पटना: बिहार में जातीय जनगणना और विशेष राज्य का दर्जा एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. नीतीश कुमार ( Bihar CM Nitish Kumar ) विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर पटना से लेकर दिल्ली तक आंदोलन कर चुके हैं और चुनाव से पहले इसे हमेशा बड़ा मुद्दा बनाते रहे हैं.
बिहार को विशेष पैकेज मिलने के बाद जदयू ने इस बड़े मुद्दे को एक तरह से भूला दिया था, लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन और नीति आयोग की लगातार रिपोर्ट में बिहार को फिसड्डी बताए जाने के बाद जदयू एक बार फिर से इसे बड़ा मुद्दा बनाने में लगी है.
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वहीं, इस मुद्दे पर बीजेपी का साथ नहीं मिल रहा है और इस तरह जातीय जनगणना को लेकर बिहार में सियासत शुरू हो गई है. आरजेडी और जदयू दोनों जातीय जनगणना को लेकर मुखर हैं, लेकिन इस मुद्दे पर भी बीजेपी का सहयोग नीतीश कुमार को नहीं मिल रहा है. प्रधानमंत्री से मिलने के बावजूद केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना को लेकर ना कर दिया, ऐसे में आरजेडी इसे भुनाने की कोशिश में लगी है.
बता दें कि बिहार में महागठबंधन को फिलहाल 110 सीट है और कुछ ही सीटों के अंतर से व सरकार से दूर है. यही कारण है कि जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी, दोनों को लगातार प्रलोभन आरजेडी के तरफ से दिया जाता रहा है. दोनों के चार-चार विधायक चुनाव जीते थे लेकिन आरजेडी इसमें कामयाब नहीं हुई. बीजेपी विधायकों को भी तोड़ने की कोशिश आरजेडी के तरफ से की गई लेकिन उसमें भी सफलता नहीं मिला.
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ऐसे में जातीय जनगणना और विशेष राज्य का दर्जा का मुद्दा, जिस पर बीजेपी का सहयोग नीतीश कुमार को नहीं मिल रहा है. आरजेडी इस फायदे को उठाने में लगी है. यही कारण है कि जगदानंद सिंह ने विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नीतीश कुमार को एक तरह से बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन के सहयोग से सरकार बनाने का ऑफर दे दिया. जगदानंद सिंह के बयान के बाद अब आरजेडी नेता खुलकर कह रहे हैं कि खरमास बाद बिहार में खेला होगा.
वहीं आरजेडी के बयान पर बीजेपी प्रवक्ता संतोष पाठक का कहना है कि तेजस्वी यादव को सत्ता बेचैनी है और मुख्यमंत्री की कुर्सी से उन्हें कुछ नीचे नजर ही नहीं आ रहा है. बिहार में जदयू और बीजेपी के बीच कोई मतभेद नहीं है.
हालांकि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बिहार में फिलहाल कोई बड़े उलटफेर की संभावना नही हैं, लेकिन चुनाव से पहले नीतीश कुमार कोई बड़ा फैसला लेते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.
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'बीजेपी से अलग होना जदयू के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि नीतीश कुमार आरजेडी के साथ सरकार बनाकर देख चुके हैं. एक तरह से आरजेडी के बहाने नीतीश कुमार को प्रेशर पॉलिटिक्स करने का मौका मिल गया है. नीतीश कुमार समय आने पर ही कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं, फिलहाल ऐसी कोई स्थिति बनती दिख नहीं रही है.' - प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विश्लेषक
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे का कहना है आरजेडी के ऑफर पर जदयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने जरूर बयान दिया है और समर्थन का स्वागत किया है लेकिन नीतीश कुमार इतना जल्दी कुछ फैसला ले लेंगे इसकी संभावना बहुत कम है लेकिन नीतीश कुमार को एक एजेंडा जरूर मिला है बीजेपी को यह दिखाने के लिए कि विपक्ष का समर्थन प्राप्त है.
बता दें कि बिहार में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है. आरजेडी के पास 75 सीट है तो वहीं बीजेपी के 74 सीट. जदयू के 45 सीट है और जीतन राम मांझी की पार्टी हम के चार और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के तीन, AIMIM के 5 विधायक हैं और एक निर्दलीय है. इसके साथ कांग्रेस के 19 और वामपंथी दलों के 16 विधायक हैं.
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जदयू और बीजेपी के बीच कई मुद्दों पर तकरार चल रहा है, जिसमें जातीय जनगणना, विशेष राज्य का दर्जा, जनसंख्या नियंत्रण कानून प्रमुख है और इन मुद्दों को लेकर बीजेपी जदयू के बीच मतभेद की खबरें लगातार आती रहती है. नेताओं के दोनों तरफ से बयान आते रहते हैं, बयान पर विपक्ष भी चुटकी लेता है और मौके की ताक में भी लगा रहता है.
अब इन दोनों मुद्दों पर आरजेडी नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ा रही है. जनता के बीच एक मैसेज देने की कोशिश भी कर रही है कि हम तो जातीय जनगणना और विशेष राज्य के मुद्दे पर नीतीश कुमार के साथ खड़े हैं, बीजेपी ही उन्हें साथ नहीं दे रही है.
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नीतीश कुमार यदि इन दोनों मुद्दों पर फैसला नहीं लेते हैं तो आरजेडी इसे जनता के बीच भुनाने की कोशिश भी करेगी, यह तय है. खासकर जातीय जनगणना का मुद्दा पिछड़ा और अति पिछड़ा, बड़े वोट बैंक से जुड़ा हुआ है और आरजेडी-जेडीयू इस वोट बैंक पर शुरू से अपनी दावेदारी करता रहा है.
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2020 के बाद से ही जदयू का एक खेमा बीजेपी के रवैए से नाराज है. खासकर शाहाबाद और मगध क्षेत्र में पार्टी की करारी हार को लेकर जदयू के नेता बीजेपी को दोषी ठहराते रहे हैं और जो मंत्री नहीं बन पाए हैं, वह भी चाहते हैं फिर से आरजेडी के साथ सरकार बन जाए.
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महागठबंधन से अलग होने के फैसले के समय भी कुछ नेता ने अपनी नाराजगी जताई थी. हालांकि खुलकर जदयू के नेता कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन जदयू बीजेपी के बीच जिस प्रकार से बयानबाजी बढ़ी है, उससे 2024 और 2025 चुनाव से पहले कोई बड़ा उलटफेर हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
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