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2015 में नीतीश के सहारे जली भभकती 'लालटेन', 2021 में बढ़ी रोशनी तो निशाना चूक रहा 'तीर'

बिहार में जब से लालू यादव (Lalu Yadav) ने राजद कार्यालय में लालटेन (Lantern in RJD office) का उद्घाटन किया है, तब से लालू यादव की लालटेन की चमक को देख जेडीयू तिलमिलाई हुई है. साल 2015 में नीतीश ने भभकती लालटेन को सहारा दिया लेकिन 2021 के आते आते उसी लालटेन की रोशनी इतनी बढ़ गई कि उसकी चमक में तीर निशाना से चूक रहा है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

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Published : Nov 28, 2021, 10:24 PM IST

लालू यादव की लालटेन
लालू यादव की लालटेन

पटना:बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) ने अपने पार्टी कार्यालय में लालटेन क्या जलाई बिहार की सियासत (Bihar Politics) में राजनीतिक दलों के बीच बिजली कट गई है. लालू यादव (Lalu Yadav) की राजद कार्यालय में लालटेन (Lantern in RJD office) पर सबसे ज्यादा हमलावर जनता दल यूनाइटेड है, जो इस बात का श्रेय लेने में जुटी है कि लालू यादव की लालटेन (Lantern of Lalu Yadav) तभी जल रही है, जब लालटेन में नीतीश कुमार की बिजली (Nitish Kumar) दौड़ रही है. अगर नीतीश कुमार की बिजली लालू यादव की लालटेन से निकाल दी जाए तो लालटेन बुझ जाएगी, यह जदयू के नेताओं का दावा है.

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अब हकीकत की बानगी पर राजनीतिक नजरिए से इसे यही समझा जाएगा कि नीतीश की बिजली जली तब, जब उनके तेल से लालटेन की बत्ती कट गई. अब नीतीश वाली बिजली से लालू की लालटेन चमक रही है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 2015 के बाद की राजनीति को एक बार फिर चर्चा में जगह दे दी है. 24 नवंबर 2005 को जब नीतीश कुमार पूरी सरकार बना कर के गद्दी पर बैठे थे, तो कहा गया कि लालटेन में जो भी रोशनी थी खत्म हो गई, अब इसमें कोई वजूद बचा नहीं है.

नीतीश कुमार का सुशासन (Good Governance of Nitish Kumar) वाले नारे पर 2010 में यह बात और सही साबित हुई, जब तीर इतनी तेजी से लालटेन पर चला कि राष्ट्रीय जनता दल को बिहार विधानसभा में विपक्ष तक का दर्जा नहीं मिल पाया. जनता ने पूरे तौर पर राष्ट्रीय जनता दल को नकार दिया था. लेकिन, 2013 के बाद बदले राजनीतिक हालात और 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू के साथ आ जाने के बाद राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार की राजनीति में जो वापसी की, अगर उसका राजनीतिक श्रेय दिया जाता है तो वो भी नीतीश के खाते में ही जाएगा.

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2021 में लालटेन अगर तेजी से जल रही है तो भी नीतीश कुमार की ही देन है. जनता दल यूनाइटेड के लोगों को यह समझना होगा कि आज जो लालटेन इतनी बड़ी होकर के पार्टी कार्यालय में खड़ी हुई है, वह 2015 के बदले हुए उसी राजनीतिक हालात का परिणाम है जो नीतीश कुमार ने लालू यादव को संजीवनी के रूप में दिया था.

2013 में राजनीति देश में 2014 के लिए तैयार हो रही थी तो ऐसे में बीजेपी के नरेंद्र मोदी के विरोध में नीतीश कुमार ने एक नए धड़े को बनाने की बात शुरू की, जिसमें लालू यादव नीतीश के साथ जुड़ गए. 2015 में जिस लालटेन की रोशनी को नीतीश कुमार ने ही 2005 में बुझा कर के गद्दी पर अपने सियासी सफर का उजाला किया था उसी बदलावों ने 2015 में लालू यादव की लालटेन को इतना उजाला किया कि लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के साथ ही लालू यादव के राजनैतिक विरासत के उत्तराधिकारियों को सत्ता के फलक पर चमका भी दिया.

2015 विधानसभा चुनाव का जो परिणाम आया, उसमें भले नीतीश कुमार यह कहते रहे कि उनकी सरकार ने बहुत काम किया, लेकिन जनता ने अपना जनमत राष्ट्रीय जनता दल के पक्ष में ज्यादा दिया. परिणाम यह हुआ कि राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में बनकर आई, लेकिन समझौते की सियासत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने क्योंकि यह तय पहले से था कि नीतीश के विकास वाली छवि पर ही बिहार विधानसभा के चुनाव में जाना है और परिणाम भी नीतीश कुमार के हिसाब से ही आया. देश में चल रही नरेंद्र मोदी की लहर का असर 2015 में नहीं दिखा, जो 2014 में पूरे बिहार में विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ कर गया था.

2021 में जो लालटेन पार्टी कार्यालय में इतनी चमक के साथ जल रही है, उसमें बिजली का हर प्लग लगाने का काम नीतीश कुमार ने ही किया. अब जनता दल यूनाइटेड के लोग चाहे जो कहें, लेकिन यह सही है कि नीतीश कुमार ने ही लालटेन को जलाने का काम किया है. नीतीश कुमार ने ही लालटेन को इतना बड़ा बनाया. 2015 में जब सरकार बनने की बारी आई तो नीतीश कुमार ने लालू यादव के दोनों बेटों को पॉलिटिकल रनवे से उड़ान भरवा दी.

