पटनाः बिहार में पहली बार 2 मरीजों में ब्लैक और व्हाइट फंगस (Black And White Fungus) एक साथ मिले हैं. दोनों संक्रमित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS) में भर्ती हैं. डॉक्टरों की टीम ने सर्जरी कर दोनों मरीजों के शरीर से फंगस को अलग कर दिया है. दोनों मरीज अब खतरे से बाहर बताए जा रहे हैं. संस्थान के डॉक्टर मरीजों में एक साथ मिले ब्लैक एंड व्हाइट फंगस को लेकर अध्ययन भी कर रहे हैं. संस्थान के अधीक्षक डॉ. मनीष मंडल का कहना है कि डॉक्टरों की टीम ब्लैक फंगस के इलाज में काफी बेहतर काम कर रही है.
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चौंकानेवाले मामले आये सामने
आईजीआईएमएस में पहली बार ऐसा मामला आया है, जब एक ही मरीज में ब्लैक और व्हाइट फंगस एक साथ मिले हैं. दोनों मरीजों को संस्थान में भर्ती किया गया था. जांच में ब्लैक फंगस की पुष्टि भी हुई थी. ऑपरेशन से पहले जब डाक्टरों की टीम ने काफी बारीकी से परीक्षण किया, तो चौंकाने वाले मामले सामने आए.
साइनस में था दोनों फंगस
ब्लैक के साथ व्हाइट फंगस दोनों साइनस में था. ईएनटी की टीम ने सफलतापूर्वक दोनों फंगस को ऑपरेशन कर हटाया है. ईइनटी के एचओडी डॉ. राकेश सिंह ने बताया कि दोनों मरीजों में यह संक्रमण नाक से आगे बढ़कर साइनस में जाल बना चुका था. आंख और नाक के बीच दोनों फंगस जाल बना चुका था. दोनों को साइनस के दोनों तरफ से फंगस की जाल को सर्जरी से निकाला गया है. मरीज खतरे से बाहर है.
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फंगस के मामले बढ़ने के हैं कई कारण
पीएमसीएच के सर्जरी विभाग के डॉक्टर डॉ. कुंदन सुमन ने इस बारे में बताया कि अभी के समय कोरोना के साथ-साथ ब्लैक फंगस, वाइट फंगस और अन्य फंगस के मामले काफी सामने आने लगे हैं. ऐसा नहीं है कि पहले लोगों को फंगल बीमारियां नहीं होती थीं. जिन लोगों का इम्यूनिटी लेवल कम हो जाता है, उन्हें पहले भी फंगस की बीमारियां होती थी और आज भी हो रही हैं. मगर कोरोना पैंडेमिक के समय में फंगस की बीमारियां बढ़ गई हैं. उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस के मामले बढ़ने को लेकर वे तीन-चार फैक्टर्स देखते हैं.
- पहला यह है कि लोग मास्क का तो प्रयोग कर रहे हैं, मगर मास्क के साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं. एक मास्क को बिना धोए और बिना धूप में सुखाए लोग कई दिनों तक पहन रहे हैं. ऐसे मे मास्क के ऊपर म्वायस्ट जम जा रहा है और म्वायस्ट जमने के कारण उस पर फंगस का ग्रोथ हो जा रहा है. ऐसे में जब लोग सांस ले रहे हैं तो फंगस के नाक में जाने का खतरा बढ़ जा रहा है.
- दूसरा कारण यह है कि घर पर जो लोग कोरोना का इलाज करा रहे हैं. वह बिना चिकित्सीय परामर्श के ही कई स्टेरॉयड वाली दवाइयों का सेवन शुरू कर दे रहे हैं. जिससे इम्यूनिटी का लेवल कम हो जा रहा है. इम्यूनिटी लेवल कम होने पर फंगल बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
- इसके साथ ही तीसरा बड़ा कारण है कि कोरोना समय में लोग नियमित जांच की प्रक्रिया को लेकर लापरवाह हो गए हैं. लोग ब्लड शुगर की भी नियमित जांच नहीं करा रहे और ब्लड शुगर अधिक बढ़ जाने के कारण भी शरीर का इम्यूनिटी लेवल कम हो जाता है और फंगस की बीमारी का खतरा भी बढ़ जाता है.
कोरोना है या व्हाइट फंगस...कैसे पहचाने?
व्हाइट फंगस से फेफड़ों के संक्रमण के लक्षण हाई-रेजलूशन कम्यूटेड टोमाग्राफी (एचआरसीटी) स्कैन में कोरोना जैसे ही दिखते हैं. इसमें अंतर करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे मरीजों में रैपिड एंटीजन और आरटी पीसीआर (RT- PCR) यानी रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर्स चेन रिएक्शन टेस्ट निगेटिव होता है. एचआरसीटी में कोरोना जैसे लक्षण (धब्बे हो) दिखने पर रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट और फंगस के लिए बलगम का कल्चर कराना चाहिए. कोरोना मरीज जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं उनके फेफड़ों को यह संक्रमित कर सकता है.
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'लो इम्यूनिटी' वाले लोग सावधान
व्हाइट फंगस फेफड़ों के अलावा त्वचा, नाखून, मुंह के अंदरूनी भाग, इंटेस्टाइन, किडनी और ब्रेन को भी संक्रमित कर सकता है. एक्सपर्ट की बातों से ये स्पष्ट है कि व्हाइट फंगस कोई नई बीमारी नहीं है. आमतौर पर जिन मरीजों की इम्यूनिटी कम होती है, उनके शरीर के अंगों पर इस बीमारी का असर हो सकता है, लेकिन सामान्य एंटीफंगल दवाओं से इस बीमारी का उपचार हो सकता है.
कैसे करें व्हाइट फंगससे बचाव?
जो मरीज ऑक्सीजन या वेंटिलेटर पर हैं, उनके ऑक्सीजन या वेंटिलेटर उपकरण विशेषकर ट्यूब आदि जीवाणु मुक्त होने चाहिए. ऑक्सीजन सिलेंडर ह्यूमिडिफायर में स्ट्रेलाइज वाटर का प्रयोग करना चाहिए, जो ऑक्सीजन मरीज के फेफड़े में जाए वह फंगस से मुक्त हो. जिन मरीजों का रैपिड एंटीजेन और आरटीपीसीआर टेस्ट निगेटिव हो और जिनके एचआरसीटी में कोरोना जैसे लक्षण हो, उनका रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट कराना चाहिए. बलगम के फंगस कल्चर की जांच भी कराना चाहिए.
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