पटना:बिहार में इस साल जून महीने से ही बाढ़(Flood In Bihar) तबाही मचा रही है. बाढ़ के कारण इस बार भी लाखों की आबादी प्रभावित हुई है और हजारों करोड़ की सरकारी एवं निजी संपत्ति को नुकसान हुआ है. बिहार सरकार(Bihar Government) की ओर से सितंबर में ही केंद्र सरकार (Central Government) से 3763.85 करोड़ (Bihar Flood Relief Fund) मदद की मांग की गई थी. बाढ़ की स्थिति का जायजा लेने आयी केंद्रीय टीम के सामने मुख्य सचिव के स्तर पर बैठक में प्रारंभिक आंकलन पेश किया गया था. बाद में आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से प्रेजेंटेशन भी दिया गया, लेकिन अभी तक केंद्र की ओर से कुछ मदद नहीं की गई है.
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बिहार में बाढ़ से लोग त्रस्त हैं. इस साल भी बाढ़ ने भारी तबाही मचाई. जून से लेकर अब तक बारिश के कारण पांच बार सूबे में बाढ़ जैसे हालात उत्पन्न हुए. 31 जिले के 294 प्रखंड में 79.3 लाख की आबादी इस बार बाढ़ से प्रभावित हुई है. 6.64 लाख हेक्टेयर फसल को भी क्षति पहुंची है.सितंबर में केंद्र सरकार को मदद के लिए बिहार सरकार ने 3763.85 करोड़ की राशि का प्रतिवेदन दिया था, उसमें से जल संसाधन विभाग ने 1469.99 करोड़ की मांग की है तो वहीं आपदा प्रबंधन विभाग 1168 .59 करोड़, कृषि विभाग 661.16 करोड़, पथ निर्माण विभाग 203.145 करोड़, ग्रामीण कार्य विभाग ने 234.74 करोड़, ऊर्जा विभाग ने 14.3 7 करोड़, पीएचईडी ने 7.86 करोड़ और पशुपालन विभाग ने 4.04 करोड़ का प्रतिवेदन दिया है.
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प्रारंभिक क्षति आंकलन के बाद बिहार सरकार ने केंद्र से मदद के लिए जो रिपोर्ट भेजी थी, उसमें से कुछ भी मदद अब तक बिहार को नहीं दी गई है. मुख्यमंत्री ने जनता दरबार के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि केंद्रीय टीम ने आने में देरी कर दी है, लेकिन अब उन्हें मदद के लिए रिपोर्ट सौंपा गया है. क्या मदद करना है, केंद्र को फैसला लेना है.
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डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी केंद्र से मदद नहीं मिलने का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड अभी बदला नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का भी कहना है केंद्र सरकार को बिहार जैसे आपदा ग्रस्त राज्यों के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा. बाढ़ आए तो प्रदेश में तबाही का मंजर होता है और नुकसान होता है, इस बार भी वैसे ही हालात हैं. लेकिन अब तक केंद्र सरकार की ओर से कुछ भी नहीं मिला है. इसके कारण लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है.
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"सुखाड़ और बाढ़ के मुद्दे पर केंद्र सरकार को और बिहार सरकार को संवेदनशील होने की जरूरत है. नीतीश कुमार ने केंद्रीय टीम को आकर मुआयना करने का आग्रह किया था. टीम ने आकर बाढ़ ग्रस्त इलाकों का जायजा लिया, मीटिंग भी की गई लेकिन इन सबके बावजूद अब तक राशि नहीं मिली है."- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
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इस पर विपक्ष लगातार निशाना साध रहा है. बाढ़ के समय तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार पर हमलावर थे. वे सीएम पर आरोप लगाते रहे कि लोगों को मदद नहीं मिल रही है. वहीं प्रधानमंत्री से बाढ़ ग्रस्त इलाकों का जायजा लेने का भी अनुरोध किया था. आरजेडी के प्रदेश महासचिव मदन शर्मा का भी कहना है कि कहने के लिए डबल इंजन की सरकार है, लेकिन बिहार के लोगों के साथ न्याय नहीं हो रहा है.