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तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) उप मुख्यमंत्री बने और तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) बिहार के स्वास्थ्य मंत्री बने. लालू यादव जो भी अपने उत्तराधिकारी के तौर पर सपने सजाए थे, नीतीश कुमार के गठबंधन के साथ सरकार बनने के बाद वह सब पूरे हो गए. 2015 लालू यादव के दोनों बेटों के इस सियासी सफर का लॉन्चिंग पैड था, जो चाचा के साथ मिलकर के भतीजे ने पूरा भी कर दिया.

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में फिर बदले हुए हालात में नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल का साथ छोड़ कर बीजेपी के साथ आ गए और फिर उसके बाद जो राजनीतिक हालात बने उसने नीतीश कुमार के विकास पर और विकास वाले मुद्दे पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया. 2015 में लालू यादव की पार्टी को नीतीश कुमार ने जिंदा किया तो 2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल पूरा जिंदादिली के साथ नीतीश के सामने खड़ी हो गई.

बड़े बदलाव की कहानी भी यहीं से शुरू हुई, जिनकी सियासत की मुखालफत नीतीश कुमार का राजनीतिक कद था वह जेल में थे तो ऐसे में तेजस्वी यादव की रणनीति और राष्ट्रीय जनता दल को जिस तरीके से जनता ने सराहा उसने एक सवाल जरूर खड़ा कर दिया कि नीतीश कुमार के विकास का मॉडल नरेंद्र मोदी के देश का मॉडल और दो इंजन से चलने वाली सरकार का मॉडल यह सब कुछ जोड़ दिया जाए उसके बाद भी राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बन गई और इसका पूरा श्रेय तेजस्वी यादव को जाता है. ऐसे में 2021 में जब राष्ट्रीय जनता दल ने 24 नवंबर को पार्टी कार्यालय में लालटेन जलाई तो जनता दल यूनाइटेड में हाय तौबा मचना लाजमी था.

2015 में नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाई और इस दौरान राजद को इतना बड़ा कर दिया कि 2021 में तेजस्वी यादव और लालू यादव ने उतनी ही बड़ी लालटेन को पार्टी कार्यालय में लगा दिया. यह जनता दल यूनाइटेड के लिए निश्चित तौर पर छटपटाने और तिलमिलाने का विषय है. अब नीतीश कुमार इसका क्या जवाब देंगे और इस बड़े लालटेन में जिस उजाले की बात जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह (JDU President Lalan Singh) को खटकने लगी है और दिल का दर्द इस रूप में भी बाहर आ रहा है कि उस लालटेन में उजाला नीतीश कुमार की बिजली से है तो सवाल यह उठ रहा है कि उस बिजली का तार कटेगा कैसे, क्योंकि जिस लालटेन ने नीतीश के विकास पर सवाल खड़ा करते हुए 2020 में बिना लालू यादव के सीटों की बड़ी संख्या खड़ी की, उससे लड़ने के लिए जनता दल यूनाइटेड के तमाम दिग्गजों के पास मुद्दा क्या है.

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यह बात नीतीश कुमार को भी पता है और पार्टी का हर आदमी जानता है कि अब नीतीश कुमार जिस बात को 15 साल बनाम 15 साल की करते हैं, बिहार की जनता यह सुनने को तैयार नहीं है. हर मंच से लालू यादव के समय की बात कहते हैं, अपनी बातों को रखना शायद भूल जाते हैं. उसकी वजह भी यही है कि लालू यादव ही आज नीतीश के दिमाग में है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण ललन सिंह का वह बयान है जो लालटेन में जल रही रोशनी को नीतीश की देन कहने के साथ शुरू हुई है, क्योंकि लालटेन की ही चटक रोशनी अगर और ज्यादा चमकी तो नीतीश कुमार वाली जनता दल तीर कहां चलाएगी, यह निशाना उस आधार पर तय करना होगा कि रोशनी लालटेन की जा कहां तक रही है और उस रोशनी से सियासत में चीजें दिख कहां तक रही हैं.

बिहार में सरकार में कोई भी भेद नहीं है. नीतीश कुमार शायद सरकार को 5 साल चलाएंगे, इसमें कोई फौरी तौर पर राजनीतिक लड़ाई भी नहीं दिख रही है, लेकिन 2024 के बाद 2025 के लिए जिस बिहार को तैयार करना है और राजनीति के जिस तीर से लालटेन की रोशनी को कम करने का दावा जदयू के नेता कर रहे हैं, अब उन्हें यह सोचना पड़ेगा कि लालटेन कि जिस चमक को नीतीश कुमार के बिजली और प्लग ने चमकाया है, वह तीर को इतनी मजबूती क्यों नहीं दे पाया.

अगर लालटेन नीतीश के इसी बिजली से और ज्यादा चमकी तो शायद चमक इतनी चकाचौंध कर देने वाली हो कि चश्मा लगाकर देखने वालों को नया बिहार, विकास वाला बिहार, नीतीश वाला बिहार, बदला बिहार न दिखे और इसके लिए जदयू को अभी से रणनीति के तहत तैयार कर लेना होगा, क्योंकि नीतीश कुमार के उस गाने को लालटेन के उजाले के नीचे बैठकर के राष्ट्रीय जनता दल का भी कोई नेता गा सकता है. उजाला है बहार है राष्ट्रीय जनता दल की लालटेन चमक रही है, उसकी वजह भी है नीतीश कुमार है.

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