पटना: भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी (Ashok Choudhary) को 'मंत्री पद' पर नियुक्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 9 अगस्त तक टल गई है. पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने संतोष कुमार की याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल(Chief Justice Sanjay Karol) की खंडपीठ ने सुनवाई की. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार के अनुरोध पर सुनवाई को टाल दिया है.
ये भी पढ़ें- दिल्ली में लालू-जगदानंद की मुलाकात, क्या RJD में कुछ बड़ा होने वाला है?
अधिवक्ता दीनू कुमार का कहना था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 163(1) के तहत मंत्री अशोक चौधरी की नियुक्ति को चुनौती दी गई है. उन्होंने बताया कि अशोक चौधरी को मंत्री के तौर पर नियमों के विपरीत जाकर 6 मई 2020 से 5 नवंबर 2020 तक कार्य करने दिया गया. बाद में उन्हें 16 नवंबर 2020 को मंत्री बनाया गया, जबकि वे विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं थे.
विधान परिषद के सदस्य के रूप में अशोक चौधरी का कार्यकाल 6 मई 2020 को ही समाप्त हो गया था. इस दौरान उन्होंने कोई चुनाव भी नहीं लड़ा था. उन्हें 17 मार्च 2021 को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया. याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि इस प्रकार से 6 मई 2020 से 5 नवंबर 2020 तक उनका मंत्री पद पर बने रहना असंवैधानिक है.
इतना ही नहीं 16 नवंबर 2020 को मंत्री पद पर नियुक्ति और राज्यपाल कोटे से विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया जाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 163(1) व 164(4) के मूल भावना के विपरीत है. संविधान के अनुच्छेद 164(4) का लाभ दोबारा नहीं मिल सकता है. इसलिए किसी व्यक्ति को राज्य में मंत्री नियुक्त करने पर 6 महीने की अवधि के भीतर उन्हें एमएलए या एमएलसी होना आवश्यक होगा. अब इस मामले पर अगली सुनवाई 9 अगस्त को होगी.
ये भी पढ़ें- VIDEO: नहाने के दौरान मांझर कुंड में अचानक आई बाढ़, फंसे दो युवक
आर्टिकल 164(4)के मुताबिक कोई मंत्री अगर लगातार छह महीने की अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं बन पाता है तो उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा. यानी अगर कोई मुख्यमंत्री या मंत्री बनने के बाद छह महीने के अंदर सदन (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं बनता है तो उसे त्यागपत्र देना पड़ेगा.