पटना: 24 नवंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के चौथे कार्यकाल का एक वर्ष पूरा हो रहा है. एक तरफ जेडीयू की ओर से इस मौके पर कार्यक्रम रखा गया है. वहीं दूसरी ओर RJD कार्यालय में एक ऐसी लालटेन लगाई गई है, जो लगातार अब उजाला करेगी. जिसका लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने उद्घाटन किया है. इसकी दो कहानी एक साथ शुरू हो रही है, जो इस विषय के राजनीतिक विभेद के साथ भी है और विकास के नए अध्याय के साथ भी कि राष्ट्रीय जनता दल बिहार में नए और बड़े आयाम को लेकर सियासी फलक पर चमकेगा.
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इस बार रौशनी देने के लिए अब 6.5 टन की लालटेन पार्टी कार्यालय से लगातार उजाला देती रहेगी. अब सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर 24 नवंबर 2021 की तारीख क्यों रखी गई है. संभवत: ये भी माना जा रहा है कि यह बिहार की जनता को ज्ञात हो कि 24 नवंबर 2005 को जब नीतीश कुमार ने पूर्ण रूप से सूबे की कमान संभाल ली थी. यह वही तारीख थी जब राष्ट्रीय जनता दल के हाथ से बिहार की सत्ता पूरे तौर पर चली गई थी.
24 नवंबर 2021 को राष्ट्रीय जनता दल अपनी मजबूत हनक पूरे बिहार और देश को देने जा रहा है. जब उनकी लालटेन की रौशनी अब लगातार जलती रहेगी. लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना 1997 में की थी. हालांकि तब संयुक्त बिहार-झारखंड में लालू यादव की तूती बोलती थी. इसकी सबसे बड़ी कहानी तब सामने आई जब वर्ष 2000 में बिहार और झारखंड के बंटवारे को लेकर लालू यादव ने मना कर दिया था.
तब उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार लालू यादव से सिर्फ समझौते की उन बातों पर आरजू मिन्नत करती दिख रही थी कि झारखंड बंटवारे के बाद बिहार का घाटा नहीं होगा, राज्य और विकास करेगा. हालांकि, 2000 में झारखंड बट जाने के बाद से बिहार की जो राजनीतिक स्थिति बनी, उसमें बदलाव ने कुछ ऐसी करवट ली कि 2005 में लालू यादव के हाथ से गद्दी चली गई. पशुपालन घोटाले के आरोप में लालू यादव जेल भी गए और झारखंड बंटवारे के बाद सोशल इंजीनियरिंग के समीकरण पर राष्ट्रीय जनता दल का जनाधार भी घट गया.
2005 में नीतीश कुमार गद्दी पर बैठे तो बदलाव की बड़ी कहानी लिख डाली. 2010 में नीतीश कुमार के बिहार के विकास वाले वादे पर भरोसा करते हुए जनता इस कदर नीतीश के साथ जुड़ी, कि राष्ट्रीय जनता दल 2010 में इतनी भी सीट नहीं जीत पाई कि उसे विपक्ष का दर्जा हासिल हो सके. लालटेन की लौ इस कदर कम होने लगी कि विपक्षी नेता तंज कसने लगे कि लालटेन बुझ चुकी है.
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हाल की राजनीति में कोई स्थाायी तौर पर दावा नहीं कर सकता और यह बिहार की राजनीति में 2013 से बदलनी शुरू हो गई. जब देश की राजनीति में नरेंद्र मोदी बीजेपी के पीएम मैटेरियल के तौर पर प्रोजेक्ट किये गये, तब बिहार में नीतीश कुमार उनके विरोध का स्वर मुखर करने लगे. यहीं से राष्ट्रीय जनता दल के लालटेन में एक बार फिर से नए तेल को भरने की कहानी शुरू हो गई.
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2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव साथ-साथ चुनाव लड़े, 2005 में लालटेन की बुझ गई लौ इतनी मजबूत होकर सामने आई कि लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक वंशावली के नए राजनैतिक अध्याय को जगह मिल गई. उनके दोनों बेटे नीतीश कुमार के साथ सरकार में आ गए और लालटेन की रौशनी काफी चटक होकर पूरे बिहार में जलने लगी.
हालांकि राजनीति में ग्रहण की संभावना हमेशा बनी रहती है. इसका उदाहरण 2017 में देखने का मिला, जब जमीन घोटाले और पैसे के विभेद को लेकर सीबीआई जांच ने एक बार फिर नीतीश कुमार से लालू यादव की राह अलग हो गई. 2015 में जिस लालटेन की लौ को नीतीश कुमार ने जगह दे दी, उसमें इजाफा ही हुआ जो बिहार की राजनीति के लिए जरूरी था और राजद उसे मानकर भी चल रही थी.
