पटनाःकेंद्र की सियासत (Central Politics) की दिशा और दशा उत्तर प्रदेश और बिहार के रास्ते ही तय होती है. दोनों राज्यों में जब एनडीए की सरकार हो तब केंद्रीय सत्ता में काबिज होना एनडीए (NDA) के लिए आसान हो जाता है. बिहार में तो एनडीए की सरकार है ही, अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश फतह करना बीजेपी (BJP) के लिए बड़ी चुनौती है. क्योंकि अपने मजबूत किले को बीजेपी ढहने नहीं देना चाहती है.
इसे भी पढ़ें-तेजप्रताप ने खड़ा किया तारापुर उपचुनाव का प्रत्याशी.. तेजस्वी ने मिला लिया
उत्तर प्रदेश विधानसभा में 30% वोट हासिल करने वाली गठबंधन सरकार में आ जाती है. यूपी में 25% वोट बैंक पर मुख्य रूप से दलितों का कब्जा है. इसके बाद अगड़ी जाति का वोट बैंक महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रदेश में मुख्य रूप से ब्राह्मण और राजपूत अगड़ी जाति में आते हैं. ब्राह्मणों की आबादी जहां 8 से 10 फीसदी है, वहीं, राजपूतों की आबादी 5 से 6 फीसदी के करीब है. अन्य अगड़ी जातियां 3 प्रतिशत के आसपास है. इस तरह से अगड़ी जातियों का कुल वोट बैंक 16 से 18 फीसदी के आसपास है.
दूसरी तरफ पिछड़ी जाति का वोट बैंक यूपी की राजनीति में मायने रखता है. एक अनुमान के मुताबिक पिछड़ी जातियों की आबादी 35 फीसदी के आसपास है, जिसमें 13 से 15 फीसदी यादव, 12 से 14 फीसदी कुर्मी जाति की आबादी है. इस बीच बीजेपी की नजर 16 फीसदी अगड़ी जाति के वोट बैंक पर तो है ही, साथ ही साथ पिछड़ी जाति के वोट बैंक में भी पार्टी सेंधमारी करना चाहती है. बिहार और उत्तर प्रदेश के नेताओं को सरकार और संगठन में जगह देकर पार्टी जातिगत वोट बैंक को साधने में जुटी है.
इसे भी पढ़ें- UP चुनाव: BJP से गठबंधन को लेकर मझधार में JDU, कहीं बंगाल जैसा ना हो जाए हाल
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व ने जंबोजेट कार्यसमिति की घोषणा की. कार्यसमिति में बड़ी संख्या में बिहार और उत्तर प्रदेश के नेताओं को जगह दी गई है. उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य होने के कारण बिहार के नेताओं को भी जातिगत आधार पर तवज्जो दी गई है.