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"डबल इंजन की सरकार में जनता को न्याय नहीं मिला.तेजस्वी यादव ने भी पीएम से आग्रह किया था कि बिहार के हालात को देखें. 28 जिले के लोग बाढ़ से घिरे हुए हैं लेकिन अब तक केंद्र सरकार ने किसी तरह की कोई सहायता नहीं दी है."- मदन शर्मा, प्रदेश महासचिव, राजद
वहीं जदयू के नेता केंद्र सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने से बचते रहे हैं. लेकिन जदयू के प्रवक्ता निखिल मंडल का कहना है कि मदद मिलने में देरी होने से कठिनाई बढ़ती है.
"जो प्रक्रिया है वो तो की ही जाएगी लेकिन निश्चित रुप से अगर मदद में देरी होती है तो कठिनाई होती है. हम उम्मीद करते हैं कि देरी न करते हुए केंद्र सरकार हमारी मदद करे ताकि हम उस राशि से लोगों की मदद कर सके."- निखिल मंडल, प्रवक्ता जदयू
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विशेषज्ञ एएन सिन्हा शोध संस्थान के विशेषज्ञ प्रोफेसर विद्यार्थी विकास का कहना है कि बिहार आपदा ग्रस्त राज्य है. ऐसे में केंद्र सरकार को विशेष मदद करनी चाहिए. केंद्र सरकार से समय पर मदद मिलेगी तो इससे पलायन रोकने में भी बिहार सरकार को मदद होगी.
"बिहार सरकार को 33 प्रतिशत शेयर वहन करना पड़ता है. जबकि बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए केंद्र को 90 प्रतिशत राशि का शेयर करना चाहिए और बिहार के लिए मात्र 10 प्रतिशत होना चाहिए. केंद्र को चाहिए कि तत्काल बिहार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जल्द से जल्द सहायता राशि मुहैया कराए."-डॉ विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर, ए एन सिन्हा शोध संस्थान
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बता दें कि पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार को जो मदद मिल रही है उसमें इजाफा जरूर हुआ है, लेकिन वह भी क्षति के अनुपात में काफी कम है और काफी विलंब से मदद मिली सो अलग. 2008 में बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से 14800 करोड़ की मांग की थी, लेकिन केंद्र की ओर से 1000 करोड़ की ही राशि दी गई. वहीं 2017 में 7636 करोड़ की मांग बिहार सरकार ने की और मिला 1700 करोड़. 2019 में 4300 करोड की मांग की गई और 953.17 करोड़ की राशि केंद्र ने मुहैया कराई जबकि 2020 में 3328 करोड़ की मांग की गई, 1255 करोड़ की राशि दी गई थी. बिहार सरकार की ओर से 2021 में 3763.85 करोड़ की जो शुरुआती रिपोर्ट भेजी गई है, उसमें अभी तक कुछ भी नहीं मिला है.
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अब बिहार सरकार ने अंतिम रिपोर्ट भी तैयार करना शुरू कर दिया है और इसे केंद्र को सौंपा जाएगा. केंद्र से बिहार को कब मदद मिलती है यह देखने वाली बात है. आंकड़ों के अनुसार इस साल बाढ़ से हुए नुकसान में बिहार सरकार की ओर से जो अब तक लोगों को मदद की गई है उसमें फसलों की क्षति के लिए 902.08 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है. बाढ़ प्रभावित लोगों को 867 करोड़ राशि दी गई है. वहीं 60 लोगों की बाढ़ से मौत की बात भी सामने आई. मृतक के परिजनों को 2.40 करोड़ का भुगतान किया गया है.
