पटना:विवादों की वजह से राज्यपाल कोटे से होने वाले विधान पार्षद के मनोनयन को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. एनडीए के शीर्ष नेताओं ने एक तीर से कई शिकार किए है. विवाद से बचने के लिए मामले को फिलहाल टाल दिया गया है.
लालू की गलती दोहरा रहे हैं नीतीश!
लालू प्रसाद यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में एक गलती की थी. शायद उसी गलती को सीएम नीतीश कुमार भी दोहरा रहे हैं. साल 2004 में लालू प्रसाद यादव ने भी विधान परिषद की 12 सीटों के लिए राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन को टाल दिया था. उस दौरान उन्होंने कहा था कि अगली बार सरकार बनने पर मनोनयन कर लिया जाएगा. लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी सरकार नहीं बन पाई और नीतीश कुमार की सरकार ने मनोनयन पूरा किया.
रणनीति के तहत टाला गया राज्यपाल कोटे से होने वाला मनोनयन
नीतीश कुमार ने भी रणनीति के तहत राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन को टाल दिया है. कहा जा रहा है कि नीतीश ने एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश की है. एक तरफ जहां चिराग पासवान के आगे नीतीश नहीं झुके, वहीं दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव में कई नेताओं को राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन को लेकर आश्वासन दिया जा सकता है. बीजेपी और जेडीयू के शीर्ष नेता शायद यह सोच रहे होंगे कि जिन विधायकों को टिकट नहीं मिलेगा, उन्हें विधान परिषद में एडजस्ट किया जाने के नाम पर लिया जाएगा.
कार्यकर्ताओं को थमाया जा रहा है लॉलीपॉप!
विधानसभा चुनाव के दौरान कई नेता भी बेटिकट होने वाले हैं. पार्टियों को डर है कि ऐसे नेता बगावत करेंगे और निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसी स्थिति में वैसे नेताओं को मनाने के लिए राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन का लॉलीपॉप राजनीतिक दलों के पास होगा. इस आधार पर वे असंतुष्ट नेताओं को चुनाव के दौरान मना सकते हैं. एनडीए के शीर्ष नेता शायद इसी रणनीति के तहत काम भी कर रहे हैं.
एमएलसी मनोनयन एक तुरुप का इक्का
बता दें कि पिछला चुनाव बीजेपी और जेडीयू ने अलग-अलग लड़ा था, लेकिन इस बार दोनों दल एक साथ है. ऐसे में कई विधायकों का टिकट कटना तय माना जा रहा है. वैसी स्थिति में बीजेपी और जेडीयू के शीर्ष नेताओं के लिए एमएलसी मनोनयन एक तुरुप का इक्का साबित हो सकता है.