पटनाः कोरोना के बाद सामने आ रहे अलग-अलग तरह के फंगसमेडिकल जगत को सकते में डाल रहे हैं. पहले ब्लैक फंगस, फिर वाइट फंगस और अब नई फंगस आ गई है जिसे येलो फंगस कहा जा रहा है. गाजियाबाद के एक निजी अस्पताल में इसका पहला मामला मिला है. ऐसे में अगर बिहार में येलो फंगसके मामले सामने आते हैं तो घबराने की जरूरत नहीं है.
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ये कहना है बिहार के पीएमसीएच के माइक्रोबायोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉक्टर एसएन सिंह का. उनका कहना है कि वाइट फंगस के बाद अगर कोई कॉमन फंगस है तो वह येलो फंगस है. ब्लैक फंगस को जहां मेडिकल टर्मिनोलॉजी में म्यूकर माइकोसिस कहा जाता है वहीं व्हाइट फंगस को कैंडीडायसीस और येलो फंगस को एस्परजिलोसिस कहा जाता है.
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बिहार में पहले भी डिटेक्ट किया जा चुका
पीएमसीएच के माइक्रोबायोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉक्टर एसएन सिंह ने बताया कि जितने भी नए-नए फंगस डिटेक्ट हो रहे हैं इससे घहरानेवाली कोली कोई बाज नहीं है. क्योंकि इस प्रकार के फंगस को बिहार में पहले भी डिटेक्ट किया जा चुका है. यह कुल 6 प्रकार के हैं जो है.
म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस), कैंडीडायसीस (व्हाइट फंगस), एस्परजिलोसिस (येलो फंगस), पेनीसिलोसिस, क्रिप्टो कोकोसिस और निमोसिस्टिस.
उन्होंने बताया कि पूर्व में भी 80 से 85% वाइट फंगस के मामले आते थे और येलो फंगस के 10 से 15% मामले सामने आते थे. जबकि 5 से 10% बाकी अन्य चार प्रकार के फंगस मिलते थे जिसमें ब्लैक फंगस भी शामिल है.
इम्युनिटी पर दें विशेष ध्यान
डॉक्टर एसएन सिंह ने कहा कि वाइट फंगस काफी आम है और इसमें मुंह में छाले पड़ जाना काफी कॉमन है. उन्होंने कहा कि शरीर की इम्युनिटी अगर कमजोर हो जाए तो कोई भी फंगस का शरीर पर आक्रमण हो सकता है.
ऐसे में शरीर की इम्युनिटी पर अभी विशेष ध्यान देना होगा. उन्होंने कहा कि फंगस कोई भी हो यह जब शरीर के इंटरनल पार्ट में चला जाता है तब खतरनाक हो जाता है. ऐसे में जैसे ही लक्षण महसूस हो तत्काल डॉक्टर के पास जाएं.
यह सभी फंगस मिट्टी, पानी, हवा और नमी वाले जगह में होते हैं इसलिए कोरोना से जो लोग ठीक हुए हैं उन्हें तत्काल बाहर नहीं घूमना चाहिए और कुछ दिनों और घर में स्वछता पूर्वक रहकर स्वास्थ्य लाभ लेना चाहिए.