पटना: केंद्र और बिहार में डबल इंजन की सरकार है. यही कारण है कि एनडीए की ओर से तेजी से विकास होने के दावे भी किए जाते रहे हैं लेकिन नीति आयोग की रिपोर्ट ( NITI Aayog Report ) के खुलासे ने बिहार को फिसड्डी बता दिया है और दावे पर सवाल खड़ा कर रहा है. बिहार के 2 अंकों में विकास दर रहने के बावजूद केंद्र से जितनी मदद मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल रही है. यहां तक कि पिछले कुछ सालों में कई योजनाओं में राशि केंद्र ने घटा ( central share in centrally sponsored schemes ) दी है.
दरअसल, 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के बाद वर्ष 2015-16 से बिहार को अनटाईड फंड के रूप में केंद्रीय करों में हिस्सा के रूप में अधिक राजस्व मिलता था लेकिन 2018-19 के बाद इसमें कमी आना शुरू हो गया. इसके अलावा केंद्रीय प्रायोजित स्कीम ( centrally sponsored schemes ) के अंतर्गत केन्द्रांश और राज्यांश के अनुपात में परिवर्तन किया गया और उसके कारण केंद्र से कम राशि मिलना शुरू हो गया.
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2015-16 के पूर्व केंद्र प्रायोजित स्कीमों में केंद्र और राज्य का अनुपात 90:10, 75:25 तथा 65:35 तक की हिस्सेदारी होती थी लेकिन वर्ष 2015-16 से केंद्र सरकार द्वारा सभी केंद्र प्रायोजित स्कीमों में केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 कर दिया है. इससे बिहार को बड़ा नुकसान हो रहा है. वहीं, सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और शिक्षक शिक्षा को अधिकृत कर वर्ष 2018 से केंद्र सरकार शिक्षकों के वेतन की स्वीकृति में भारी कटौती कर रही है. बिहार को विगत वर्ष में प्रतिवर्ष 7000 करोड़ की स्वीकृति कम हुई है. राज्य सरकार को अपनी निधि से यह राशि देनी पड़ रही है.
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सामाजिक प्रक्षेत्र के तहत पेंशन योजना, पूरक पोषाहार योजना, अल्पसंख्यक वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए छात्रवृत्ति योजना, पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए छात्रवृत्ति योजना, SC-ST की कई योजनाएं. ऐसे महत्वपूर्ण योजनाओं में भी केंद्र की की हिस्सेदारी कम हुई है. इसके अलावे विश्वविद्यालय आयोग का बकाया राशि, साथ ही आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत राज्य को पर्याप्त राशि नहीं मिलना, बिजली की दर में असमानता. इसके कारण बड़ी राशि बिहार को खर्च करना पड़ रहा है.
यही नहीं सिंचाई क्षेत्र की कई योजनाओं का अटक जाना और बैंकों का रवैया बिहार के प्रति उदासीन रहना, जैसे बड़े उदाहरण हैं और इन सब को लेकर उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री ने चिंता भी जाहिर की थी. एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के विशेषज्ञ डॉक्टर विद्यार्थी विकास का भी कहना है जब इस तरह की स्थिति हो तो बिहार के विकास पर असर पड़ना तय है. नीति आयोग की रिपोर्ट में भी यह असर साफ दिख रहा है. वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का भी कहना है कि जब केंद्र प्रायोजित योजनाओं में भी बिहार को अधिक राशि खर्च करना पड़ेगा तो स्वाभाविक है, बिहार अपनी योजनाओं पर कम राशि खर्च कर सकेगा और उसका असर सीधा विकास पर पड़ना तय है.
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गौरतलब है कि कोरोना के समय बिहार का राजस्व भी घटा है और हर साल बिहार को बाढ़ और सुखाड़ से भी जूझना पड़ रहा है. ऐसे में केंद्र प्रायोजित योजनाओं में भी केंद्र की हिस्सेदारी पर्याप्त नहीं होगी तो बिहार जैसे पिछड़े राज्यों के लिए विकसित राज्यों के बराबर आना असंभव सा है. बिहार में पिछले एक दशक से डबल डीजिट में विकास हो रहा है और उसके बाद भी नीति आयोग की रिपोर्ट साफ बता रही है कि बिहार अभी भी देश में विकास के मामले में सबसे नीचे पायदान पर है.
यही कारण है कि बिहार सरकार की ओर से विशेष राज्य के दर्जे की मांग हो रही है, जिससे केंद्र की योजनाओं में बिहार को केंद्र से अधिक से अधिक मदद मिल सके और बिहार अपनी योजनाओं में अधिक राशि खर्च कर सके.
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