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'बिहार में कॉमन सिविल कोड की जरूरत नहीं', जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा का बड़ा बयान - No need for common civil code in Bihar

जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा (JDU Leader Upendra Kushwaha) ने कहा कि बिहार में कॉमन सिविल कोड की जरूरत नहीं (No need for common civil code in Bihar) है. उन्होंने कहा कि जब यहां पहले से ही सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है तो क्यों इसमें छेड़छाड़ किया जाए. वैसे भी हिंदुस्तान विविधताओं से भरा हुआ देश है.

बिहार में कॉमन सिविल कोड की जरूरत नहीं
बिहार में कॉमन सिविल कोड की जरूरत नहीं

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Published : Apr 26, 2022, 5:37 PM IST

Updated : Apr 26, 2022, 5:44 PM IST

पटना:कॉमन सिविल कोड (Common Civil Code) पर बिहार की सत्ता में शामिल दलों के बीच बयानबाजी तेज होती जा रही है. बीजेपी के नेता जहां खुलकर इसकी वकालत कर रहे हैं, वहीं जेडीयू की ओर से इसकी मुखालफत शुरू हो गई है.जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा (JDU Leader Upendra Kushwaha) ने जोर देकर कहा कि बिहार में कॉमन सिविल कोड लागू करने की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि जब यहां पहले से ही सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है तो क्यों इसमें छेड़छाड़ किया जाए.

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बिहार में कॉमन सिविल कोड की जरूरत नहीं:जेडीयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि जब कोई समस्या ही नहीं है तो बिहार में कॉमन सिविल कोड की जरूरत नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ है. खान-पान, वेशभूष, रहन-सहन अलग-अलग है और यही हिंदुस्तान की खासियत भी है. ऐसे में इसे क्यूं बिगाड़ने की कोशिश की जाएगी. मुझे नहीं लगता कि कॉमन सिविल कोड को जरूरत भी है.

सुनिए मंत्री विजय कुमार चौधरी का जवाब: इससे पहले पटना में पत्रकारों ने जब विजय चौधरी से पूछा कि आप लोग कॉमन सिविल कोड पर प्रतिक्रिया देने से डरते हैं, क्या आप लोग बीजेपी से डरते हैं? इस पर शिक्षा मंत्री ने मुस्कुराते हुए कहा कि हमलोग किसी से नहीं डरते हैं लेकिन किसी के बयान पर हम लोग कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. उन्होंने कहा कि जब मामला सामने आएगा तब पार्टी इसको देखेगी. अभी इस पर कुछ भी बोलने का क्या मतलब है.

क्या है समान नागरिक संहिता?: कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है जो देश के हर समुदाय पर लागू होगा. वह किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या समुदाय का हो उसके लिए एक ही कानून होगा. अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े हुए कानूनों को भारतीय दंड संहिता 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम 18 70, विशिष्ट राहत और अधिनियम 18 77 आदि के माध्यम से सब पर लागू किया. लेकिन, शादी विवाह, तलाक, उत्तराधिकारी, संपत्ति आदि से जुड़े मसलों को सभी धार्मिक समूह के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया था.

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Last Updated : Apr 26, 2022, 5:44 PM IST

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