पटना:प्रदेश में बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है. कोरोना काल में सावधानियों के साथ टिकट चाहने वालों की लाइन भी हर राजनीतिक दल के दफ्तर में देखने को मिल रही है. इन सबके बीच एक अहम सवाल फिर से सामने आ खड़ा हुआ है. वो सवाल है कि आखिर राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र क्यों नहीं होती?
किस्मत आजमाने में जुटे नेता
बिहार चुनाव के महासमर में एक ओर युवा नेता तो दूसरी तरफ 65-70 साल के बुजुर्ग नेता अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में जुटे है. इन बुजुर्गों के चुनाव लड़ने की दीवानगी ये सोचने को मजबूर करती है कि आखिर राजनीति में कोई उम्र सीमा क्यों तय नहीं है.
सभी कार्यक्षेत्रों में रिटायरमेंट की उम्र तय
38 से 40 की उम्र में सौरभ गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ी रिटायर हो चुके हैं. उनकी जगह युवा टीम में हैं. देश के तमाम सरकारी और निजी दफ्तरों में भी रिटायरमेंट की उम्र तय है. यहां 58 से 60 साल की उम्र में अधिकारी और कर्मचारी रिटायर हो जाते हैं. उनकी जगह नए चेहरे आते हैं जो नए तरीके से नई तकनीक के साथ काम शुरू करते हैं.
राजनीति में रिटायरमेंट क्यों नहीं?
सवाल ये है कि ऐसा ही कुछ राजनीति में क्यों नहीं होता. राजनीति देश की दिशा और दशा तय करती है. यहां अनुभव का जितना महत्व है, उतना ही नए आइडिया और नई तकनीक का भी. तो यहां भी एक उम्र के बाद नेता रिटायर क्यों नहीं हो जाते.राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि नई सोच के साथ राज्य और देश का विकास युवा बेहतर तरीके से कर सकते हैं.
बिहार चुनाव में बुजुर्ग उम्मीदवारों की दावेदारी
बिहार विधानसभा चुनाव में कई ऐसे कैंडिडेट्स हैं जिनकी उम्र 70 साल या उससे ज्यादा हो चुकी है. लेकिन वे एक बार फिर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. इनमें बिहार के ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव का नाम शामिल है.