पटना: बीते दिनों बिहार के औरंगाबाद में कोलोडियन डिसऑर्डर से ग्रसित बच्चे (Children with Collodion Disorder) ने जन्म लिया. डिसऑर्डर से ग्रसित एक बच्चे. बच्चे के जन्म के बाद इलाके में यह कौतूहल का विषय बन गया कि बच्चा बहुत ही दुर्लभ है और अजीबोगरीब किस्म का है. हालांकि चिकित्सकों का मानना है कि यह कोई नई बीमारी नहीं है. जेनेटिक डिसऑर्डर्स से ऐसे बच्चों का जन्म होता है और कई बच्चों में यह बीमारी जन्म के 1 साल तक कभी भी हो सकता है. यह बीमारी लाइलाज नहीं है. इसका इलाज संभव है और ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं तो ट्रीटमेंट के बाद ठीक भी होते हैं.
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पीएमसीएच के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमन कुमार ने बताया कि कोलोडियन बेबी कोलोडियन डिसऑर्डर होने से जन्म लेते हैं. सामान्य भाषा में इसे प्लास्टिक बेबी (Plastic Baby Born) कहते हैं. प्लास्टिक बेबी का मतलब यह नहीं होता कि बच्चे का शरीर प्लास्टिक का होता है. बच्चे सामान्य बच्चे जैसे ही होते हैं जिनके शरीर में गुर्दा लीवर और किडनी हार्ट सब होता है. ऐसे बच्चों की स्किन काफी पतली झिल्लीदार हो जाती है और इसकी स्ट्रेच नहीं होता. ऐसे में बच्चों के शरीर में मूवमेंट नहीं होता है. बच्चा जब सांस लेता है तो शरीर में मूवमेंट होने की वजह से स्किन में क्रैक्स आ जाते हैं.
यह एक ऑटोसोमल रिसेसिव डिजीज (Autosomal Recessive Disease) है जो जेनेटिक डिसऑर्डर से होता है. यह क्रोमोजोनल म्यूटेशन की वजह से होता है और यह कोई रेयर बीमारी नहीं है. कुछ बच्चों में शरीर के कुछ हिस्सों में इसका असर देखने को मिलता है तो कुछ बच्चों में पूरे शरीर में ऐसी स्थिति देखने को मिलती है कि पूरे शरीर का स्किन झिल्लीदार हो जाता है. यह बीमारी बहुत बच्चों में 1 साल की उम्र तक कभी भी हो सकता है ऐसे में बहुत घबराने की आवश्यकता नहीं है.
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