूर बनाते हैं, लेकिन बिहार विधानमंडल सत्र में बेरोजगारी का मुद्दा (Unemployment issue in Bihar Legislature session) छोटा हो जाता है और इस पर अन्य मुद्दे हावी हो जाते हैं.
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लाखों की संख्या में सालों से बिहार के विभागों में रिक्तियां भरी नहीं गई हैं. हजारों रिक्तियों को लेकर बहाली की प्रक्रिया पिछले कई सालों से लटकी हुई हैं. जिनमें बिहार कर्मचारी चयन आयोग (Bihar Staff Selection Commission) के इंटर लेवल प्रथम बहाली प्रक्रिया भी शामिल है, जिसके तहत वर्ष 2014 में 13 हजार से ज्यादा पदों पर बहाली निकाली गई थी और यह अब तक पूरी नहीं हो पाई है. पिछले 3 साल से सवा लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद नहीं भरे जा चुके हैं. इनके अलावा डॉक्टर, पारा मेडिकल स्टाफ और सचिवालय के साथ कई अन्य विभागों में ग्रुप सी और ग्रुप डी के पद बड़ी संख्या में खाली पड़े हैं.
बेरोजगारी शब्द ने बिहार के लाखों युवाओं के भविष्य पर सवालिया निशान रखा रखा है. बिहार में उद्योगों की कमी (Lack of Industries in Bihar) और सरकारी नौकरियों पर लगी अघोषित रोक ने युवाओं को परेशान कर रखा है. पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान बेरोजगारी के मुद्दे पर ही विपक्ष ने चुनाव लड़ा और नंबर वन पार्टी का दर्जा प्राप्त कर लिया. एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) के नेता बेरोजगारी को लेकर बड़ी रैली करने वाले हैं. राजद नेता यह कह रहे हैं कि बेरोजगारी सबसे बड़ा अभिशाप है जिससे बिहार का हर युवा प्रभावित है लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है.
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