पटनाःबिहार में घोटालों की लंबी परंपरा रही है. कुछ चर्चित घोटालों की गूंज तो विदेशों तक सुनाई दी. इससे बिहार की छवि दागदार हुई. चारा घोटाला स्वतंत्र भारत के बिहार राज्य का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार था, जिसमें पशुओं को खिलाये जाने वाले चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाल लिये गये. सरकारी खजाने की इस चोरी में अन्य कई लोगों के अलावा बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पर भी आरोप लगा था. इस घोटाले के कारण लालू यादव को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. (Two chief ministers involved in fodder scam)
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अमित खरे ने की थी छानबीनः अखंड बिहार में 80 के दशक में ही चारा घोटाला (Bihar fodder scam)की नींव पड़ गयी थी. 90 के दशक की शुरुआत में इसका स्वरूप बड़ा होता गया. वर्ष 1992-93 में पशुपालन विभाग में होने वाली भारी-भरकम अधिक निकासी की चर्चा होने लगी. कोषागार से करोड़ों की फर्जी निकासी ने लोगों का इस ओर ध्यान खींचा. सिर्फ नेताओं और अफसरों के बड़े वर्ग ने इस घोटाले को रोकने की बजाए बहती गंगा में जमकर हाथ धोया. तत्कालीन वित्त आयुक्त बीएस दुबे के प्रयास से इस घोटाले से पर्दा हटना शुरू हुआ. उनके निर्देश पर ही चाईबासा के तत्कालीन डीसी अमित खरे ने छानबीन की और मामला पकड़ में आया.
सीबीआई जांच की अनुशंसाः 1996 में हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने जांच शुरू की, लेकिन इसके ठीक चार साल पूर्व तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने विधानसभा में इस घोटाले की व्यापकता की जानकारी दी थी. उस समय सीबीआई जांच की अनुशंसा की थी लेकिन लालू प्रसाद यादव ने ना सिर्फ इसकी अनदेखी की, बल्कि किसी तरह की कोई कार्रवाई भी नहीं की. उल्टे घोटाले के किंगपिन माने जाने वाले श्याम बिहारी सिन्हा को सेवा विस्तार भी दे दिया. साथ ही लालू प्रसाद यादव ने सीबीआई जांच को लेकर दायर लोकहित याचिका का पटना हाई कोर्ट में विरोध भी किया. यहां तक कि हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में लालू सुप्रीम कोर्ट तक चले गए. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को सही माना और उसके बाद 950 करोड़ से अधिक की फर्जी निकासी के मामले की जांच शुरू हुई.
अस्तित्व विहीन कंपनियों के माध्यम से हेराफेरीः चारा घोटाला दरअसल फर्जी और अस्तित्व विहीन कंपनियों के माध्यम से अरबों रुपए की हेराफेरी का घोटाला है. इन कंपनियों ने बिना पशुओं के दवा, चारे की आपूर्ति कर करोड़ों डकार गए बल्कि विभागीय अफसरों और नेताओं ने गाय, भैंस, सुअर आदि छोटे-बड़े पशुओं की खरीद और उनके पोषण के नाम पर करोड़ों का गबन किया. एजी की जांच में यह पाया गया कि स्कूटर मोपेड के नंबरों पर भी सांडों, सूअर, गाय आदि की ढुलाई दिखा दी गई. कागजों पर ही सैकड़ों पशुओं की खरीद फिर उनकी मौत दिखाई गई. असली खेल निरीह पशुओं के भोजन के लिए चारे और दवाओं की खरीद में हुआ.
घोटाला का उजागर करने वाले अधिकारीः तत्कालीन वित्त आयुक्त बीएस दुबे के प्रयास से इस घोटाले से पर्दा हटना शुरू हुआ. उनके निर्देश पर ही चाईबासा के तत्कालीन डीसी अमित खरे ने छानबीन की और मामला पकड़ में आया. 1995 में फाइनेंस कमिश्नर बीएस दुबे ने विभागों की समीक्षा के दौरान पाया और शुरुआती समीक्षा में 410 करोड़ रुपये की हेरा फेरी का अनुमान लगाया गया. बाद में 950 रुपये करोड़ से ज्यादा का मिला.
चारा घोटाला के याचिकाकर्ताः चारा घोटाला की सीबीआई जांच के लिए पटना हाईकोर्ट में जिन लोगों ने पहल की उनमें आज आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी, वर्तमान में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, बीजेपी के सांसद सुशील मोदी, उस समय बीजेपी के नेता सरयू राय, आरजेडी के नेता वृषिण पटेल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद्र मिश्रा शामिल हैं.
