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बिहार के बाहुबलियों की बीवियां संभालतीं हैं 'सत्ता'.. अब बारी अनंत सिंह की! - बाहुबली अनंत सिंह

बिहार की राजनीति में आपराधिक छवि वाले लोगों (Criminal Background Leaders) की कमी नहीं है. ऐसे लोग लगभग सभ दलों या गठबंधन में हैं. कोर्ट से दागी साबित होने के राजनीति में शामिल बाहुबली सदन के सीटों पर कब्जे के लिए 'फैमिली प्लान' के तहत चुनावी मैदान में अपनी पत्नियों को उतारते हैं. बिहार के राजनीति में ऐसे कई बाहुबली हैं, जिनकी पत्नियों ने पति के राजनीतिक विरासत को संभाला है. वहीं हाल में दोषी पाये गये अनंत सिंह की सदस्यता जाने के बाद चर्चा चल रही है कि अनंत सिंह की विरासत कौन संभालेंगे. पढ़ं पूरी खबर..

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Published : Jul 18, 2022, 10:18 PM IST

पटनाः बिहार की राजनीति में अगर बाहुबलियों का जिक्र न हो तो शायद राजनीति की चर्चा अधूरी मानी जाएगी. दरअसल राजनीति के साथ विरासत को भी संभालना बाहुबली सियासतदानों के लिए बड़ी चुनौती होती है. बाहुबली यह कभी नहीं चाहते कि उनकी वर्षों पुरानी की गई राजनीतिक साधना पर किसी और का नाम चले. बिहार में यह प्रक्रिया कोई नई बात नहीं है. कमोवेश सभी दलों के बाहुबली अपनी सियासी विरासत को अपने खास को ही देते हैं. चाहे राजद हो या फिर कोई और दल. जब भी ऐसा मौका आया है, इन बाहुबलियों ने अपनी पत्नी को अपने सियासत की बागडोर की चाभी सौंप दी है.


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"राजनीति में कार्यकर्ताओं का घोर अभाव हो गया है. पहले कार्यकर्ता प्राथमिक और सक्रिय सदस्य होते थे और उन्हीं के कार्यकर्ताओं में से एक बड़ा चेहरा चुना जाता था. जो बाद में प्रदेश, प्रखंड, जिला और राष्ट्रीय अध्यक्ष तक जाता था या फिर वही आदमी विधायक या सांसद बनता था. 80 के दशक के बाद से यह परंपरा लगभग लुप्त हो गई."-ओमप्रकाश अशक, वरिष्ठ पत्रकार सह राजनीतिक प्रेक्षक


पत्नी नीलम देवी को विधायक बनाने की तैयारी में अनंत सिंहः ताजा मामला मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह का है. पांच बार मोकामा के विधायक रह चुके बाहुबली अनंत सिंह को आर्म्स एक्ट में सजा मिलने के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता भी चली गई है. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि अनंत सिंह मोकामा सीट से अपनी नीलम देवी विधायक का उम्मीदवारी के लिए तैयारी कर रहे हैं. राजद सूत्रों की मानें तो नीलम देवी की दावेदारी पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की भी सहमति हो चुकी है, बस उस चुनाव की घोषणा का इंतजार किया जा रहा है.

2019 में मुगेंर लोक सभा सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा थाः हालांकि नीलम देवी राजनीति में पहली बार कदम नहीं रख रही है. वह 2019 में भी राजनीति में अपना दांव आजमा चुकी है. तब उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर मुंगेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. हालांकि उस चुनाव में उनको सफलता नहीं मिली थी. अब अगर मोकामा से राजद अनंत सिंह की पत्नी को टिकट मिल भी जाता है तो आने वाले समय जनता के फैसला आने तक इंतजार करना होगा.

