पटना: बिहार के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) जब भी किसी बदलाव की तरफ जाते हैं, उनकी नीतियों और निर्णय पर चर्चा लाजमी है. नीतीश कुमार ने बिहार में जो कुछ किया और बिहार के साथ जिस तरह उनका निर्णयों सफल रहा है, उसमें कुछ नाम ऐसे हैं जो उनकी सफलता की कहानी कहते हैं. जब वे अलग हो गए तो नीतीश के लिए परेशानियां बढ़ गई हैं. उस दौर की सियासत में जैसी स्थिरता नीतीश कुमार को मिली, आज राजनीतक स्थिरता की कमी साफ दिखती है.
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नीतीश कुमार की राजनीति में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी (Former PM Atal Bihari Bajpai) का जॉर्ज फर्नांडीस से मिलने एम्स जाना था. यहां से बदली सियासत ने नीतीश के कैरियर में वह स्थान दिया जहां उनके आगे बैठा नेता सिर्फ उनको संरक्षण देता रहा.
नीतीश जब तक जॉर्ज फर्नांडिस की छांव में थे, लगातार राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते गये. लेकिन यह भी तय था कि नीतीश के निर्णय में बहुत हद तक शब्दों में ही सही, लेकिन वरिष्ठ नेताओं की राय रहती थी. अब नीतीश कुमार स्वयं निर्णय लेते हैं. ऐसे में नीतियां बहुत हद तक बड़ी नहीं हो पा रही हैं.