पटना सिटीः 350वां प्रकाशपर्व के बाद से तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब गुरुद्वारा परिसर में देश-विदेश से आने वाले सिख समुदाय के लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसको देखते हुए गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी और कार सेवा समिति की ओर से परिसर में 200 कमरे की क्षमता वाले 10 मंजिला भवन का निर्माण (New Building Will be Built in Patna Sahib Gurdwara) कराने का निर्णय लिया गया है. बाबा कश्मीर सिंह भूरी बाले बाबा की देखरेख में नये भवन का निर्माण किया जाएगा.
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बुधवार को नये भवन की नींव रखी गयी. मौके पर तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी के प्रधान सरदार अवतार सिंह हीत, प्रमुख जत्थेदार ज्ञानी रंजीत सिंह गौहरे मस्कीन, समेत कई लोग मौजूद रहे. वहीं इन सबों की मौजूदगी में बाल लीला गुरुद्वारा मैनी संगत के प्रमुख बाबा कश्मीर सिंह भूरी बाले बाबा ने अपनी ओर से कार सेवा की सुरुआत की. बाबा कश्मीर सिंह भूरी बाले बाबा ने कहा कि दशमेश पिता श्री गुरुगोविंद सिंह जी महाराज के 350वां प्रकाशपर्व के आयोजन के समय से पटना साहिब में गुरु महाराज के प्रकाशपर्व में देश-विदेश से श्रद्धालुओं की सेवा दी जाती है. श्रद्धालुओ को कोई परेशानी न हो इसके लिये प्रबंधन कमिटी और कार सेवा ने 200 कमरे बाला 10 मंजिला भबन बनाने का फैसला लिया है.
गुरु गोविंद सिंह एक विलक्षण क्रांतिकारी संत व्यक्तित्व हैंःउल्लेखनीय है कि इतिहास में गुरु गोविंद सिंह एक विलक्षण क्रांतिकारी संत व्यक्तित्व हैं. गुरु गोविंद सिंहजी ने राष्ट्र के उत्थान के लिए संघर्ष के साथ-साथ निर्माण की राह अपनायी है. गुरु गोविंद सिंह केवल आदर्शवादी नहीं थे, बल्कि वे एक आध्यात्मिक गुरु भी, उन्होंने मानवता को शांति, प्रेम, एकता, समानता एवं समृद्धि का रास्ता दिखाया. वे व्यावहारिक एवं यथार्थवादी होने के साथ अपने अनुयायियों को धर्म की पुरानी और अनुदार परंपराओं से नहीं बांधा बल्कि उन्हें नए रास्ते बताते हुए आध्यात्मिकता के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण दिखाया. संन्यासी जीवन के संबंध में गुरु गोविंद सिंह ने कहा है कि एक सिख के लिए संसार से विरक्त होना आवश्यक नहीं है तथा अनुरक्ति भी जरूरी नहीं है, किंतु व्यावहारिक सिद्धांत पर सदा कर्म करते रहना परम आवश्यक है.
यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ींः गोविंद सिंह ने कभी भी जमीन, धन-संपदा, राजसत्ता-प्राप्ति या यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं. उनकी लड़ाई होती थी अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ. युद्ध के बारे में वे कहते थे कि जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं, उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है. जो नैतिक एवं सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्मयोद्धा होता है तथा ईश्वर उसे विजयी बनाता है.गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना (1699) देश के चौमुखी उत्थान की व्यापक कल्पना थी. बाबा बुड्ढाजी ने गुरु गोविंद सिंह को मीरी और पीरी दो तलवारें पहनाई थीं. एक आध्यात्मिकता की प्रतीक थी, तो दूसरी नैतिकता यानी सांसारिकता की. देश की अस्मिता, भारतीय विरासत और जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए समाज को नए सिरे से तैयार करने के लिए उन्होंने खालसा के सृजन का मार्ग अपनाया.
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