पटना: बिहार (Bihar) में जाति जनगणना (Caste Census) को लेकर सियासत उस आधार और विभेद के साथ तो रुक गई है, जिसने सदन में शुरू होकर काफी जोर पकड़ ली थी. फायदा नुकसान जोड़ा गया, चिट्ठी भी भेज दी गई, चिट्ठी आ भी गई. शुभकामनाएं इस बात की भी हैं कि जिस दिन नीतीश कुमार ने चिट्ठी भेजी थी, उस तारीख का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने उत्तर दे दिया. लेकिन जो उत्तर आया है, उससे बिहार पूरे तौर पर चुप है सिर्फ विपक्ष बोल रहा है.
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जातीय जनगणना देश की राजनीति के लिए विपक्षी पार्टियों की जरूरत बन गयी है. माना यह जा रहा है कि जाति का पता चल जाएगा तो सीट के अनुसार उम्मीदवारों का चयन पहले ही हो जाएगा. कौन सी सीट किसके खाते में जाएगी, वहां किस जाति का कौन है. उन जातियों का सबसे मजबूत नेता कौन होगा, यह तय करने में आसानी होगी.
कहने में यह बात इतनी सरल है जो भारत का कोई भी आम आदमी आराम से किसी चौक-चौराहे पर बैठकर कह दे रहा है. लेकिन जरा सियासत के अंतिम पन्ने को पढ़ा जाए जहां से आम आदमी का जीवन शुरू होता है. उसे तो जाति व्यवस्था में बांटकर समाज को ऐसे चौराहे पर खड़ा कर दिया जाएगा. जहां से सियासत की खेती तो लहलहा जाएगी लेकिन समाज का पूरा जीवन ही बेरंग हो जाएगा.
भाजपा के नेताओं का दावा भी यही है कि जाति जनगणना से अगर कोई फायदा है तो बता दीजिए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) का कहना है कि हमने तो ज्ञानी जैल सिंह से पहली बार जातीय जनगणना के मायने समझे थे. उसके बाद मंडल कमीशन, जे पी की सियासत, थर्ड फ्रंट और फ्रंट की लड़ाई, बदलते सियासी समीकरण में गठजोड़, यह तमाम चीजें ऐसी रही हैं जिसमें राजनीतिक दलों ने सिर्फ अपने फायदे देखे हैं. जनता का क्या हुआ, इसे देखने वाला कोई नहीं है. जातियों का क्या हुआ इसे भी देखने वाला कोई नहीं है. हां, बिहार में लोग दलित से महादलित जरूर बन गए.
अब एक सवाल यह भी उठ रहा है कि 15 अगस्त को बेटियों के लिए लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने कह दिया कि बहुत कुछ देश में बदल जाएगा. देश के युवाओं के लिए कह दिया कि खड़े हो जाओ और चलो. मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियां- नर हो न निराश करो मन को, हिंदुस्तान तुम काम करो. सवाल यह है कि अगर लाल किले (Red Fort) के प्राचीर से जाति वर्ण व्यवस्था से हटकर हिंदुस्तान के लोगों का नारा दिया जा रहा है तो फिर जाति को जोड़ने की जरूरत क्या है. काम उस हिंदुस्तान को करने दीजिए जो कल देश का मुस्तकबिल लिखेगा.
राजनेताओं को एक पाठ और पढ़ लेना चाहिए की होनहारों को हुनरमंद होने दीजिए. कम से कम 15 अगस्त को एक संकल्प तो ले ही लेना चाहिए कि इसके बाद जब स्वतंत्रता दिवस पर झंडे को फहरायेंगे तो जाति नहीं, देश के युवाओं की उस वीरगाथा को गाएंगे जो हमारे देश को हुनरमंद बना रहे हैं.
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जाति की संकीर्णता से देश तब तक बाहर नहीं निकल पाएगा जब तक जाति जोड़ने की गिनती बंद नहीं होगी. देश को अगर प्रगति की राह पर ले जाना है तो जाति की गिनती बंद करनी होगी. शायद एक संदेश दिल्ली से बिहार आ गया है. अब बिहार को इस संदेश को आत्मसात करना है या सियासत, यह तो राजनीति करने वाले लोग समझे.
लेकिन जाति की सियासत से बिहार जितना जल्दी बाहर निकलेगा, विकास की उतनी बड़ी कहानी लिख पाएगा. उम्मीद, अनुरोध, आकांक्षा और विश्वास आजादी के 75 साल पर उस हर बिहारी से है जो कम से कम चंपारण सत्याग्रह की उस आवाज के शाश्वत साक्षी हैं. जिनके पूर्वजों ने बापू के साथ जाति नहीं, देश देखकर खड़े हुए थे.
आज देश जाति देख कर खड़ा हो रहा है. इसे बदलना है और बदलना जरूरी भी है. इसे बदलने का जज्बा, हिम्मत और हौसला युवा पीढ़ी में है. उसे काम करना है और काम करने वाले हिंदुस्तानी कोई जाति नहीं है. चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha) पर निकले बापू के उस सत्य के आग्रह की दूसरी पूंजी है जो देश को जाति से अलग ले जाकर ऊंचाई देगा. तभी बापू और लाल किले पर फहराये तिरंगे में बापू के खून के हर कतरे का असली रंग हिंदुस्तान की जमीन पर उस हरियाली के साथ खेलेगा. जिस बसंती चोले को रंगने के लिए हमारे वीर सपूतों ने अपनी कुर्बानी दी थी. इस हिंदुस्तान के वीर सपूत बनिए, जाति के पूत बनने की जरूरत अब नहीं है.