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अब तक किसी सरकार ने नहीं कराया जातिगत जनगणना, जानिए क्यों.... - मिथिलेश तिवारी

जातीय जनगणना के मुद्दे पर सभी दलों के नेता एक मंच पर आ गये हैं. सभी ने इस मुद्दे पर हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. अपनी मांगें रखीं. अब इस बारे में फैसला प्रधानमंत्री को लेना है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब तक सरकारें इससे बचती क्यों रहीं. पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Aug 24, 2021, 8:16 PM IST

Updated : Aug 24, 2021, 8:40 PM IST

पटना:जातिगत जनगणना (Caste Census) के सवाल पर बिहार के राजनीतिक दलों में बेचैनी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने नेताओं को वक्त दिया. तमाम दलों के नेताओं ने मुलाकात भी की और अपनी बात रखी. सवाल ये उठता है कि अब तक की सरकारें जातिगत जनगणना के सवाल पर क्यों कदम खींचती रही हैं. जाति आधारित राजनीति करने वाले बिहार के तमाम राजनीतिक दलों के नेता जातिगत जनगणना की वकालत कर रहे हैं.

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दबाव की राजनीति के तहत तमाम राजनीतिक दलों के नेता एक मंच पर आए और उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री से हुई. पीएम मोदी ने भी नेताओं के बातें ध्यान से सुनीं. प्रधानमंत्री ने जातिगत जनगणना के सवाल को ना तो खारिज किया ना ही मंजूर किया. जातिगत जनगणना के सवाल पर भाजपा का रुख स्पष्ट है. पार्टी नेता जातिगत जनगणना के बजाय अमीर और गरीब की जनगणना कराना चाहते हैं. हालांकि इस पर अंतिम फैसला अब प्रधानमंत्री को करना है.

देखें रिपोर्ट
सवाल यह उठता है कि जातिगत जनगणना को लेकर अब तक की सरकारें गंभीर क्यों नहीं हुईं. सरदार पटेल ने जिस खतरे को महसूस किया था, वह आज की तारीख में अप्रसांगिक है.
  • जातिगत जनगणना के बाद नए सिरे से आरक्षण की मांग उठेगी
  • बहुसंख्यक आबादी का प्रभाव बढ़ेगा
  • नए सिरे से आंदोलन की हो सकती है शुरुआत
  • जनगणना में सभी जातियों का समावेश है मुश्किल
  • समाज में वैमनस्य बढ़ सकता है
  • राजनीति में हिस्सेदारी की होगी वकालत
  • जनसंख्या नियंत्रण में आएगी समस्या

भाजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के उपाध्यक्ष मिथिलेश तिवारी (Mithilesh Tiwari) ने कहा है कि जातिगत जनगणना के मसले पर बिहार के नेताओं से प्रधानमंत्री की मुलाकात हुई है. अब फैसला प्रधानमंत्री को करना है कि कब होगा और कैसे होगा. इसका इंतजार सबको रहेगा.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी जातिगत जनगणना के खतरे को लेकर राजनीतिक दलों को आगाह कर रहे हैं. कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि जातिगत जनगणना से सामाजिक समरसता बिगड़ सकती है. जिसकी संख्या अधिक होगी, वह अपने लिए ज्यादा हिस्सेदारी की मांग करेंगे और जिस की संख्या कम होगी उनका शोषण भी हो सकता है. नए सिरे से देश में अव्यवस्था फैल सकती है. इन्हीं चीजों को ध्यान में रखते हुए अब तक की सरकारें जातिगत जनगणना को लेकर आगे नहीं बढ़ीं.

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राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि क्षेत्रीय दल जातिगत वोट बैंक की राजनीति करते हैं. इस वजह से उन्हें लगता है कि जातिगत जनगणना होने से उनकी ताकत बढ़ सकती है. संजय कुमार का मानना है कि जातिगत जनगणना की आड़ में विकास का मुद्दा, सांप्रदायिकता का मुद्दा और फिर रोजगार का मुद्दा गौण हो सकता है.

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Last Updated : Aug 24, 2021, 8:40 PM IST

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