पटना: बिहार में भले ही नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के नेतृत्व में भाजपा (BJP) और जदयू (JDU) की सरकार चल रही है लेकिन इसमें कई ऐसे हैं जो नीतीश की नीतियों पर सवाल उठाते रहते हैं. बीजेपी के एमएलसी सम्राट चौधरी(Samrat Chaudhary) भी उन्हीं में से एक नाम है लेकिन सम्राट चौधरी सिर्फ नीतीश पर ही नहीं बल्कि अपनों पर बयानों देकर बीजेपी में भी चर्चा में रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष को 'बेचैन मत होइए' जैसी भाषा का इस्तेमाल कर चर्चा में रहे हैं लेकिन इस बार नीतीश पर सीधा हमला कर सम्राट चौधरी ने जिस सियासत को जगह दी है, बिहार में उसे लेकर बड़ी चर्चा शुरू हो गई है.
ये भी पढ़ें: सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार का जवाब- कोई दिक्कत है तो अपनी पार्टी के नेता से करें बात
सम्राट चौधरी पहली बार नीतीश के विरोध में ऐसा बयान नहीं दिए हैं. मजबूत छांव में रहने के आदी सम्राट चौधरी मौसम को बेहतर तरीके से समझ कर ही बयान देते हैं. दरअसल, सम्राट चौधरी की नीतीश कुमार से नाराजगी की एक बड़ी वजह कुशवाहा राजनीति है. 2010 में अपनी पारिवारिक राजनीति के सबसे बड़े घराने और उनके पिता के मित्र लालू यादव का साथ छोड़कर नीतीश की कुनबे में शामिल होने वाले सम्राट चौधरी को इस बात का यकीन था कि नीतीश उन्हें कुशवाहा नेता के तौर पर स्थापित करेंगे. कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी आधा दर्जन से ज्यादा बार विधायक सम्राट चौधरी की माता भी विधायक रह चुकी हैं.
आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) के घर में सीधा आने-जाने में अगर किसी को कोई रोक नहीं था तो उसमें एक सम्राट चौधरी भी थे. उसके बाद भी 2010 में 13 विधायकों के साथ सम्राट चौधरी ने राजद (RJD) को तोड़ दिया और नीतीश से नाता जोड़ लिए. हालांकि इसका परिणाम भी उन्हें मिला, बिहार सरकार में मंत्री बने लेकिन सियासत में जाति की राजनीति जिस तरह से जदयू में गोलबंद थी, उसमें सम्राट चौधरी की राजनीति हाशिए पर ही जाती रही.
सम्राट चौधरी को कुशवाहा राजनेता के तौर पर नीतीश स्थापित करेंगे ऐसा वह चाहते थे लेकिन बदली-बदली राजनैतिक फिजा में ऐसा होना संभव नहीं हो सका. परिणाम नीतीश कुमार के आत्ममंथन और कुर्सी के बदलने के निर्णय के बाद सम्राट चौधरी मांझी गुट में चले गए और नीतीश के विरोध का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ. उम्मीद था कि कुशवाहा वोट पर सम्राट चौधरी की हर बात को मानी जाएगी लेकिन बातें भी दरकिनार होती गई और बिहार में जिस जाति राजनीति को बीजेपी भरना चाहती थी.
उसने कुशवाहा राजनीति का एक नेता बीजेपी को चाहिए था ऐसे में बीजेपी ने मौका मिलते ही सम्राट चौधरी को लपक लिया और अपने कोटे से एमएलसी बनाया. नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं. कुशवाहा समीकरण की राजनीति बिहार में जब भी खड़ी होती है, उसमें जदयू अपने नेताओं के साथ चाहे जितना भ्रमण करें लेकिन बीजेपी के वार रूम में कुशवाहा समीकरण को साधने के लिए सम्राट चौधरी का हर फॉर्मूला काम किया है.
सम्राट चौधरी ने जब राजद से नाता तोड़ नीतीश की सरपरस्ती को स्वीकार किया था, तब लालू यादव राबड़ी आवास में काफी गमजदा थे. उनके कुछ खास सहयोगी उस समय वहां मौजूद थे. जिस पर लालू यादव ने बड़े भारी मन से कहा था कि हालात अगर यही रहे तब तो दोस्ती निभाना भी बड़ा मुश्किल होगा.