53 अलग-अलग केस दर्जः 1996 में सीबीआई ने इस घोटाले काे लेकर 53 अलग-अलग केस दर्ज किए. कुल 170 आरोपी बनाए गए थे. 55 आरोपियों से अधिक की मौत हो चुकी है. 24 बरी हो चुके हैं. 75 को दोषी करार दिया गया था. 34 अपनी सजा काटकर बाहर आ चुके हैं. कई अभी भी जेल में बंद हैं. इसमें सात सरकारी गवाह भी बने थे. छह अभी फरार हैं.
पांच मामले में हो चुकी है सजाः
1. चाईबासा कोषागार से निकासीः2013 में लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र को पहली बार सजा हुई. 3 अक्टूबर 2013 को लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र को सजा सुनाई सीबीआई के विशेष न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने 37.70 करोड़ की फर्जी निकासी के मामले में लालू प्रसाद यादव को 5 साल की कैद और 25 लाख का जुर्माना भी लगाया था. जुर्माना नहीं देने पर 6 महीने अतिरिक्त सजा काटने का आदेश दिया था. वहीं जगन्नाथ मिश्र को 4 साल की कैद और दो लाख का जुर्माना लगाया था.
2. देवघर कोषागार से निकासीः इसमें आरोपियों की संख्या 38 थी. जिसमें से सुनवाई के दौरान 11 की मौत हो गई. दो सरकारी गवाह बन गए. दो ने सजा से पहले ही दोष स्वीकार कर लिया. 313 लोगों की गवाही हुई थी. जिसमें अभियोजन गवाही 208 और बचाव गवाही 22 था. इसमें लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल की सजा हुई थी. 10 लाख का जुर्माना भी लगाया गया था. कुल 15 आरोपियों को सजा सुनाई गई जिसमें पूर्व सांसद जगदीश शर्मा, पूर्व मंत्री आरके राणा, आपूर्तिकर्ता त्रिपुरारी मोहन प्रसाद, पूर्व पशुपालन सचिव जूलियस, पूर्व सचिव महेश प्रसाद, पूर्व वित्त आयुक्त फूलचंद सिंह भी शामिल थे. इसमें जगन्नाथ मिश्रा समेत छह को कोर्ट ने बरी कर दिया था.
3. केस नंबर 68/96ः यह मामला भी चाइबासा कोषागार से संबंधित थे. पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को 5 -5 साल की सजा और 10 -10 लाख जुर्माना हुआ था. इस मामले में कुल 50 आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई. 6 को बरी कर दिया गया. इसमें जगदीश शर्मा, विद्यासागर निषाद, ध्रुव भगत और आरके राणा को भी सजा हुई.
4. दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ की निकासीः सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने लालू प्रसाद यादव और पशुपालन विभाग के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक ओपी दिवाकर को 14- 14 साल की सजा सुनाई थी. 60 -60 लाख रुपए जुर्माना भी किया गया. डॉक्टर और अधिकारियों के साथ 17 दोषियों को भी सीबीआई की विशेष अदालत ने सजा सुनाई जिसमें कैद और जुर्माना शामिल था.
5. डोरंडा कोषागार से 140.35 करोड़ की निकासीः सीबीआई के विशेष जज एसके शशि की अदालत ने लालू प्रसाद के साथ 74 आरोपियों को सजा दी. लालू प्रसाद यादव को 5 साल की कैद और 60 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया. 35 अभियुक्तों को 3-3 साल की सजा सुनाई गई. 50 हजार से दाे लाख तक का जुर्माना किया गया. 24 आरोपियों को जिसमें 7 महिला शामिल थी, कोर्ट ने बरी कर दिया. इसमें कुल 99 आरोपी बनाए गए थे.
भागलपुर बांका कोषागार से 46 लाख की निकासी का मामला पटना की सीबीआई अदालत में चल रहा है. लालू प्रसाद यादव को 5 मामलों में अब तक 1.65 करोड़ रुपए का जुर्माना हो चुका है और 32 साल से अधिक की सजा हो चुकी है. फिलहाल जमानत पर लालू प्रसाद यादव बाहर हैं.
चारा घोटाला में सात बार जेल जा चुके हैं लालू
क्रम | कब |
पहली बार | 30 जुलाई 1997 |
दूसरी बार | 28 अक्टूबर 1998 |
तीसरी बार | 5 अप्रैल 2000 |
चौथी बार | 28 नवंबर 2000 |
पांचवी बार | 26 नवंबर 2001 |
छठी बार | 30 सितंबर 2013 |
सातवीं बार | 23 दिसंबर 2017 |