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सख्ती भी, राहत भी: शराब बेचने वालों पर चलेगा बुलडोजर, इस शर्त पर छूट सकेंगे शराबी - मद्य निषेध और उत्‍पाद संशोधन विधेयक 2022

तमाम आलोचनाओं के बीच आखिरकार बिहार में शराबबंदी कानून में संशोधन (Amendment in Prohibition Law) किया गया है. बिहार विधानसभा से विधेयक को हरी झंडी मिल गई है. अब शराबबंदी कानून में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ है कि शराब पीकर पहली बार पकड़े जाने वालों को जेल नहीं जाना पड़ेगा. मजिस्ट्रेट को जुर्माना देकर आरोपी छूट सकते हैं. हालांकि कई सख्त प्रावधान भी किए गए हैं. वहीं सरकार के इस कदम पर विपक्ष ने तंज कसा है. पढ़ें खास रिपोर्ट...

शराबबंदी कानून में संशोधन
शराबबंदी कानून में संशोधन

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Published : Mar 30, 2022, 8:40 PM IST

पटना: बिहार विधानसभा में बुधवार को शराबबंदी कानून में संशोधन (Amendment in Prohibition Law) विधेयक पास हो गया. आबकारी मंत्री सुनील कुमार ने सदन में मद्य निषेध और उत्‍पाद संशोधन विधेयक 2022 (Liquor Prohibition Amendment Bill 2022) पेश किया था. संशोधन को नीतीश कैबिनेट ने पहले ही मंजूरी दे दी थी. संशोधिक विधेयक को राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. इसके बाद यह कानून का रूप ले लेगा. इस विधेयक में एक तरफ जहां लोगों को राहत दी गई है, वहीं तरफ सख्ती भी बरती गई है. जुर्माना देकर शराब पीने वालों को छोड़ने का प्रावधान है तो कड़ी कार्रवाई के साथ-साथ बुलडोजर भी चलेगा. सत्ता पक्ष का कहना है कि संशोधन के बाद इन कानून को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा. हालांकि आरजेडी का दावा है कि सरकार बैकफुट पर है. वहीं कांग्रेस की विधायक ने शराबबंदी कानून को वापस लेने की मांग की.


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मजिस्‍ट्रेट ने चाहा तो तुरंत छूटेंगे शराबी:मद्य निषेध और उत्पाद संशोधन विधेयक 2022 के मुताबिक शराब पीते या शराब के नशे में पकड़े गए व्यक्ति को जुर्माना का भुगतान करने पर छोड़ा जा सकता है. जुर्माना नहीं चुकाने पर एक महीने के साधारण कारावास का प्रावधान है. शराब पीने के आरोप में पकड़े गए शख्स को नजदीक के कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और यदि वह जुर्माना जमा करता है तो उसे छोड़ा जा सकता है. मजिस्ट्रेट गिरफ्तार करने वाले पदाधिकारियों की रिपोर्ट पर फैसला लेंगे.

हाईकोर्ट की सलाह से तैनात होंगे मजिस्‍ट्रेट:शराबबंदी कानून के तहत दर्ज मामलों का अनुसंधान एएसआई रैंक से नीचे के पुलिस या उत्पाद विभाग के अधिकारी नहीं करेंगे. विधेयक में ड्रोन या अन्य माध्यमों से ली गई तस्वीर को भी साक्ष्य के रूप में प्रयोग करने की व्यवस्था की गई है. विधेयक में हर जिले में एक विशेष न्यायालय का गठन होगा. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से सेवानिवृत्त जजों (जो अपर सत्र न्यायाधीश रह चुके हैं) को विशेष न्यायालय में पीठासीन होने के लिए सरकार नियुक्त कर सकेगी. इसके तहत कार्यपालक मजिस्ट्रेट की नियुक्ति उच्च न्यायालय के परामर्श से की जाएगी. वे द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियों का प्रयोग करेंगे.