राजबल्लभ यादव और बिंदी यादव ने अपनी पत्नियों को राजनीति में उतारा थाःबिहार की वीआईपी सीटों में शुमार होने वाले नवादा विधानसभा क्षेत्र की भी यही कहानी है. यहां से विधायक रहे राजबल्लभ यादव ने जब जरूरत पड़ी तो अपनी पत्नी विभा यादव को मैदान में उतार दिया था. दरअसल 2015 में राजद की तरफ से चुनाव लड़ रहे राजबल्लभ यादव ने बीएसपी के उम्मीदवार इंद्रदेव प्रसाद को मात दी थी. 2018 में राजबल्लभ को दुष्कर्म के मामले में उम्र कैद की सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता चली गई थी, जिसके बाद राजद ने 2019 के उपचुनाव में उनकी पत्नी विभा देवी को चुनाव मैदान में उतारा था. आरा जिले के संदेश विधानसभा क्षेत्र से अरुण यादव ने दुष्कर्म के आरोपी बनाये जाने के बाद अपनी पत्नी किरण देवी को ही अपना विरासत सौंप दिया था. इसी प्रकार 2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तरफ से जनता दल यूनाइटेड ने गया जिले के अतरी सीट से मनोरमा देवी को मैदान में उतारा था. मनोरमा इस इलाके की दबंग रहे बिंदी यादव की पत्नी है.

मुन्ना शुक्ला की पत्नी 2010 में लालगंज विधानसभा से आजमा चुकी हैं किस्मतःबाहुबलियों की पत्नियों के नाम की सूची में एक नाम अनु शुक्ला का भी है, जिन्होंने 2010 में लालगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था. ज्ञात हो कि अनु शुक्ला के पति मुन्ना शुक्ला के ऊपर पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या का आरोप साबित हो गया था. आरोप साबित होने के बाद से वह जेल में बंद थे. मुन्ना शुक्ला ने फरवरी 2005 में हुए चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट से चुनाव जीता था लेकिन बाद में वह जदयू में शामिल हो गए थे.

मुंगेर की सांसद रह चुकी हैं सूरज भान की पत्नीः बाहुबलियों की इस सूची में एक नाम उस बाहुबली का भी आता है जिसके ऊपर साल 2000 में 26 मुकदमे दर्ज किए गए थे. यह नाम बाहुबली सूरजभान है. सूरजभान के जब चुनाव लड़ने पर रोक लगी तो उन्होंने अपनी पत्नी वीणा देवी को मुंगेर से चुनावी मैदान में उतार दिया. उनकी पत्नी मुंगेर की सांसद रह चुकी हैं.
बाहुबलियों की लंबी है फेहरिस्तःहालांकि इस फेहरिस्त में कई और भी नाम है जो अलग-अलग दलों से ताल्लुक रखते हैं. लेकिन जब भी वक्त पड़ा तो उनके लिए उनकी पत्नियां ही विरासत संभालने के लिए आगे आई है. इन नामों में सिवान के सांसद रहे दबंग मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब, खगड़िया के दबंग रणवीर यादव की दो पत्नियां हैं. एक पत्नी पूनम यादव विधायक हैं. वहीं दूसरी पत्नी खगड़िया से जिला परिषद अध्यक्ष रह चुकी हैं. जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन के अलावा कभी बिहार में राजनीति का केंद्र रहे बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद का भी नाम शामिल है.

राजनीति में कैडर से ज्यादा परिवार को दी जा रही है तरहीजःवरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक ओमप्रकाश अशक कहते हैं कि कुछ कैडर बेस्ड पार्टियों को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी तमाम दल ऐसे मिलेंगे। विशेष रुप से क्षेत्रीय दल या जिन दलों का निर्माण जातीय आधार पर हुआ है. उसमें परिवारवाद या वंशवाद ही दिखाई देगा. यही कारण है कि कार्यकर्ताओं का अभाव होता गया. आज अगर किसी को कार्यकर्ता जुटाने हैं तो लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. किराए की गाड़ियों पर लाद कर लाना पड़ता है. मजदूरी के तौर पर पैसे देने पड़ते हैं. लेकिन कैडर बेस्ट पार्टियों के सामने यह संकट नहीं है. जैसे बीजेपी और वामदलों के पास अपने कैडर हैं. यह अलग बात है कि बीजेपी आज अच्छी स्थिति में है और कैडर बेस्ट पार्टी होने के बाद भी वामदल किनारे पर हैं. आज की तारीख में भी देखा जाए तो कार्यकर्ता के नाम पर उनके पास कैडर है लेकिन बाकी दलों के पास नहीं है.
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