शिमला/पटना :वर्ष 2003 से पूर्व बिहार स्टेट फैकल्टी ऑफ आयुर्वेदिक एंड यूनानी सिस्टम ऑफ मेडिसिन पटना से फार्मासिस्ट का डिप्लोमा करने वालों को (diploma of Ayurvedic pharmacist from Bihar) हिमाचल हाईकोर्ट ने राहत दी है. हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने वर्ष 2003 से पहले दो साल का डिप्लोमा करने वालों को आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट को उचित पद पर कंसीडर करने के आदेश जारी किए हैं.
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हाईकोर्ट के (Himachal High Court ) न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि वर्ष 2003 पूर्व से जिन लोगों ने बिहार स्टेट फैकल्टी ऑफ आयुर्वेदिक व यूनानी सिस्टम से 2 वर्ष का आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट में डिप्लोमा किया है, वो हिमाचल में मान्य है. इस संदर्भ में कुछ प्रार्थियों ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि उन्हें बैच वाइज आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट के पद पर उस तारीख से नियुक्ति प्रदान की जाए. जिस तारीख से उनसे जूनियर लोग आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट के पद पर तैनात किए गए हैं.
हिमाचल प्रदेश आयुर्वेदिक विभाग (Himachal Pradesh Department of Ayurveda) की ओर से 1 अक्टूबर 2021 को अतिरिक्त मुख्य सचिव बिहार आयुष सोसाइटी पटना से कुछ जानकारी मांगी गई थी. उस के जवाब में बिहार सरकार ने बताया था कि उनके यहां इस तरह के संस्थानों को दी गयी मान्यता को बिहार स्टेट आयुर्वेदिक एंड यूनानी मेडिसिन अथॉरिटी ने 4 अगस्त 2003 को रदद् कर दिया था. वहीं, इंडियन मेडिसिन सेंट्रल काउंसिल एक्ट 1970 के मुताबिक स्टेट फैकल्टी ऑफ आयुर्वेदिक व यूनानी मेडिसिन पटना को मेडिकल क्वालिफिकेशन के शेड्यूल में वैधता वर्ष 1953 से 2003 में जोड़ा गया है.
न्यायालय ने यह भी पाया कि प्रार्थियों के डिप्लोमा की आयुर्वेदिक विभाग द्वारा जांच की गई थी और उनके डिप्लोमा में आयुर्वेदिक विभाग की ओर से किसी भी तरह का संशय नहीं जताया गया था. यह आयुर्वेदिक विभाग ही था जिन्होंने प्रार्थियों को आयुर्वेदिक बोर्ड व यूनानी सिस्टम ऑफ मेडिसिन हिमाचल प्रदेश में पंजीकृत किया था. न्यायालय ने इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए प्रार्थियों को आयुर्वेदिक फार्मासिस्ट के पदों पर कंसीडर करने के आदेश जारी किए हैं.