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बाढ़ या जलजमाव से परती रही भूमि के लिए 96 करोड़ स्वीकृत किया गया है. बांधों की मरम्मत के लिए जल संसाधन विभाग को 300 करोड़ की राशि दी गई है. बिहार सरकार ने बाढ़ से नुकसान में मदद का एसओपी बनाया है. इसमें बाढ़ प्रभावित प्रत्येक परिवार को 6000 की नगद राशि दी जाती है. 1800 रुपए कपड़ा मद में दिया जाता है, 2000 रुपए बर्तन के लिए, 6800 रुपए प्रति हेक्टेयर फसल नुकसान पर, 30000 रुपए प्रति गाय और भैंस के लिए, 3000 रुपए प्रति बकरी भेड़ और सुअर के लिए, 25000 प्रति घोड़ा के लिए, 95100 कच्चा पक्का मकान के लिए दिए जाने का प्रावधान है.
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साथ ही 5200 रुपए पक्का मकान के लिए, 3200 रुपए कच्चा मकान के लिए, 4100 रुपए झोपड़ी के लिए. 2100 रुपए जानवर के शेड के लिए दिए जा रहे हैं. इस साल सरकार ने खाली रह गई खेत या फिर जलजमाव वाले खेत के लिए भी किसानों को मदद देने का फैसला लिया है. नीतीश सरकार अपने संसाधनों से बाढ़ के समय नियम के अनुसार मदद पहुंचाती है. लेकिन केंद्र से मिलने में विलंब के कारण कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
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बिहार में बाढ़ का कारण नेपाल से आने वाली नदियों में अत्यधिक पानी का होना है. बाढ़ में फाटक खोलने से ऐसे हालात हर साल बनते हैं. बिहार की बड़ी आबादी हर साल बाढ़ ग्रस्त इलाकों से पलायन करती है. लेकिन इसके बावजूद बिहार के प्रति केंद्र का रवैया बदला नहीं है. इतना जरूर किया जाता है कि बाढ़ के समय केंद्रीय टीम बिहार का जायजा लेना कभी नहीं भूलती लेकिन मदद देने के मामले में केंद्र की ओर से लंबा समय लिया जा रहा है. वहीं जो मदद दी जाती है, वह भी नुकसान के मुकाबले काफी कम होता है. इस बार भी मदद मिलने का इंतजार किया जा रहा है, लेकिन राहत राशि कब तक दी जाती है कहना मुश्किल है.
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बिहार में छोटी नदियों में उफान के कारण भी तबाही मचती रही है. सिरोही नदी दरभंगा और मधुबनी में तबाही मचाती रही है. लखनदेई बाया, अधवारा सिरोही, कनकई , परियानी, सुरसर, जहानाबाद में फल्गु, औरंगाबाद में पुनपुन, नालंदा जिले में पचाने, एकंगर सराय में फल्गु का दाया, कराई परशुराय भूतही नदी जहानाबाद जिले में रतनी, फरीदपुर में बेल दईया जैसी कई नदियां है जो बरसात के दिनों में तबाही मचाती हैं. और फिर गंगा का जलस्तर भी बढ़ा देती हैं.
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बिहार में पिछले 40 साल से बाढ़ की समस्या बरकरार है. राज्य सरकार के मुताबिक करीब 70 हजार वर्ग किलोमीटर इलाका हर साल बाढ़ में डूब जाता है. फरक्का बराज इसका मुख्य कारण है. इसके बनने के बाद बिहार में नदी का कटाव बढ़ा. सहायक नदियों से लाई गई सिल्ट और गंगा में घटता जल प्रवाह इस परेशानी को और बढ़ा रहा है.
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गौरतलब है कि साल 2020 में बिहार के 12 जिले बुरी तरह बाढ़ की चपेट में रहे और 23 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए.वहीं साल 2013 के जुलाई महीने में आई बाढ़ में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. बाढ़ का असर राज्य के 20 जिलों पड़ा था और लगभग 50 लाख लोग प्रभावित हुए थे. वहीं बात साल 2011 की करें तो 25 जिलों बाढ़ से प्रभावित हुए थे. 71.43 लाख लोगों के जनजीवन पर असर पड़ा था. बाढ़ से 249 लोगों ने जान गंवाई थी. 2008 में बाढ़ का मंजर और भी भयावह था. 18 जिले बाढ़ की चपेट में आए. इसकी वजह से करीब 50 लाख लोग प्रभावित हुए और 258 लोगों की जान गई.
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