पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने जेडीयू से अदावत की. चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ तमाम सीटों पर उम्मीदवार दिए. नतीजा यह हुआ कि चिराग की वजह से जेडीयू को कई सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा है और पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई. नीतीश कुमार ने भी चिराग से बदला लेने में देरी नहीं की. एक साल नहीं बीते कि नीतीश कुमार ने परिवार में ही सेंधमारी कर दी और चिराग को बंगले से बेदखल होना पड़ा. नीतीश कुमार की मदद से पशुपति पारस केंद्र में मंत्री बन गए और लोजपा दो फाड़ हो गई.
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चिराग सियासत को नहीं दे पाए दिशा:लोजपाआर अध्यक्ष चिराग पासवान (LJPR President Chirag Paswan) परिवार में दो फाड़ से खुद को संभाल भी नहीं पाए थे कि उनको एक और झटका लग गया. चिराग पासवान को स्वर्गीय रामविलास पासवान की निशानी से भी बेदखल होना पड़ा. प्रशासन ने सरकारी बंगले को खाली करा दिया. दरअसल, चिराग पासवान अपनी सियासत को दिशा नहीं दे पा रहे थे और खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान बता रहे थे, बंगले से बेदखल होने के बाद चिराग पासवान ने रणनीतियों में बदलाव किया है. वैशाली में पशुपति पारस के उम्मीदवार का विरोध करने के लिए चिराग ने राजद उम्मीदवार के समर्थन का फैसला किया. वैशाली में चिराग पासवान सुबोध राय का समर्थन कर रहे हैं. बोचहां को लेकर चिराग ने अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं.
सरकारी बंगले से बेदखल हुए चिराग:बता दें कि चिराग पासवान ने मुकेश सहनी के समर्थन में बयान दिया था. मुकेश सहनी को समर्थन करना चिराग को महंगा पड़ा और एक दिन बाद ही उन्हें सरकारी बंगले से बेदखल (Chirag Evicts from Paswan Bungalow) होना पड़ा. लोजपा रामविलास के नेता अब बीजेपी को लेकर आक्रामक दिख रहे हैं. सरकारी बंगले से जिस तरीके से चिराग पासवान को निकाला गया, उससे लोजपाआर कार्यकर्ता गुस्से में हैं.
''सरकारी बंगला दिवंगत रामविलास पासवान की निशानी थी और देशभर के दलित वहां आश्रय पाते थे. साजिश के तहत बंगला खाली कराया गया ताकि दलितों से उनका आश्रय छिन जाए. वैशाली में हमने राजद उम्मीदवार के समर्थन का फैसला किया और बोचहां में पार्टी ने स्टैंड अब तक क्लियर नहीं किया है, आने वाले कुछ दिनों में फैसला लिया जाएगा.''-राजेश भट्ट, प्रवक्ता, एलजेपीआर