शराब बेचने वालों पर चलेगा बुलडोजर:बिहार मद्य निषेध उत्पाद अधिनियम 2016 की धारा 81 के पश्चात अब एक नई धारा 81ए होगी. इसमें जब्त वस्तु या मादक द्रव्य को सुरक्षित रखना संभव न तो पुलिस या उत्पाद अधिकारी विशेष न्यायालय या कलेक्टर के आदेश के बिना भी छोटे नमूने को रखकर स्थल पर ही नष्ट कर सकेंगे. नए प्रावधान में अधिनियम के अधीन दंडनीय सभी अपराध धारा 35 के अधीन अपराधों को छोड़कर सुनवाई विशेष न्यायालय द्वारा की जाएगी. इन मामलों में गिरफ्तार व्यक्ति यदि अभी भी जेल में है तो उसे छोड़ दिया जाएगा. यदि वह धारा 37 में उल्लेखित कारावास की अवधि पूरा कर चुके होंगे. साथ ही शराब की थोक बरामदगी किसी ऐसे अस्थायी परिसर से होती है, जिसे सीलबंद नहीं किया जा सकता है तो कलक्टर के आदेश से ऐसे परिसर को ध्वस्त किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट से लगी थी फटकार: इसी साल शराबबंदी पर बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फटकार (Supreme Court Slams Bihar Government on Prohibition) लगी थी. कोर्ट ने पूछा कि कानून बनाते समय क्या सभी पहलुओं का अध्ययन किया गया था? जज और कोर्ट की संख्या बढ़ाने को लेकर क्या ठोस कदम उठाए गए थे? वहीं, मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने पिछले साल कहा था कि 2016 में बिहार सरकार के शराबबंदी जैसे फैसलों ने अदालतों पर भारी बोझ डाला है. सीजेआई ने कहा था, 'अदालतों में तीन लाख मामले लंबित हैं. लोग लंबे समय से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं और अब शराब के उल्लंघन से संबंधित अत्यधिक मामले अदालतों पर बोझ डालने का काम कर रहे हैं.'

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सरकार पर बीजेपी का दबाव:वहीं, सरकारी की सहयोगी बीजेपी की तरफ से भी लगातार समीक्षा की मांग होती रही है. जेल में शराबबंदी कानून के तहत पकड़े गए लोगों की बढ़ती संख्या से असहज स्थिति भी पैदा हो रही है और दबाव भी है. सदन के अंदर मद्य निषेध एवं उत्पाद मंत्री सुनील कुमार ने कहा कि शराबबंदी कानून को संशोधन विधेयक के बाद और प्रभावी ढंग से लागू करना आसान होगा. जेडीयू कोटे से मंत्री संजय झा ने भी कहा कि राहत और कड़ाई दोनों इस विधेयक से होगी. वहीं, बीजेपी कोटे से मंत्री रामसूरत राय ने कहा कि यह प्रभावी कानून है. आने वाले समय में इसका अच्छा असर देखने को मिलेगा. उधर, बीजेपी विधायक संजय सरावगी ने कहा कि इस संशोधन से संपत्ति जब्ती में तेजी आएगी और बुलडोजर भी चलेगा.

नीतीश सरकार पर विपक्ष हमलावर: शराबबंदी कानून में संशोधन के फैसले पर विपक्ष ने कहा कि वास्तव में जहरीली शराब से मौत के कारण सरकार बैकफुट पर है. आरजेडी विधायक राकेश रोशन ने कहा कि शराबबंदी कानून में ही सबसे ज्यादा संशोधन हो रहे हैं. हम लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं लेकिन जिस प्रकार से प्रशासनिक व्यवस्था की गई है, वह सही नहीं है. वहीं, कांग्रेस विधायक प्रतिमा कुमारी का कहना है कि शराबबंदी हटा लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर शराबबंदी कानून वापस नहीं लिया जाता है तो जहरीली शराब से मौत पर सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ मुकदमा चलना चाहिए.

अप्रैल 2016 से शराबबंदी: 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत के बाद नीतीश कुमार ने अप्रैल 2016 में शराबबंदी कानून लागू किया था. कानून के तहत शराब की बिक्री, पीने और इसे बनाने पर प्रतिबंध है. शुरुआत में इस कानून के तहत संपत्ति कुर्क करने और उम्र कैद की सजा तक का प्रावधान था, लेकिन 2018 में संशोधन के बाद सजा में थोड़ी छूट दी गई थी. बता दें कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के मुताबिक अब तक मद्य निषेध कानून उल्लंघन से जुड़े करीब 3 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं.

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