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बिहार में राज्यसभा उम्मीदवारों की घोषणा से NDA ने किया साफ, साथ लड़ेंगे विधानसभा चुनाव

प्रत्याशियों की घोषणा के साथ यह तय हो गया कि विधानसभा चुनाव बीजेपी और जेडीयू हर हाल में साथ लड़ेगी. जेडीयू ने जहां अपने पारंपरिक वोट बैंक को बरकरार रखने की कोशिश की, वहीं बीजेपी ने ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कोशिश की.

bihar assembly elections
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Published : Mar 12, 2020, 9:25 PM IST

पटना:बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल वोट बैंक साधने की कोशिश में जुट गए हैं. एनडीए ने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ ही अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं. बीजेपी और बीजेपी ने राज्यसभा के लिए अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे उससे तय हो गया है कि विधानसभा चुनाव हर हाल में दोनों दल साथ ही लड़ेंगे.

जातीगत वोट बैंक साधने की तैयारी में एनडीए
मिशन 2020 से पहले राज्यसभा चुनाव राजनीतिक दलों के लिए सत्ता का सेमीफाइनल है. राजनीतिक पार्टियां जातीय वोट बैंक को साधने में जुट गई है. एनडीए ने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा में वोट बैंक का खास ख्याल रखा और दोनों दलों ने आपसी सहमति के बाद अलग-अलग जाति के उम्मीदवार मैदान में उतारे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बीजेपी और जेडीयू की दोस्ती पर संशय खत्म
प्रत्याशियों की घोषणा के साथ यह तय हो गया कि विधानसभा चुनाव बीजेपी और जेडीयू हर हाल में साथ लड़ेगी. जेडीयू ने जहां अपने पारंपरिक वोट बैंक को बरकरार रखने की कोशिश की, वहीं बीजेपी ने ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कोशिश की. अत्यंत पिछड़ा वोट बैंक पर जदयू अपना वाजिब हक मानती है, लिहाजा कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर को राज्यसभा भेजने का फैसला लिया गया. इसके अलावा राजपूत वोटरों को लुभाने के लिए हरिवंश नारायण सिंह को राज्यसभा भेजने का फैसला लिया गया.

मिशन 2020 को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती एनडीए
बीजेपी ने भूमिहार जाति को लुभाने की कोशिश की. इस कड़ी में डॉ सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर को भेजकर पार्टी ने ब्राह्मणों को संदेश दिया. उम्मीदवारों की घोषणा से साफ है कि भाजपा और जदयू मिशन 2020 को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते. भाजपा प्रवक्ता अजीत चौधरी का कहना है कि हमारी पार्टी सबको साथ लेकर चलती है और सभी के भावनाओं की कद्र की जाती है. किसी समुदाय विशेष को पार्टी ने सम्मान दिया तो इसमें बुराई क्या है.

राज्यसभा चुनाव दलों के लिए सेमीफाइनल
जदयू नेता अजय आलोक का कहना है कि पार्टियां विधानसभा चुनाव को देखते हुए ही फैसले लेती है. पार्टी ने जो प्रत्याशी तय किए हैं उससे साफ है कि वह अपने कोर वोटर को छोड़ना नहीं चाहती. राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी का मानना है कि राज्यसभा चुनाव दलों के लिए सेमीफाइनल की तरह है. राजनीतिक दलों के पास यह मौका था कि अपने वोटरों के बीच संदेश दें. कहा जा सकता है कि भाजपा और जदयू बहुत हद तक अपनी योजना में कामयाब होती दिख रही है.

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