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क्रिकेट की तरह राजनीति में भी 'स्लेजिंग', भावनाओं को उभारने के लिए माइंड गेम की तरह होता है इस्तेमाल - जेडीयू

तारापुर और कुशेश्वरस्थान उपचुनाव (Tarapur and Kusheshwarsthan By-elections) के दौरान असल मुद्दों से अलग आपत्तिजनक और भावनात्मक बयान खूब दिए गए. नेताओं ने 'भकचोन्हर' से लेकर गोली मरवाने तक की बात कहकर अपने समर्थकों की भावनाओं को उभारने की भरपूर कोशिश है. हालांकि ये कोई नई बात नहीं है, इसका तो लंबा इतिहास भी है. पढ़ें खास रिपोर्ट...

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Published : Oct 27, 2021, 10:37 PM IST

Updated : Oct 28, 2021, 8:51 AM IST

पटना: बिहार में 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव (By-elections) को लेकर राजनीतिक दलों के बीच जोर आजमाइश चल रही है. लंबे अरसे के बाद बिहार में बड़े भाई और छोटे भाई के बीच भी सीधा मुकाबला हो रहा है. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और मुख्यमंत्रीनीतीश कुमार (Nitish Kumar) दो-दो हाथ कर रहे हैं. रणनीतिक तौर पर नेताओं का माइंड गेम भी जारी है. पटना की धरती पर पहुंचने से पहले लालू ने कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास (Bhakt Charan Das) को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की और आने के बाद नीतीश के लिए 'विसर्जन' शब्द का इस्तेमाल किया. जिसके बाद सूबे की सियासत में उबाल आ गया.

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लालू यादव के बयान के बाद कांग्रेस और जेडीयू खेमे में हलचल मच गई और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया. कांग्रेस ने जहां भक्त चरण दास पर कथित अपशब्द को दलित का अपमान बता दिया, वहीं नीतीश कुमार ने विसर्जन के जवाब में कहा दिया कि 'वो चाहें तो मुझे होली भी मरवा सकते हैं'. इसी बहाने उन्होंने 'जंगलराज' की याद दिलाने की कोशिश की.

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लालू प्रसाद यादव ने अपने एक और बयान से कांग्रेस खेमे को नाराज कर दिया, जिसमें उन्होंने प्रदेश स्तर के नेताओं को 'छुटभैया नेता' करार दे दिया. इसका जमकर विरोध हुआ और आरजेडी अध्यक्ष के लिए भी कड़ें शब्दों का इस्तेमाल किया गया.

क्रिकेट में विरोधी खिलाड़ियों को नीचा दिखाने के लिए आम तौर पर स्लेजिंग (Sledging) की जाती है, लेकिन अब यह राजनीति में भी फैशन बन चुकी है. राजनीतिक दलों के नेता पहले तो एक-दूसरे को उकसाते हैं और फिर उसके बाद शब्दों की बाजीगरी कर जनता का ध्यान भटकाते हैं. जाहिर है भोली-भाली जनता भी बहुत आसानी से नेताओं के बहकावे में आ जाती है.

वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब ऐसे बयान चुनावी हथकंडा बने हों. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के 'नीच राजनीति' वाले बयान को भी चुनावी मुद्दा बनाया गया था. उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नीतीश कुमार के 'राजनीतिक डीएनए' को लेकर जब बयान दिया गया था तो बिहार में खूब सियासत हुई थी. वहीं, उपेंद्र कुशवाहा को लेकर पूछे गए सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा था कि 'डिबेट को निचले स्तर पर मत ले जाइए', तभी कुशवाहा ने उस बयान को मुद्दा बनाया था.

याद करिए कि किस तरह 2020 विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने भावनात्मक कार्ड खेला था. जब सीमांचल में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था, 'यह मेरा अंतिम चुनाव है अंत भला तो सब भला'. नीतीश कुमार के बयान का जेडीयू को फायदा मिला और सीमांचल इलाके में पार्टी ने बढ़त बनाई.

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वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि नेता अपने समर्थकों के सेंटीमेंट को उभारने के लिए शब्दों को पकड़ते हैं और उसे मुद्दा बनाते हैं. लालू यादव नीतीश कुमार को गोली मरवाने नहीं जा रहे थे, लेकिन फिर भी जंगलराज याद ताजा करने के लिए मुख्यमंत्री ने बयान दिया. दरअसल राजनेता वास्तविक मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना चाहते हैं, इसलिए ऐसे बयान दिए जाते हैं.

"सभी नेता अपने समर्थकों के सेंटीमेंट को उभारने के लिए इस तरह के शब्दों को पकड़ते हैं और उसे मुद्दा बनाते हैं. लालू यादव थोड़े ही ना नीतीश कुमार को गोली मरवाने जा रहे थे, लेकिन फिर भी जंगलराज याद ताजा करने के लिए मुख्यमंत्री ने बयान दे दिया"- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं कि यह पहला मौका नहीं है जब इस तरीके के बयान दिए जा रहे हैं. लंबे समय से राजनीति में यह सब चलता रहा है. राजनीतिज्ञों के लिए एक तरीके से यह अस्त्र की तरह है, जिसका इस्तेमाल कर वह चुनाव जीतना चाहते हैं. मेरी समझ से चुनावी राजनीति में यह जायज है.

"देखिये यह पहला मौका नहीं है, जब इस तरह के बयान दिए गए हैं. लंबे समय से राजनीति में यह सब चलता रहा है. नेताओं के लिए यह सब एक तरीके से अस्त्र-शस्त्र की तरह है, जिसका इस्तेमाल कर वह चुनाव जीतना चाहते हैं"- कन्हैया भेलारी, वरिष्ठ पत्रकार

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वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार नेताओं के बयान को माइंड गेम करार देते हैं. वे कहते हैं कि नेता रणनीति के तहत महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से आम लोगों का ध्यान बहुत आसानी से भटका देते हैं. और जनता भी इनके चंगुल में फंस जाती है. नेता अपने समर्थकों के सेंटीमेंट को जगाने में भी कामयाब हो जाते हैं, जिससे उनको चुनावों में फायदा मिल जाता है. भोली भाली जनता बहुत आसानी से ठगी जाती है और सियासतदान अपनी सियासत चमकाते रहते हैं.

"यह एक तरह से माइंम गेम है. सभी नेता रणनीति के तहत महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से आम लोगों का ध्यान बहुत आसानी से भटका देते हैं और जनता भी उनके चंगुल में फंस जाती है. नेता अपने समर्थकों के सेंटीमेंट को जगाने में भी कामयाब हो जाते हैं, जिससे उनको चुनावों में फायदा मिल जाता है"- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

Last Updated : Oct 28, 2021, 8:51 AM IST

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