2017 में फिर बदले हालात के बाद लालू यादव पशुपालन घोटाले में जेल चले गए तो राष्ट्रीय जनता दल की कमान को लेकर तमाम तरह का सवाल उठने शुरू हो गये. हालांकि तेजस्वी यादव ने जिस तरीके से राष्ट्रीय जनता दल की कमान संभाली, उसकी सराहना खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव भी कर रहे हैं. 2019 लोकसभा चुनाव को अलग कर दिया जाए तो पार्टी के परफॉर्मेंस को कहीं भी खराब नहीं कहा जा सकता है.
2020 विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल बिहार की सबसे बड़ी पार्टी होकर उभरी और इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी यादव को जाता है. 2015 में नीतीश कुमार के साथ आना और 2017 में साथ छोड़ देने के बाद 2020 के चुनाव में जिस मजबूती के साथ राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार में अपनी हनक कायम की, निश्चित तौर पर लालटेन की रौशनी को जनता ने स्वीकारा, मुद्दे और नीतियों को भी माना है.
हालांकि तेजस्वी यादव को एक परिपक्व राजनेता बनने में अभी वक्त लगने की बात कही जा रही है, क्योंकि जिस महागठबंधन को लालू यादव के नेतृत्व में मजबूत माना जाता था. तेजस्वी यादव के साथ 2020 में एक-एक करके टूट गया. 2020 विधानसभा चुनाव में समझौते की राजनीति के तहत बात नहीं बन पाने पर सबसे पहले जीतन राम मांझी, उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा, फिर वीआईपी पार्टी के मुकेश साहनी राजद का साथ छोड़ गए.
2020 में कांग्रेस के साथ राजद ने चुनाव लड़ा और इसका परिणाम भी बेहतर आया, लेकिन 2021 के कुशेश्वरस्थान और तारापुर विधानसभा सीट पर बंटवारे के विरोध में कांग्रेस ने भी राष्ट्रीय जनता दल का साथ छोड़ दिया. हालांकि लालू यादव ने सोनिया गांधी से बात करने और बिहार में गठबंधन का मतलब सोनिया और राहुल गांधी ही हैं, जैसे बयान तो जरूर दिए. लेकिन 1990 के बाद से जिस तरीके के गठजोड़ के साथ कांग्रेस और राजद साथ चल रही थी, वह 2021 में भटक गई.
यह अलग बात है कि इसका असर ना तो राष्ट्रीय जनता दल की सेहत पर पड़ा और ना ही कांग्रेस पर, क्योंकि ना तो कुशेश्वरस्थान या तारापुर राजद-कांग्रेस की जीती हुई सीट थी और ना ही यहां के हार से किसी राजनीतिक दल को कोई फायदा नुकसान हुआ, लेकिन फिर भी राष्ट्रीय जनता दल के जिम्मे जरूर ये बात कही जाती है कि एक मजबूत गठबंधन 2021 में टूट गया और इसकी सबसे बड़ी वजह रही कि लालटेन की रोशनी के साथ हाथ को काम करना था, उसकी लौ इतनी मजबूत नहीं रही कि हाथ सही ढंग से सही स्थान पर रखा जा सके.
यही नहीं 2015 में जिस तेजस्वी और तेजप्रताप को लेकर नारा दिया गया, 'तेज रफ्तार, तेजस्वी सरकार'. वह भी 2021 में विवादों की भेंट चढ़ गया. अब दोनों भाइयों में आपसी विरोध की राजनीति बहुत ज्यादा हो गई. बहरहाल राष्ट्रीय जनता दल 24 नवंबर 2021 को एक मजबूत आधार वाली संरचना के साथ एक ऐसी लालटेन स्थापित करने जा रही है, जो हमेशा जलती रहेगी. पार्टी के लिए ये बहुत जरूरी भी है. अब देखना यह होगा कि जिस लालटेन की रौशनी के तहत पूरी पार्टी कार्यालय को फिलहाल जगमगाने का काम किया जा रहा है, उस रोशनी का उजाला कितना चटक हो पाता है.
2024 और 2025 के लिए तैयार हो रहे राजनीतिक समीकरण इतनी मजबूती के साथ जमीन पर उतरे कि, राष्ट्रीय जनता दल का वह हर सपना पूरा हो जाए. बिहार में और देश की राजनीति में जो चाहते हैं, और इसी उम्मीद से आज यह रखा भी गया है. जिस रोशनी को जलाने का काम लालू यादव ने किया है. वह निरंतरता के साथ चलती रहे, लेकिन विकास की जिस अवधारणा को बिहार में खड़ा करना है. पिछले इतिहास में राष्ट्रीय जनता दल ने जिस तरीके की चीजें बिहार में छोड़ी हैं. अगर इस अध्याय की हर खाई को पाटा नहीं गया तो उजाले का रंग क्या होगा, कहना मुश्किल है. हां एक ढांचा जरूर खड़ा हो जाएगा कि पार्टी कार्यालय में यह बताएगा कि राष्ट्रीय जनता दल का चुनाव चिन्ह है.
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